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Mathura Holi : होलिका दहन के बाद अंगारों के बीच से निकलता है पंडा, देखकर रह जाएंगे दंग - मथुरा की होली की परंपरा

मथुरा में सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन पंडा परिवार के लोग करते आ रहे हैं. होलिका दहन होने के बाद अंगारों के बीच से मोनू पंडा निकलता है. इस दृश्य को देखने के लिए गांव में लोगों की भीड़ लग जाती है.

Mathura Holi
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Published : Mar 8, 2023, 9:06 AM IST

मथुरा में होलिका दहन के बाद की परंपरा

मथुरा: जनपद मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर शेरगढ़ कस्बे के फालेन गांव में सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया गया. शुभ मुहूर्त के बाद विशाल होलिका के अंगारों के बीच से मोनू पंडा नंगे पांव निकला. अंगारों के बीच से निकले पर उसके शरीर पर एक भी खरोंच नहीं आई. इस नजारे को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग गांव पहुंचते हैे.

शेरगढ़ क्षेत्र के फालेन गांव जहां प्राचीन नरसिंह भगवान और पहलाद का प्राचीन मंदिर बना हुआ है, इसी मंदिर में पंडा परिवार का सदस्य 40 दिन की कठोर तपस्या पर बैठता है. इसके बाद घंटों जप करने के बाद जब तपस्या सफल हो जाती है तो होलिका दहन की भोर तकरीबन 4 बजे शुभ मुहूर्त में मोनू पंडा अंगारों के बीच से निकलता है.

30 फीट लंबी और 25 फीट चौड़ी सात गांव की एक विशाल होलिका फालेन गांव में लोगों द्वारा रखी जाती है. होलिका दहन से पूर्व महिलाओं द्वारा विशाल होलिका की विधि-विधान से पूजा की जाती है और रात में होलिका दहन शुरू होता है. पंडा परिवार की बहन पहलाद कुंड में जैसे ही मोनू पंडा स्नान करके निकलता है उसके आगे दूध की धार द्वारा होलिका तक पहुंचती है. उसके बाद मोनू उस होलिका के बीच में से नंगे पांव निकलता है.

फालेन गांव में प्राचीन परंपरा को देखने के लिए हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और इस नजारे को देखकर अचंभित रह जाते हैं. होली का महोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ 2 दिन पूर्व ही इस गांव में प्रारंभ हो जाता है. ढोल-नगाड़े, बैंडबाजे की धुन पर सभी लोग झूमते रहते हैं और एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हैं.

यह भी पढ़ें: Holi पर कौन सा रंग आपके लिए है शुभ, जन्मतिथि के अनुसार जानें अपना कलर मैच

मथुरा में होलिका दहन के बाद की परंपरा

मथुरा: जनपद मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर शेरगढ़ कस्बे के फालेन गांव में सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया गया. शुभ मुहूर्त के बाद विशाल होलिका के अंगारों के बीच से मोनू पंडा नंगे पांव निकला. अंगारों के बीच से निकले पर उसके शरीर पर एक भी खरोंच नहीं आई. इस नजारे को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग गांव पहुंचते हैे.

शेरगढ़ क्षेत्र के फालेन गांव जहां प्राचीन नरसिंह भगवान और पहलाद का प्राचीन मंदिर बना हुआ है, इसी मंदिर में पंडा परिवार का सदस्य 40 दिन की कठोर तपस्या पर बैठता है. इसके बाद घंटों जप करने के बाद जब तपस्या सफल हो जाती है तो होलिका दहन की भोर तकरीबन 4 बजे शुभ मुहूर्त में मोनू पंडा अंगारों के बीच से निकलता है.

30 फीट लंबी और 25 फीट चौड़ी सात गांव की एक विशाल होलिका फालेन गांव में लोगों द्वारा रखी जाती है. होलिका दहन से पूर्व महिलाओं द्वारा विशाल होलिका की विधि-विधान से पूजा की जाती है और रात में होलिका दहन शुरू होता है. पंडा परिवार की बहन पहलाद कुंड में जैसे ही मोनू पंडा स्नान करके निकलता है उसके आगे दूध की धार द्वारा होलिका तक पहुंचती है. उसके बाद मोनू उस होलिका के बीच में से नंगे पांव निकलता है.

फालेन गांव में प्राचीन परंपरा को देखने के लिए हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और इस नजारे को देखकर अचंभित रह जाते हैं. होली का महोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ 2 दिन पूर्व ही इस गांव में प्रारंभ हो जाता है. ढोल-नगाड़े, बैंडबाजे की धुन पर सभी लोग झूमते रहते हैं और एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हैं.

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