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कोरोना काल में पैरेंट्स मजबूर, बच्चों को भेज रहे सरकारी स्कूल

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Published : Aug 14, 2020, 7:51 PM IST

देश में लॉकडाउन के बाद बंद हुए बाजार और उद्योग से काफी लोग बेरोजगार हो गए. मऊ में मेहनत मजदूरी करके बच्चों को कान्वेंट स्कूल में पढ़ाने वाले अभिभावकों पर भी इसकी गाज गिरी है. बरोजगारी के चलते कई अभिभावक अपने बच्चों का नामांकन परिषदीय विद्यालयों में करवाने पर मजबूर हो गए हैं.

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लॉकडाउन के बाद बदल गया बच्चों का स्कूल.

मऊ: कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए किए गए देशव्यापी लॉकडाउन से पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है. बाजार और उद्योग बन्द होने से काफी लोग बेरोजगार हो गए. ऐसे में मेहनत मजदूरी करके बच्चों को कान्वेंट स्कूल में पढ़ाने वाले अभिभावकों को भी काफी परेशानियों का सामना करनाा पड़ रहा है. पैसे की किल्लत के चलते कई अभिभावक अपने बच्चों का नामांकन परिषदीय विद्यालयों में करवाने पर मजबूर हो गए हैं.

मजबूर कामगारों की दास्तां
मऊ जनपद के प्राथमिक विद्यालय रहजनिया में वीरेन्द्र यादव ने अपने बच्चे साकेत का नामांकन कक्षा दो में कराया है. उन्होंने बताया कि मेरा बेटा कान्वेंट स्कूल में पढ़ता था, लेकिन इस समय बेरोजगार होने के कारण मैं बच्चे की फीस जमा करने में असमर्थ हूं. उन्होंने बताया कि रेलवे स्टेशन पर पल्लेदारी करके ठीक-ठाक कमाई हो जाती थी, लेकिन लॉकडाउन के बाद से वह भी बंद हो गई. स्कूल वाले 800 रुपये महीने फीस की मांग कर रहे हैं, जब खाने के लिए पैसे ही नहीं हैं, तो फीस कैसे दी जाय. अब बच्चों को गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाऊंगा, सुना है यहां भी अच्छी पढ़ाई होती है, वह भी फ्री में.

लॉकडाउन के बाद बदल गया बच्चों का स्कूल.
वीरेन्द्र यादव जैसे अभिभावक जो मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में भेजते थे कि अच्छी शिक्षा पाकर उनका बच्चा एक दिन बड़ा आदमी बनेगा और गरीबी दूर होगी. लेकिन कोरोना ने उनकी मजदूरी छीन ली.

उम्मीद का सहारा परिषदीय विद्यालय

कोरोना काल में सभी प्राइवेट स्कूल बंद हैं. इस दौरान उम्मीद का सहारा परिषदीय विद्यालय बन रहा है. सरकार के प्रयास से परिषदीय स्कूलों की दशा में काफी सुधार हुआ है. सरकारी टीचर गांव में घर-घर जाकर बच्चों को किताबें और ड्रेस महैया करा रहें हैं. वहीं बच्चों को शिक्षित करने के लिए कोविड-19 के प्रोटोकॉल के तरह तमाम गतिविधि कर रहें हैं, जिससे लोगों का आकर्षण परिषदीय विद्यालयों की तरफ बढ़ रहा है.

प्राथमिक विद्यालय रहजनिया की शिक्षिका तपस्या सिंह ने बताया कि इस वर्ष नामांकन का औसत बढ़ रहा है, जो बच्चे पहले यहां पढ़कर कान्वेंट में पढ़ रहे थे, वह पुनः प्राथमिक विद्यालय में नामंकन करवा रहें हैं. नए सत्र में अभी तक 25 बच्चों का नामांकन हुआ है, जिसमें से अधिकांश कान्वेंट स्कूल से जुड़े बच्चे हैं. बच्चों के नामंकन के पीछे कोरोना में परिजनों के आर्थिक हालात है. हम लोगों लॉकडाउन के बाद से ही लगातार शिक्षा से जुड़ी गतिविधियों को करवा रहे हैं. व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से हम लोगों ने बच्चों को वीडियो मैटेरियल दिया. एक-एक बच्चों को फोन करके विद्यालय बच्चों के परिवार से जुड़ा रहा.

बेसिक शिक्षा अधिकारी ने दी जानकारी
बेसिक शिक्षा अधिकारी ओपी त्रिपाठी ने बताया कि परिषदीय विद्यालय के शिक्षकों के मेहनत और शासन की नीतियों के कारण नामाकंन में वृद्धि हो रही है. परिषदीय स्कूल में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहें हैं. कोरोना काल में जब निजी स्कूल बंद है, उस समय हमारे अध्यापक स्वेच्छा से विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से बच्चों को शिक्षित करने में जुटे हुए हैं.

मऊ: कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए किए गए देशव्यापी लॉकडाउन से पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है. बाजार और उद्योग बन्द होने से काफी लोग बेरोजगार हो गए. ऐसे में मेहनत मजदूरी करके बच्चों को कान्वेंट स्कूल में पढ़ाने वाले अभिभावकों को भी काफी परेशानियों का सामना करनाा पड़ रहा है. पैसे की किल्लत के चलते कई अभिभावक अपने बच्चों का नामांकन परिषदीय विद्यालयों में करवाने पर मजबूर हो गए हैं.

मजबूर कामगारों की दास्तां
मऊ जनपद के प्राथमिक विद्यालय रहजनिया में वीरेन्द्र यादव ने अपने बच्चे साकेत का नामांकन कक्षा दो में कराया है. उन्होंने बताया कि मेरा बेटा कान्वेंट स्कूल में पढ़ता था, लेकिन इस समय बेरोजगार होने के कारण मैं बच्चे की फीस जमा करने में असमर्थ हूं. उन्होंने बताया कि रेलवे स्टेशन पर पल्लेदारी करके ठीक-ठाक कमाई हो जाती थी, लेकिन लॉकडाउन के बाद से वह भी बंद हो गई. स्कूल वाले 800 रुपये महीने फीस की मांग कर रहे हैं, जब खाने के लिए पैसे ही नहीं हैं, तो फीस कैसे दी जाय. अब बच्चों को गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाऊंगा, सुना है यहां भी अच्छी पढ़ाई होती है, वह भी फ्री में.

लॉकडाउन के बाद बदल गया बच्चों का स्कूल.
वीरेन्द्र यादव जैसे अभिभावक जो मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में भेजते थे कि अच्छी शिक्षा पाकर उनका बच्चा एक दिन बड़ा आदमी बनेगा और गरीबी दूर होगी. लेकिन कोरोना ने उनकी मजदूरी छीन ली.

उम्मीद का सहारा परिषदीय विद्यालय

कोरोना काल में सभी प्राइवेट स्कूल बंद हैं. इस दौरान उम्मीद का सहारा परिषदीय विद्यालय बन रहा है. सरकार के प्रयास से परिषदीय स्कूलों की दशा में काफी सुधार हुआ है. सरकारी टीचर गांव में घर-घर जाकर बच्चों को किताबें और ड्रेस महैया करा रहें हैं. वहीं बच्चों को शिक्षित करने के लिए कोविड-19 के प्रोटोकॉल के तरह तमाम गतिविधि कर रहें हैं, जिससे लोगों का आकर्षण परिषदीय विद्यालयों की तरफ बढ़ रहा है.

प्राथमिक विद्यालय रहजनिया की शिक्षिका तपस्या सिंह ने बताया कि इस वर्ष नामांकन का औसत बढ़ रहा है, जो बच्चे पहले यहां पढ़कर कान्वेंट में पढ़ रहे थे, वह पुनः प्राथमिक विद्यालय में नामंकन करवा रहें हैं. नए सत्र में अभी तक 25 बच्चों का नामांकन हुआ है, जिसमें से अधिकांश कान्वेंट स्कूल से जुड़े बच्चे हैं. बच्चों के नामंकन के पीछे कोरोना में परिजनों के आर्थिक हालात है. हम लोगों लॉकडाउन के बाद से ही लगातार शिक्षा से जुड़ी गतिविधियों को करवा रहे हैं. व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से हम लोगों ने बच्चों को वीडियो मैटेरियल दिया. एक-एक बच्चों को फोन करके विद्यालय बच्चों के परिवार से जुड़ा रहा.

बेसिक शिक्षा अधिकारी ने दी जानकारी
बेसिक शिक्षा अधिकारी ओपी त्रिपाठी ने बताया कि परिषदीय विद्यालय के शिक्षकों के मेहनत और शासन की नीतियों के कारण नामाकंन में वृद्धि हो रही है. परिषदीय स्कूल में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहें हैं. कोरोना काल में जब निजी स्कूल बंद है, उस समय हमारे अध्यापक स्वेच्छा से विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से बच्चों को शिक्षित करने में जुटे हुए हैं.

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