ETV Bharat / state

कान्हा की नगरी में होली का खुमार, गोकुल में बरसीं प्यार भरी छड़ियां - मथुरा का समाचार

कान्हा की नगरी मथुरा में बसंत पंचमी से ही होली का डंडा गढ़ने के साथ ही ब्रज के सभी मंदिरों और गांव में होली की शुरुआत हो जाती है. ये 40 दिनों तक चलती रहती है.

कान्हा की नगरी में होली का खुमार
कान्हा की नगरी में होली का खुमार
author img

By

Published : Mar 26, 2021, 8:50 PM IST

मथुराः कान्हा की नगरी में होली का खुमार चढ़ चुका है. ये अनवरत 40 दिनों तक चलती रहती है. गोकुल कन्हैया की बाल लीलाओं का प्रमुख स्थान है. शुक्रवार को गोकुल के मुरलीधर घाट में छड़ीमार होली का आयोजन किया गया. जहां देश के कोने-कोने से आये श्रद्धालु भक्तों ने कान्हा के रंग में रंग कर छड़ी मार होली खेली. वहीं गोपिकाओं ने ग्वाल-वालों के साथ होली खेली.

गोकुल में बरसीं प्यार भरी छड़ियां

गोकुल में खेली गयी छड़ी मार होली

गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद के नंद भवन में ठाकुर जी के सामने राज भोग रखा गया. भगवान श्री कृष्ण और बलराम होली खेलने के लिये मुरली घाट को निकले. भगवान के बाल स्वरूप के डोला को लेकर सेवायत निकले उनके आगे ढोल-नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते-गाते झूमते हुए चल रहे थे. जगह-जगह फूलों की वर्षा हो रही थी. ढोला के पीछे हाथों में हरे बांस की छड़ी लेकर गोपियां चल रही थीं. रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थी. नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा. जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम था. भजन कीर्तन रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई. गोपियों ने ग्वालों को प्यार भरी छड़ी बरसाईं. जिन्हें अपने ऊपर महसूस कर वे आनंदित हो रहे थे.

गोपियां बरसा रही प्यार भरी छड़ियां
गोपियां बरसा रही प्यार भरी छड़ियां
भगवान के बाल स्वरूप के कारण होती है छड़ी मार होली

छड़ी मार होली गोकुल में ही खेली जाती है, भगवान कृष्ण और बलराम 5 वर्ष की आयु तक गोकुल में ही रहकर खेले-कूदे थे. इसलिए कहीं नटखट नंदलाल कान्हा को चोट न लग जाए. इसलिए यहां छड़ी मार होली खेली जाती है. गोकुल में ही भगवान कृष्ण पालना में झूले. उनका स्वरूप आज भी यहां झलकता है. गोकुल में भगवान कृष्ण का बचपन बीतने के कारण लाठी की जगह यहां छड़ी से होली खेली जाती है. ऐसा माना जाता है कि बाल स्वरूप भगवान श्री कृष्ण को लाठी से कहीं चोट न लग जाए. इसलिए गोपियां छड़ी से होली खेलती है. गोकुल में छड़ी मार होली का उत्सव परंपरा बन चुका है, जो सदियों से जारी है.

मथुराः कान्हा की नगरी में होली का खुमार चढ़ चुका है. ये अनवरत 40 दिनों तक चलती रहती है. गोकुल कन्हैया की बाल लीलाओं का प्रमुख स्थान है. शुक्रवार को गोकुल के मुरलीधर घाट में छड़ीमार होली का आयोजन किया गया. जहां देश के कोने-कोने से आये श्रद्धालु भक्तों ने कान्हा के रंग में रंग कर छड़ी मार होली खेली. वहीं गोपिकाओं ने ग्वाल-वालों के साथ होली खेली.

गोकुल में बरसीं प्यार भरी छड़ियां

गोकुल में खेली गयी छड़ी मार होली

गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद के नंद भवन में ठाकुर जी के सामने राज भोग रखा गया. भगवान श्री कृष्ण और बलराम होली खेलने के लिये मुरली घाट को निकले. भगवान के बाल स्वरूप के डोला को लेकर सेवायत निकले उनके आगे ढोल-नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते-गाते झूमते हुए चल रहे थे. जगह-जगह फूलों की वर्षा हो रही थी. ढोला के पीछे हाथों में हरे बांस की छड़ी लेकर गोपियां चल रही थीं. रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थी. नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा. जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम था. भजन कीर्तन रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई. गोपियों ने ग्वालों को प्यार भरी छड़ी बरसाईं. जिन्हें अपने ऊपर महसूस कर वे आनंदित हो रहे थे.

गोपियां बरसा रही प्यार भरी छड़ियां
गोपियां बरसा रही प्यार भरी छड़ियां
भगवान के बाल स्वरूप के कारण होती है छड़ी मार होली

छड़ी मार होली गोकुल में ही खेली जाती है, भगवान कृष्ण और बलराम 5 वर्ष की आयु तक गोकुल में ही रहकर खेले-कूदे थे. इसलिए कहीं नटखट नंदलाल कान्हा को चोट न लग जाए. इसलिए यहां छड़ी मार होली खेली जाती है. गोकुल में ही भगवान कृष्ण पालना में झूले. उनका स्वरूप आज भी यहां झलकता है. गोकुल में भगवान कृष्ण का बचपन बीतने के कारण लाठी की जगह यहां छड़ी से होली खेली जाती है. ऐसा माना जाता है कि बाल स्वरूप भगवान श्री कृष्ण को लाठी से कहीं चोट न लग जाए. इसलिए गोपियां छड़ी से होली खेलती है. गोकुल में छड़ी मार होली का उत्सव परंपरा बन चुका है, जो सदियों से जारी है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.