मथुरा: वृंदावन में जन्माष्टमी पर बांकेबिहारी मंदिर में हुए हादसे के बाद एक बार फिर स्थानीय प्रशासन के दावों की पोल खुली है. दरअसल, गिरिराजजी की परिक्रमा के लिए बड़ी संख्या में मथुरा पहुंचे भक्त बसों की छतों पर जान हथेली पर लेकर सफर करते नजर आए. शुक्र बस इतना रहा कि कहीं कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ. गिरिराजजी की परिक्रमा के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में भक्त मथुरा पहुंचते हैं. मथुरा में बड़ी संख्या में यात्रियों के पहुंचने से डग्गामार बसों की चांदी हो गई. प्रशासन और पुलिस की लापरवाही के चलते डग्गामार बसों ने यात्रियों को छतों पर खड़ा करवा लिया. शुक्र रहा कि कहीं भी कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ. इस पूरे मामले में स्थानीय प्रशासन की बड़ी लापरवाही एक बार फिर से उजागर हुई है.
बस की छत पर सफर करके गोवर्धन पहुंचे श्रद्धालु राजवीर गुलेरिया ने बताया कि बल चालक अंदर बैठाने के लिए 70 रुपये चार्ज करते हैं. जबकि बस की छत पर बैठाने के लिए 30 रुपये वसूले जा रहे हैं. कम किराए के लालच में श्रद्धालु बस की छत पर सफर कर रहे हैं. बता दें कि अन्नकूट पूजा से ही बड़ी संख्या में भक्त गिरिराजजी की परिक्रमा करने मथुरा पहुंचने लगते हैं.
ऐसे में डग्गामार वाहन मनमाना किराया वसूलते हैं. छतों पर कम किराए का झांसा देकर यात्रियों की जान जोखिम में डाल दी जाती है. स्थानीय प्रशासन और पुलिस इसे अनदेखा करती है. वृंदावन में जन्माष्टमी पर बांके बिहारी मंदिर में हुए हादसे के बाद भी प्रशासन सीख लेता नजर नहीं आ रहा है. भक्तों की सुरक्षा से खिलवाड़ अभी भी जारी है. अगर जल्द ही प्रशासन ने इस ओर ध्यान न दिया तो बड़ा हादसा हो सकता है.
क्यों आते हैं इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु ?
मथुरा स्थित गोवर्धन पर्वत गिरिराज नगरी के नाम से विश्व प्रसिद्ध है. मान्यता है कि इसी दिन नटखट कन्हैया ने इंद्र का घमंड तोड़कर अपने ब्रजवासियों की जान बचाई थी. द्वापर युग से चली आ रही यह परंपरा देश में आज भी कायम है. गोवर्धन में अन्नकूट का भोग लगाकर गिरिराज जी की पूजा बड़े धूमधाम के साथ की जाती है.
पर्वत ने भगवान कृष्ण से कहा कि हे प्रभु पूरे ब्रज में आपकी बृजवासी पूजा करते रहेंगे, तो मेरी पूजा कब होगी? यह सुनकर कृष्ण प्रसन्न हो गए और कहा कि दिवाली के अगले दिन इस पर्वत की पूजा की जाएगी. जिसे गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाएगा. सभी ब्रजवासी अलग-अलग व्यंजन तैयार करके इस पर्वत का भोग लगाएंगे, जिसे अन्नकूट पर्व के नाम से जाना जाएगा.द्वापर युग से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है.
इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए कृष्ण भगवान ने अपने ब्रजवासियों की जान बचाई, तभी से गोवर्धन अन्नकूट का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. बृजवासी अपने हाथ से 56 तरह के व्यंजन तैयार करते हैं और यहां पर पर्वत सिला का भोग लगाते हैं. 21 किलोमीटर के दायरे में फैले हुए पर्वत की श्रद्धालु परिक्रमा भी लगाते हुए नजर आते हैं. कहा जाता है कि द्वापर युग में ब्रज में इंद्र की पूजा बृजवासी करते चले आ रहे थे.
कृष्ण भगवान ने अपने ब्रजवासियों से कहा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करें, कोई दूसरे भगवान की पूजा करते हैं. इसपर ब्रजवासियों ने कहा कि हम अपने कान्हा की ही पूजा करेंगे. यह सुनकर इंद्र क्रोधित हो गए और ब्रज में मूसलाधार बारिश कर दी, जिससे सभी बृजवासी घबरा गए और अपने कान्हा को याद करने लगे. तभी कान्हा ने कन्नी उंगली पर पर्वत को उठाया और बृजवासियों की जान बचाई. कान्हा ने लगातार सात दिन तक पर्वत को उठाए रखा. जिसके बाद ब्रजवासियों ने नटखट कन्हैया को प्रसन्न करने के लिए अपने हाथ से 56 तरह के व्यंजन तैयार किए और भोग लगाया.