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श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ा है यमुना किनारे बसा 'कोइ ले' गांव, जानिए पूरी कहानी...

कान्हा नगरी मथुरा में यमुना नदी के किनारे बसा 'कोइ ले' घाट और गांव आज भी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की यादों को संजोए हुए है. ETV BHARAT के साथ जानिए कोइ ले गांव की कहानी...

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Published : Aug 24, 2021, 6:45 PM IST

मथुराः जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर यमुना नदी के किनारे बसा 'कोइ ले' घाट और गांव आज भी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की यादों को संजोए हुए है. बताया जाता है कि कोइ ले गांव जो द्वापर युग का है. भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली में द्वापर युग के साक्षय भी देखने को मिलते हैं. क्या है कोइ ले गांव की कहानी ईटीवी भारत के साथ जानिए.

इतिहासकारों और ग्रामीणों के अनुसार वासुदेव ने यमुना पार करते समय यमुना का रौद्र रूप देखकर कहा था कोइ ले, कोइ ले, मेरे लल्ला को कोइ ले, ले. जिस घाट के पास वासुदेस ने कोइ ले कहा था, उसके किनारे बसे उस गांव कोइ को कोइ ले पड़ गया था. यमुना नदी के किनारे बसा कोइ ले घाट ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा सुंदरीकरण कराया गया है. घाट किनारे वासुदेव और श्रीकृष्ण का प्राचीन मंदिर बना हुआ है. वही एक प्रतिमा भी है जिसमें वासुदेव श्री कृष्ण भगवान को सूप में बैठाकर यमुना पार कराने के लिए जा रहे हैं. मंदिर में दर्शन करने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.


पौराणिक मान्यता और साक्षय
द्वापर युग में देवकी की आठवीं संतान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र में राजा कंस के कारागार में हुआ था. उस दिन घनघोर मूसलाधार बारिश हो रही थी. श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही कारागार के सभी पहरेदार अचानक बेहोश हो गए. इसके बाद वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण को एकांत और सुरक्षित स्थान पर गोकुल ले जाने के लिए सिर पर छाज में बैठा कर यमुना पार करा रहे. इसी बीच यमुनाजी का विकराल रूप देखकर वासुदेव घबरा गए. यमुना नदी के मध्य बीचो-बीच जाकर वासुदेव को लगा कि मेरा लल्ला पानी में डूब जाएगा उस समय यमुना महारानी कृष्ण भगवान के चरण स्पर्श करने के लिए अतुल्य थी. यमुना का प्रभाव और विकराल रूप देखकर वासुदेव कहने लगे कोइ ले, कोइ ले, मेरे लल्ला को कोइ ले ले.

यमुना मैया ने किए कृष्ण के चरण स्पर्श
इसके बाद यमुना नदी पार कर आते समय वासुदेव छाज में बैठे बाल रूप कृष्ण भगवान ने अपने पैर छाज से नीचे लटका दिए. कृष्ण के चरण स्पर्श करने के बाद यमुना महारानी ने अपना रुद्र रूप शांत किया और जलस्तर घट गया. वासुदेव कृष्ण को लेकर सुरक्षित गोकुल पहुंच गए. वहां जाकर कृष्ण को रुकमणी के पास छोड़ दिया और वहां से एक कन्या अपने साथ वापस ले आए. वहीं, स्थानीय ग्रामीण ने बताया कोइ ले गांव अत्यंत प्राचीन है. यमुना नदी के किनारे बसा हुआ गांव है. प्राचीन मंदिर में दर्शन करने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं. वासुदेव ने कृष्ण भगवान को जब यमुना नदी पार कराई थी तब कहा था कोइ ले, कोइ ले,मेरे लल्ला को कोई बचा ले.

इसे भी पढ़ें-यूपी की राजनीति: दूसरे राज्यों में 'हीरो', वह दल यहां साबित हो रहे 'जीरो'



क्या कहते हैं इतिहासकार

शत्रुघ्न शर्मा वरिष्ठ इतिहासकार ने बताया मथुरा में श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई कई साक्ष्य प्रमाण आज भी देखने को मिलते हैं. इन्हीं संदर्भ में से एक कोइ ले गांव हैं. उन्होंने बताया कि जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ था. उस समय घनघोर मूसलाधार बारिश और बाढ़ आई थी. वासुदेव कृष्ण को छाज (सूप) में रखकर यमुना नदी पार करा रहे थे. यमुना नदी में जलस्तर काफी बढ़ा हुआ था और जल के प्रवाह को देखकर वासुदेव घबरा गए और कहने लगे कोइ ले, कोइ ले, मेरा लल्ला डूब जाएगा. इसके बाद कृष्ण ने अपने चरण छाज में से नीचे लटका दिए. कृष्ण के चरण स्पर्श करने के बाद यमुना नदी का जल शांत होकर घट गया. वासुदेव सुरक्षित कृष्ण को लेकर गोकुल पहुंच गए. इसके साक्षय और प्रमाण मिलते हैं.

मथुराः जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर यमुना नदी के किनारे बसा 'कोइ ले' घाट और गांव आज भी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की यादों को संजोए हुए है. बताया जाता है कि कोइ ले गांव जो द्वापर युग का है. भगवान श्रीकृष्ण की जन्म स्थली में द्वापर युग के साक्षय भी देखने को मिलते हैं. क्या है कोइ ले गांव की कहानी ईटीवी भारत के साथ जानिए.

इतिहासकारों और ग्रामीणों के अनुसार वासुदेव ने यमुना पार करते समय यमुना का रौद्र रूप देखकर कहा था कोइ ले, कोइ ले, मेरे लल्ला को कोइ ले, ले. जिस घाट के पास वासुदेस ने कोइ ले कहा था, उसके किनारे बसे उस गांव कोइ को कोइ ले पड़ गया था. यमुना नदी के किनारे बसा कोइ ले घाट ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा सुंदरीकरण कराया गया है. घाट किनारे वासुदेव और श्रीकृष्ण का प्राचीन मंदिर बना हुआ है. वही एक प्रतिमा भी है जिसमें वासुदेव श्री कृष्ण भगवान को सूप में बैठाकर यमुना पार कराने के लिए जा रहे हैं. मंदिर में दर्शन करने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.


पौराणिक मान्यता और साक्षय
द्वापर युग में देवकी की आठवीं संतान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र में राजा कंस के कारागार में हुआ था. उस दिन घनघोर मूसलाधार बारिश हो रही थी. श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही कारागार के सभी पहरेदार अचानक बेहोश हो गए. इसके बाद वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण को एकांत और सुरक्षित स्थान पर गोकुल ले जाने के लिए सिर पर छाज में बैठा कर यमुना पार करा रहे. इसी बीच यमुनाजी का विकराल रूप देखकर वासुदेव घबरा गए. यमुना नदी के मध्य बीचो-बीच जाकर वासुदेव को लगा कि मेरा लल्ला पानी में डूब जाएगा उस समय यमुना महारानी कृष्ण भगवान के चरण स्पर्श करने के लिए अतुल्य थी. यमुना का प्रभाव और विकराल रूप देखकर वासुदेव कहने लगे कोइ ले, कोइ ले, मेरे लल्ला को कोइ ले ले.

यमुना मैया ने किए कृष्ण के चरण स्पर्श
इसके बाद यमुना नदी पार कर आते समय वासुदेव छाज में बैठे बाल रूप कृष्ण भगवान ने अपने पैर छाज से नीचे लटका दिए. कृष्ण के चरण स्पर्श करने के बाद यमुना महारानी ने अपना रुद्र रूप शांत किया और जलस्तर घट गया. वासुदेव कृष्ण को लेकर सुरक्षित गोकुल पहुंच गए. वहां जाकर कृष्ण को रुकमणी के पास छोड़ दिया और वहां से एक कन्या अपने साथ वापस ले आए. वहीं, स्थानीय ग्रामीण ने बताया कोइ ले गांव अत्यंत प्राचीन है. यमुना नदी के किनारे बसा हुआ गांव है. प्राचीन मंदिर में दर्शन करने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं. वासुदेव ने कृष्ण भगवान को जब यमुना नदी पार कराई थी तब कहा था कोइ ले, कोइ ले,मेरे लल्ला को कोई बचा ले.

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क्या कहते हैं इतिहासकार

शत्रुघ्न शर्मा वरिष्ठ इतिहासकार ने बताया मथुरा में श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई कई साक्ष्य प्रमाण आज भी देखने को मिलते हैं. इन्हीं संदर्भ में से एक कोइ ले गांव हैं. उन्होंने बताया कि जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ था. उस समय घनघोर मूसलाधार बारिश और बाढ़ आई थी. वासुदेव कृष्ण को छाज (सूप) में रखकर यमुना नदी पार करा रहे थे. यमुना नदी में जलस्तर काफी बढ़ा हुआ था और जल के प्रवाह को देखकर वासुदेव घबरा गए और कहने लगे कोइ ले, कोइ ले, मेरा लल्ला डूब जाएगा. इसके बाद कृष्ण ने अपने चरण छाज में से नीचे लटका दिए. कृष्ण के चरण स्पर्श करने के बाद यमुना नदी का जल शांत होकर घट गया. वासुदेव सुरक्षित कृष्ण को लेकर गोकुल पहुंच गए. इसके साक्षय और प्रमाण मिलते हैं.

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