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सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी ठेंगा दिखा रहे सरकारी अधिकारी और कर्मचारी

सरकारी तनख्वाह पाने वाले सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की भी धज्जियां उड़ा दी गई.

सरकारी स्कूलों के जर्जर हालात
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Published : Feb 9, 2019, 3:22 AM IST

मेरठ : सरकार प्रदेश सरकारी स्कूलों को मॉडर्नाइज करके प्राइवेट स्कूल की तर्ज पर चलाना चाहती है. वहीं सरकार के अधिकारी और कर्मचारी ही सरकार की इस मंशा को पलीता लगा रहे हैं. सरकारी स्कूलों की स्थिती को सुधारने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश भी जारी किया था, लेकिन प्रदेश में कहीं भी उस आदेश का पालन होता दिखाई नहीं दे रहा है.

सरकारी स्कूलों के जर्जर हालात
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जिले के सरकारी स्कूलों में न तो फर्नीचर है और न सुविधाएं. कई स्कूल शिक्षकों की कमी से भी जूझ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इन स्कूलों का स्तर सुधारने के लिए एक आदेश भी दिया था. इसके अनुसार सरकारी तनख्वाह पाने वाले सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की भी धज्जियां उड़ा दी गई. किसी भी अधिकारी या सरकारी कर्मचारी का बच्चा शायद ही किसी सरकारी स्कूल में पढ़ता हो, नेताओं और मंत्रियों की बात तो दूर की है. उनके बच्चों ने तो सरकारी स्कूल देखा भी नहीं होगा.

मेरठ के सराय लाल दास स्थित जर्जर सरकारी स्कूल में 20 बच्चे हैं, जिनको पढ़ाने के लिए केवल एक शिक्षामित्र है. न तो कोई शिक्षिका है और न ही प्रधानाध्यापक है. इसके अलावा बिल्कुल जर्जर हो चुकी छत है जिसके गिरने से बच्चों को चोट भी लग चुकी है. इसके बाद भी मामूली रिपेयरिंग करवा कर स्थाई रूप से काम चलाया जा रहा है. स्कूल में सुविधाएं न के बराबर हैं, लेकिन यहां के बच्चे डॉक्टर और टीचर बनने की ख्वाहिश रखते हैं.

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मेरठ : सरकार प्रदेश सरकारी स्कूलों को मॉडर्नाइज करके प्राइवेट स्कूल की तर्ज पर चलाना चाहती है. वहीं सरकार के अधिकारी और कर्मचारी ही सरकार की इस मंशा को पलीता लगा रहे हैं. सरकारी स्कूलों की स्थिती को सुधारने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश भी जारी किया था, लेकिन प्रदेश में कहीं भी उस आदेश का पालन होता दिखाई नहीं दे रहा है.

सरकारी स्कूलों के जर्जर हालात
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जिले के सरकारी स्कूलों में न तो फर्नीचर है और न सुविधाएं. कई स्कूल शिक्षकों की कमी से भी जूझ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इन स्कूलों का स्तर सुधारने के लिए एक आदेश भी दिया था. इसके अनुसार सरकारी तनख्वाह पाने वाले सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की भी धज्जियां उड़ा दी गई. किसी भी अधिकारी या सरकारी कर्मचारी का बच्चा शायद ही किसी सरकारी स्कूल में पढ़ता हो, नेताओं और मंत्रियों की बात तो दूर की है. उनके बच्चों ने तो सरकारी स्कूल देखा भी नहीं होगा.

मेरठ के सराय लाल दास स्थित जर्जर सरकारी स्कूल में 20 बच्चे हैं, जिनको पढ़ाने के लिए केवल एक शिक्षामित्र है. न तो कोई शिक्षिका है और न ही प्रधानाध्यापक है. इसके अलावा बिल्कुल जर्जर हो चुकी छत है जिसके गिरने से बच्चों को चोट भी लग चुकी है. इसके बाद भी मामूली रिपेयरिंग करवा कर स्थाई रूप से काम चलाया जा रहा है. स्कूल में सुविधाएं न के बराबर हैं, लेकिन यहां के बच्चे डॉक्टर और टीचर बनने की ख्वाहिश रखते हैं.

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Intro:उत्तर प्रदेश सरकार सरकारी स्कूलों को मॉड नाइस सर के प्राइवेट स्कूल की तर्ज पर चलाना चाहती है।


Body:उत्तर प्रदेश सरकार सरकारी स्कूलों को मॉडल आईसर के प्राइवेट स्कूल की तर्ज पर चलाना चाहती है लेकिन सरकार के इस मंशा में अधिकारी और कर्मचारी पलीता लगा रहे हैं उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों का आलम क्या है यह हम आज आपको दिखाते हैं बात करें अगर मेरठ की तो मेरठ के सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं स्कूलों की बिल्डिंग तो है लेकिन अधिकतर स्कूल में ना तो फर्नीचर है और ना ही ठीक से पढ़ पाने के लिए सुविधाएं सुप्रीम कोर्ट में इन स्कूलों का स्तर सुधारने के लिए एक आदेश भी दिया था जिसमें सरकारी तनखा पाने वाले सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने का निर्देश दिया गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ा दी आपको बता दें कि किसी अधिकारी और कर्मचारी का बच्चा शायद ही किसी सरकारी स्कूल में पढ़ता हो नेताओं और मंत्रियों की बात तो दूर की है उनके बच्चे ने तो सरकारी स्कूल देखा भी नहीं होगा मेरठ के सराय लाल दास स्थित जर्जर सरकारी स्कूल की हालत आज ईटीवी भारत आपको दिखाएगा सराय लाल दास के सरकारी स्कूल में 20 बच्चे हैं जिन को पढ़ाने के लिए केवल एक शिक्षामित्र है ना तो कोई शिक्षिका है और ना ही प्रधानाध्यापक है इसके अलावा बिल्कुल जर्जर हो चुकी है छत से गिरने से बच्चों को चोट भी लग चुकी है जिसके बाद मामूली रिपेयरिंग करा कर स्थाई रूप से काम चलाया जा रहा है स्कूल की हालत होगी अगर बात करें तो ना तो फीचर है और ना ही सुविधाएं लेकिन स्कूल के बच्चों के डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई टीचर बनने की ख्वाहिश रखता है अपने सपनों में भी पलीता लगता दिखाई दे रहा है उन्हें पता है कि इन व्यवस्थाओं के साथ पढ़कर उनके सपने शायद ही पूरे होंगे।

बाइट नगमा शिक्षामित्र

बाइट छात्र
नोट बाइट छोटे स्कूली बच्चों की है

वॉइस ओवर

पारस गोयल मेरठ
9412785769


Conclusion:
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