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सुप्रीम कोर्ट में अल्पसंख्यक कानून के खिलाफ याचिका दायर

धर्मगुरू देवकीनंदन ठाकुरजी महाराज (Religious Guru Devkinandan Thakurji Maharaj) ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) अधिनियम 1992 की धारा 2 सी की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है.

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धर्मगुरू देवकीनंदन ठाकुरजी महाराज
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Published : Jun 4, 2022, 8:36 PM IST

मथुरा: धर्मगुरू देवकीनंदन ठाकुरजी महाराज (Religious Guru Devkinandan Thakurji Maharaj) ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) अधिनियम 1992 की धारा 2 सी की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है. याचिका में जनसंख्या, धार्मिक और भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक माने गये समुदाय को विशेष अधिकार देने तथा देश के विभिन्न राज्यों और जिलों में हिंदुओं की कम आबादी के बावजूद ऐसे अधिकारों से वचिंत रखने को सविंधान की मूल भावना के विपरीत बताया गया है. देवकीनंदन महाराज ने याचिका में राज्यों के साथ जिलेवार अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग रखी है.

अल्पसंख्यक कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अल्पसंख्यक अधिनियम कानून को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29 और 30 के विपरीत बताया है याचिका में कहा गया है कि 17 मई 1992 को अधिनियम के प्रभाव में आने पर बेलगाम शक्ति का उपयोग करके केंद्र ने मनमाने ढंग से मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी आदि 5 समुदायों को अधिसूचित किया है, जबकि हिंदू धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर में वास्तविक अल्पसंख्यक हैं, राज्य स्तर पर ‘अल्पसंख्यक’ की पहचान न होने के कारण अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन नहीं कर सकते हैं.

प्रियाकान्तजू मंदिर के संस्थापक देवकीनंदन महाराज की ओर से याचिका में राज्यों में विभिन्न धर्मों के अनुयाईयों की संख्यां के आकंडे प्रस्तुत करते हुए चिंता जाहिर की है. याचिका में कहा गया है कि 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं लेकिन फिर भी वो अपने पसंद के शैक्षणिक संस्थान नहीं खोल सकते जबकि संविधान अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है.

इसे भी पढ़ेंः धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले में अंजुमन इंतजामिया के खिलाफ 6 जून को होगी सुनवाई

याचिका में कहा गया है कि लद्दाख में सिर्फ 1 प्रतिशत, मिजोरम में 2.75 फीसदी, लक्षद्वीप में 2.77 फीसदी, कश्मीर में 4 फीसदी, नागालैंड में 8.74 फीसदी, मेघालय में 11.52 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 29 फीसदी, पंजाब में 38.49 फीसदी और मणिपुर में 41.29 फीसदी हिंदू हैं. सरकार ने उन्हें एनसीएम अधिनियम की धारा 2 (सी) और एनसीएमईआई अधिनियम की धारा 2 (एफ) के तहत ‘अल्पसंख्यक’ घोषित नहीं किया है. यहां हिंदू अनुच्छेद 29-30 के तहत संरक्षित नहीं हैं और अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना-प्रशासन नहीं कर सकते हैं.

दूसरी ओर लक्षद्वीप में 96.58 प्रतिशत, कश्मीर में 95 प्रतिशत, लद्दाख में 46 प्रतिशत मुस्लिम हैं लेकिन अधिनियम के तहत केंद्र ने मनमाने ढंग से मुसलमानों को अल्पसंख्यक घोषित किया है. इसी तरह ईसाइयों को भी अल्पसंख्यक घोषित किया गया है, जबकि नागालैंड में 88.10 प्रतिशत, मिजोरम में 87.16 प्रतिशत, मेघालय में 74.59 प्रतिशत ईसाई निवास करते हैं. पंजाब में सिख 57.69 प्रतिशत हैं और लद्दाख में बौद्ध 50 प्रतिशत हैं यह भी अल्पसंख्यक माने गये हैं. ये समुदाय अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन कर सकते हैं, लेकिन हिंदुओं को यह अधिकार नहीं हैं.

प्रियाकान्तजू मंदिर सचिव विजय शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में वकील आशुतोष दुबे (Advocate Ashutosh Dubey) के माध्यम से जनहित याचिका दायर की गयी है, जिसमें अल्पसंख्यक कानून में हिंदुओं के साथ भेदभाव को असवैंधानिक बताते हुए इसकी समीक्षा करने की मांग की है. याचिका में राज्यों के साथ जिलेवार अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग रखी है.

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मथुरा: धर्मगुरू देवकीनंदन ठाकुरजी महाराज (Religious Guru Devkinandan Thakurji Maharaj) ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) अधिनियम 1992 की धारा 2 सी की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है. याचिका में जनसंख्या, धार्मिक और भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक माने गये समुदाय को विशेष अधिकार देने तथा देश के विभिन्न राज्यों और जिलों में हिंदुओं की कम आबादी के बावजूद ऐसे अधिकारों से वचिंत रखने को सविंधान की मूल भावना के विपरीत बताया गया है. देवकीनंदन महाराज ने याचिका में राज्यों के साथ जिलेवार अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग रखी है.

अल्पसंख्यक कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अल्पसंख्यक अधिनियम कानून को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29 और 30 के विपरीत बताया है याचिका में कहा गया है कि 17 मई 1992 को अधिनियम के प्रभाव में आने पर बेलगाम शक्ति का उपयोग करके केंद्र ने मनमाने ढंग से मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी आदि 5 समुदायों को अधिसूचित किया है, जबकि हिंदू धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर में वास्तविक अल्पसंख्यक हैं, राज्य स्तर पर ‘अल्पसंख्यक’ की पहचान न होने के कारण अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन नहीं कर सकते हैं.

प्रियाकान्तजू मंदिर के संस्थापक देवकीनंदन महाराज की ओर से याचिका में राज्यों में विभिन्न धर्मों के अनुयाईयों की संख्यां के आकंडे प्रस्तुत करते हुए चिंता जाहिर की है. याचिका में कहा गया है कि 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं लेकिन फिर भी वो अपने पसंद के शैक्षणिक संस्थान नहीं खोल सकते जबकि संविधान अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है.

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याचिका में कहा गया है कि लद्दाख में सिर्फ 1 प्रतिशत, मिजोरम में 2.75 फीसदी, लक्षद्वीप में 2.77 फीसदी, कश्मीर में 4 फीसदी, नागालैंड में 8.74 फीसदी, मेघालय में 11.52 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 29 फीसदी, पंजाब में 38.49 फीसदी और मणिपुर में 41.29 फीसदी हिंदू हैं. सरकार ने उन्हें एनसीएम अधिनियम की धारा 2 (सी) और एनसीएमईआई अधिनियम की धारा 2 (एफ) के तहत ‘अल्पसंख्यक’ घोषित नहीं किया है. यहां हिंदू अनुच्छेद 29-30 के तहत संरक्षित नहीं हैं और अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना-प्रशासन नहीं कर सकते हैं.

दूसरी ओर लक्षद्वीप में 96.58 प्रतिशत, कश्मीर में 95 प्रतिशत, लद्दाख में 46 प्रतिशत मुस्लिम हैं लेकिन अधिनियम के तहत केंद्र ने मनमाने ढंग से मुसलमानों को अल्पसंख्यक घोषित किया है. इसी तरह ईसाइयों को भी अल्पसंख्यक घोषित किया गया है, जबकि नागालैंड में 88.10 प्रतिशत, मिजोरम में 87.16 प्रतिशत, मेघालय में 74.59 प्रतिशत ईसाई निवास करते हैं. पंजाब में सिख 57.69 प्रतिशत हैं और लद्दाख में बौद्ध 50 प्रतिशत हैं यह भी अल्पसंख्यक माने गये हैं. ये समुदाय अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन कर सकते हैं, लेकिन हिंदुओं को यह अधिकार नहीं हैं.

प्रियाकान्तजू मंदिर सचिव विजय शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में वकील आशुतोष दुबे (Advocate Ashutosh Dubey) के माध्यम से जनहित याचिका दायर की गयी है, जिसमें अल्पसंख्यक कानून में हिंदुओं के साथ भेदभाव को असवैंधानिक बताते हुए इसकी समीक्षा करने की मांग की है. याचिका में राज्यों के साथ जिलेवार अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग रखी है.

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