मथुरा : गोकुल में हुई छड़ी मार होली में हुरियारों पर जमकर छड़ियां बरसीं. इस दौरान वहां उड़ रहे रंग-बिरंगे गुलाल के बीच सतरंगी आसमान के नीचे अलौकिक दृश्य का नजारा हर किसी की आंखों में बस गया. श्री कृष्ण और बलराम का डोला मुरलीधर घाट पहुंचा, जिसके बाद हुरियारिनों के साथ श्री कृष्ण के रूप में हुरियारों ने छड़ी होली खेलकर इसकी शुरुआत की.
सोमवार को गोकुल में सुबह से ही छड़ी मार होली को लेकर उत्साह छाया रहा. एक-एक हुरियारे पर हुरियारिनों के समूह टूट पड़े. हुरियारे लाठियों के सहारे खुद को रोकने का प्रयास करते तो वहां मौजूद अन्य हुरियारनों को उकसा देते. मंदिर प्रांगण से करीब 12 बजे डोले में विराजमान होकर भगवान श्री कृष्ण और बलराम निकले. डोले के पीछे चल रही हुरियारनें रास्ते भर चुहलबाजी करतीं रहीं.
विभिन्न समुदायों की रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थी. नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा, जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था. भजन-कीर्तन और रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई. इस दौरान वहां मौजूद देसी-विदेशी भक्तों को भी छड़ियों का खूब सामना करना पड़ा.
विदेशी भक्त भी होली की इस उमंग में शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाए. छड़ी मार होली के दौरान देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु मौजूद थे. गोकुल में कृष्ण का बचपन बीतने के कारण यहां लाठी की जगह छड़ी से होली खेली जाती है. मान्यता है कि बाल कृष्ण को लाठी से कहीं लग न जाए, इसलिए गोपियां छड़ी से होली खेलती हैं. छड़ी मार होली गोकुल के मुरलीधर घाट से शुरू होती है. माना जाता है कि इसी घाट पर कान्हा ने सबसे पहले अपने अधरों पर मुरली रखी थी.