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मऊ: सूक्ष्मजीवों के महत्व पर वैज्ञानिकों ने दी जानकारी, विक्रेताओं को मिला प्रशिक्षण

यूपी के मऊ स्थित ष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो कुशमौर में वैज्ञानिकों ने कृषि इनपुट डिलर्स को विस्तृत तौर पर सूक्ष्मजीवों के बारे में जानकारी दी. इसी दौरान कृषि संसाधन विक्रय केंद्र चलाने वाले लाइसेंसधारी विक्रेताओं को देशी योजना के तहत प्रशिक्षण भी दिया गया.

वैज्ञानिक डॉ अनिल सक्सेना, निदेशक, राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो
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Published : Aug 9, 2019, 7:19 PM IST

मऊ: सूक्ष्मजीवों का हमारे जीवन में कितना महत्व है और यह किस तरह से मृदा और फसलों को प्रभावित करते हैं. इसे जानने के लिए देशी योजना के प्रशिक्षुओं को उप निदेशक कृषि एसपी श्रीवास्तव के नेतृत्व में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद लाया गया. जहां वैज्ञानिकों ने कृषि इनपुट डिलर्स को विस्तृत तौर पर सूक्ष्मजीवों के बारे में बताया. इस दौरान जिले के डीएम ने भी राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (NBAIM), कुशमौर में निरीक्षण कर वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे प्रयोंगों की जानकारी ली.

सूक्ष्मजीवों के महत्व पर वैज्ञानिकों ने दी जानकारी

प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आलोक श्रीवास्तव, आर्सेनिक सहित 9 प्रकार के तत्वों पर शोध कर रही डॉ. रेणु, डॉ. पवन शर्मा, उप कृषि निदेशक एसपी श्रीवास्तव, जिला भूमि संरक्षण अधिकारी उपस्थित रहे.

लाइसेंसधारी विक्रेताओं को दिया जा रहा है प्रशिक्षण-
कृषि संसाधन विक्रय केंद्र चलाने वाले लाइसेंसधारी विक्रेताओं को देशी योजना (DAESI - Diploma in Agricultural Extension Services for Input Dealers) के तहत दिया जा रहा है. इस कोर्स की शुरुआत वर्ष 2003 में हैदराबाद स्थित कृषि मंत्रालय की संस्था मैनेज (MANAGE) द्वारा की गई थी. जो पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न राज्यों द्वारा संचालित किया जा रहा है. इस एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रशिक्षित कृषि इनपुट डीलर्स तैयार करना है. मऊ में कुशमौर स्थित ICAR-NBAIM में देशी योजना के प्रशिक्षुओं और कृषि विभाग के तकनीकी सहायकों को वैज्ञानिकों ने बारीकी से सूक्ष्मजीवों का महत्व समझाया.

पढें. मऊ: बीजेपी विधायक का कांग्रेस पर हमला, कहा- विदेश जाएं और वहीं करें राजनीति

ट्राईकोडर्मा का है अहम रोल-
सूक्ष्म जीवों में ट्राईकोडर्मा महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह मृतोपजीवी कवक है जो प्रायः मृतोपजीवी रूप में मृदा, जल तथा पौधों या जैविक अवशेषों पर पाया जाता है. कृषि की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है. प्रमुख रूप से इसका प्रयोग पौध रोग कारक जीवों की रोकथाम के लिए किया जाता है. यह एक जैविक फफूंद नाशी है जो विभिन्न प्रकार की कवक जनित बीमारियों को रोकने में मदद करता है. जिससे रसायनिक फफूंद नाशक के ऊपर निर्भरता कम हो जाती है.

इसका प्रयोग प्राकृतिक रूप से सुरक्षित माना जाता है तथा प्रकृति में इसका कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलता. इस दौरान जिलाधिकारी ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि देश के विकास का रास्ता गांव से होकर गुजरता है. गांव के किसानों को इंटरनेट की सहायता से कोई भी जानकारी मिल सकती है. सूक्ष्मजीव प्रकृति की अनमोल धरोहर हैं इनके बिना फसल उत्पादन की परिकल्पना करना भी नामुमकिन है. जीव जगत में होने वाली समस्त गतिविधियों में यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी भूमिका निभाते हैं.

कृषि के क्षेत्र में खाद के रूप में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश आदि पोषक तत्व खेतों में डाला जाता है. इन तत्वों को सूक्मजीवों द्वारा भी पूरित किया जा सकता है. इससे रासायनिक खादों का प्रयोग कम किया जा सकता है.
-वैज्ञानिक डॉ अनिल सक्सेना, निदेशक, राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो

मऊ: सूक्ष्मजीवों का हमारे जीवन में कितना महत्व है और यह किस तरह से मृदा और फसलों को प्रभावित करते हैं. इसे जानने के लिए देशी योजना के प्रशिक्षुओं को उप निदेशक कृषि एसपी श्रीवास्तव के नेतृत्व में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद लाया गया. जहां वैज्ञानिकों ने कृषि इनपुट डिलर्स को विस्तृत तौर पर सूक्ष्मजीवों के बारे में बताया. इस दौरान जिले के डीएम ने भी राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (NBAIM), कुशमौर में निरीक्षण कर वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे प्रयोंगों की जानकारी ली.

सूक्ष्मजीवों के महत्व पर वैज्ञानिकों ने दी जानकारी

प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आलोक श्रीवास्तव, आर्सेनिक सहित 9 प्रकार के तत्वों पर शोध कर रही डॉ. रेणु, डॉ. पवन शर्मा, उप कृषि निदेशक एसपी श्रीवास्तव, जिला भूमि संरक्षण अधिकारी उपस्थित रहे.

लाइसेंसधारी विक्रेताओं को दिया जा रहा है प्रशिक्षण-
कृषि संसाधन विक्रय केंद्र चलाने वाले लाइसेंसधारी विक्रेताओं को देशी योजना (DAESI - Diploma in Agricultural Extension Services for Input Dealers) के तहत दिया जा रहा है. इस कोर्स की शुरुआत वर्ष 2003 में हैदराबाद स्थित कृषि मंत्रालय की संस्था मैनेज (MANAGE) द्वारा की गई थी. जो पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न राज्यों द्वारा संचालित किया जा रहा है. इस एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रशिक्षित कृषि इनपुट डीलर्स तैयार करना है. मऊ में कुशमौर स्थित ICAR-NBAIM में देशी योजना के प्रशिक्षुओं और कृषि विभाग के तकनीकी सहायकों को वैज्ञानिकों ने बारीकी से सूक्ष्मजीवों का महत्व समझाया.

पढें. मऊ: बीजेपी विधायक का कांग्रेस पर हमला, कहा- विदेश जाएं और वहीं करें राजनीति

ट्राईकोडर्मा का है अहम रोल-
सूक्ष्म जीवों में ट्राईकोडर्मा महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह मृतोपजीवी कवक है जो प्रायः मृतोपजीवी रूप में मृदा, जल तथा पौधों या जैविक अवशेषों पर पाया जाता है. कृषि की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है. प्रमुख रूप से इसका प्रयोग पौध रोग कारक जीवों की रोकथाम के लिए किया जाता है. यह एक जैविक फफूंद नाशी है जो विभिन्न प्रकार की कवक जनित बीमारियों को रोकने में मदद करता है. जिससे रसायनिक फफूंद नाशक के ऊपर निर्भरता कम हो जाती है.

इसका प्रयोग प्राकृतिक रूप से सुरक्षित माना जाता है तथा प्रकृति में इसका कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलता. इस दौरान जिलाधिकारी ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि देश के विकास का रास्ता गांव से होकर गुजरता है. गांव के किसानों को इंटरनेट की सहायता से कोई भी जानकारी मिल सकती है. सूक्ष्मजीव प्रकृति की अनमोल धरोहर हैं इनके बिना फसल उत्पादन की परिकल्पना करना भी नामुमकिन है. जीव जगत में होने वाली समस्त गतिविधियों में यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी भूमिका निभाते हैं.

कृषि के क्षेत्र में खाद के रूप में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश आदि पोषक तत्व खेतों में डाला जाता है. इन तत्वों को सूक्मजीवों द्वारा भी पूरित किया जा सकता है. इससे रासायनिक खादों का प्रयोग कम किया जा सकता है.
-वैज्ञानिक डॉ अनिल सक्सेना, निदेशक, राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो

Intro:मऊ। सूक्ष्मजीवों का हमारे जीवन में कितना महत्व है और यह किस तरह से मृदा और फसलों को प्रभावित करते हैं. इसे जानने के लिए देशी योजना के प्रशिक्षुओं को उप निदेशक कृषि एसपी श्रीवास्तव के नेतृत्व में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भा.कृ.अनु.प) लाया गया. जहां वैज्ञानिकों ने कृषि इनपुट डिलर्स को विस्तृत तौर पर सूक्ष्मजीवों के बारे में बताया. इस दौरान जिले के डीएम ने भी राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (NBAIM), कुशमौर में निरीक्षण कर वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे प्रयोंगों की जानकारी ली.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रधान वैज्ञानिक डॉ आलोक श्रीवास्तव, आर्सेनिक सहित 9 प्रकार के तत्वों पर शोध कर रही डॉ रेणु, डॉ पवन शर्मा, उप कृषि निदेशक एसपी श्रीवास्तव, जिला भूमि संरक्षण अधिकारी उपस्थित रहे.


Body:बता दें कि कृषि संसाधन विक्रय केंद्र चलाने वाले लाइसेंसधारी विक्रेताओं को देशी योजना (DAESI - Diploma in Agricultural Extension Services for Input Dealers) के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस कोर्स की शुरुआत वर्ष 2003 में हैदराबाद स्थित कृषि मंत्रालय की संस्था मैनेज (MANAGE) द्वारा की गई थी. जो पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न राज्यों द्वारा संचालित किया जा रहा है. इस एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रशिक्षित कृषि इनपुट डीलर्स तैयार करना है.

मऊ में कुशमौर स्थित ICAR-NBAIM में देशी योजना के प्रशिक्षुओं और कृषि विभाग के तकनीकी सहायकों को वैज्ञानिकों ने बारीकी से सूक्ष्मजीवों का महत्व समझाया. इस दौरान जिलाधिकारी ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि देश के विकास का रास्ता गांव से होकर गुजरता है. गांव के किसानों को इंटरनेट की सहायता से कोई भी जानकारी मिल सकती है. सूक्ष्मजीव प्रकृति की अनमोल धरोहर हैं इनके बिना फसल उत्पादन की परिकल्पना करना भी नामुमकिन है. जीव जगत में होने वाली समस्त गतिविधियों में यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी भूमिका निभाते हैं.

ट्राईकोडर्मा - सूक्ष्म जीवों में ट्राईकोडर्मा महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह मृतोपजीवी कवक है जो प्रायः मृतोपजीवी रूप में मृदा, जल तथा पौधों या जैविक अवशेषों पर पाया जाता है. कृषि की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है. प्रमुख रूप से इसका प्रयोग पौध रोग कारक जीवों की रोकथाम के लिए किया जाता है. यह एक जैविक फफूंद नाशी है जो विभिन्न प्रकार की कवक जनित बीमारियों को रोकने में मदद करता है. जिससे रसायनिक फफूंद नाशक के ऊपर निर्भरता कम हो जाती है. इसका प्रयोग प्राकृतिक रूप से सुरक्षित माना जाता है तथा प्रकृति में इसका कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलता.

मीडिया से बात करते हुए डीएम ने कहा कि जिले में स्थित इस संस्था में वैज्ञानिकों के साथ संवाद किया. फंगस कल्चर्स का उपयोग करके, कम पानी और कम खाद में भी पैदावार ली जा सकती है इसकी जानकारी मिली. मैनेज द्वारा संचालित कोर्स के प्रशिक्षु मऊ के किसानों के लिए गेम चेंजर साबित होंगे.

राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (NBAIM) के निदेशक वैज्ञानिक डॉ अनिल सक्सेना ने कहा कि जो चीज दिखाई नहीं देती लोग उसके बारे में जानकारी नहीं रखते. लेकिन सूक्ष्मजीव कृषि के लिए अत्यंत उपयोगी हैं. पूरे इकोसिस्टम में हो रही गतिविधियों में सभी में सूक्मजीवों का महत्व है. कृषि के क्षेत्र में खाद के रूप में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश आदि पोषक तत्व खेतों में डाला जाता है. इन तत्वों को सूक्मजीवों द्वारा भी पूरित किया जा सकता है. इससे रासायनिक खादों का प्रयोग कम किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि ब्यूरो द्वारा भी अनेक सूक्ष्मजीवों को विकसित किया गया है. जिनके द्वारा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक, सल्फर की पूर्ति की जाती है. किसानों में जागरूकता के सवाल पर कहा कि आसपास के क्षेत्रों में किसानों को इसके प्रति जागरूक किया जा रहा है. पिछले तीन सालों में कृषि अधिकारियों और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किसानों के लिए प्रदर्शनी लगाई गई. कुछ समय लगेगा लेकिन सूक्ष्म जीवों के प्रति किसान अब धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं.

बाईट - ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी (जिलाधिकारी, मऊ)
बाईट - डॉ अनिल सक्सेना (निदेशक, राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो - NBAIM, मऊ)




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