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मथुरा में छड़ी मार होली की धूम, हुरियारिनों से बचने के लिए गली-गली भागे हुरियारे

सोमवार को गोकुल में सुबह से ही छड़ी मार होली को लेकर उत्साह छाया रहा. गोकुल में हुई छड़ी मार होली में हुरियारों पर जमकर छड़ियां बरसीं. एक-एक हुरियारे पर हुरियारिनों के समूह टूट पड़े. हुरियारे लाठियों के सहारे खुद को रोकने का प्रयास करते तो वहां मौजूद अन्य हुरियारनों को उकसा देते. माना जाता है कि इसी घाट पर कान्हा ने सबसे पहले अपने अधरों पर मुरली रखी थी.

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Published : Mar 19, 2019, 10:25 AM IST

मथुरा में निकाले गए श्री कृष्ण डोले में नाचते श्रद्धालु

मथुरा : गोकुल में हुई छड़ी मार होली में हुरियारों पर जमकर छड़ियां बरसीं. इस दौरान वहां उड़ रहे रंग-बिरंगे गुलाल के बीच सतरंगी आसमान के नीचे अलौकिक दृश्य का नजारा हर किसी की आंखों में बस गया. श्री कृष्ण और बलराम का डोला मुरलीधर घाट पहुंचा, जिसके बाद हुरियारिनों के साथ श्री कृष्ण के रूप में हुरियारों ने छड़ी होली खेलकर इसकी शुरुआत की.

मथुरा में निकाले गए श्री कृष्ण डोले में नाचते श्रद्धालु

सोमवार को गोकुल में सुबह से ही छड़ी मार होली को लेकर उत्साह छाया रहा. एक-एक हुरियारे पर हुरियारिनों के समूह टूट पड़े. हुरियारे लाठियों के सहारे खुद को रोकने का प्रयास करते तो वहां मौजूद अन्य हुरियारनों को उकसा देते. मंदिर प्रांगण से करीब 12 बजे डोले में विराजमान होकर भगवान श्री कृष्ण और बलराम निकले. डोले के पीछे चल रही हुरियारनें रास्ते भर चुहलबाजी करतीं रहीं.

विभिन्न समुदायों की रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थी. नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा, जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था. भजन-कीर्तन और रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई. इस दौरान वहां मौजूद देसी-विदेशी भक्तों को भी छड़ियों का खूब सामना करना पड़ा.

विदेशी भक्त भी होली की इस उमंग में शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाए. छड़ी मार होली के दौरान देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु मौजूद थे. गोकुल में कृष्ण का बचपन बीतने के कारण यहां लाठी की जगह छड़ी से होली खेली जाती है. मान्यता है कि बाल कृष्ण को लाठी से कहीं लग न जाए, इसलिए गोपियां छड़ी से होली खेलती हैं. छड़ी मार होली गोकुल के मुरलीधर घाट से शुरू होती है. माना जाता है कि इसी घाट पर कान्हा ने सबसे पहले अपने अधरों पर मुरली रखी थी.

मथुरा : गोकुल में हुई छड़ी मार होली में हुरियारों पर जमकर छड़ियां बरसीं. इस दौरान वहां उड़ रहे रंग-बिरंगे गुलाल के बीच सतरंगी आसमान के नीचे अलौकिक दृश्य का नजारा हर किसी की आंखों में बस गया. श्री कृष्ण और बलराम का डोला मुरलीधर घाट पहुंचा, जिसके बाद हुरियारिनों के साथ श्री कृष्ण के रूप में हुरियारों ने छड़ी होली खेलकर इसकी शुरुआत की.

मथुरा में निकाले गए श्री कृष्ण डोले में नाचते श्रद्धालु

सोमवार को गोकुल में सुबह से ही छड़ी मार होली को लेकर उत्साह छाया रहा. एक-एक हुरियारे पर हुरियारिनों के समूह टूट पड़े. हुरियारे लाठियों के सहारे खुद को रोकने का प्रयास करते तो वहां मौजूद अन्य हुरियारनों को उकसा देते. मंदिर प्रांगण से करीब 12 बजे डोले में विराजमान होकर भगवान श्री कृष्ण और बलराम निकले. डोले के पीछे चल रही हुरियारनें रास्ते भर चुहलबाजी करतीं रहीं.

विभिन्न समुदायों की रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थी. नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा, जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था. भजन-कीर्तन और रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई. इस दौरान वहां मौजूद देसी-विदेशी भक्तों को भी छड़ियों का खूब सामना करना पड़ा.

विदेशी भक्त भी होली की इस उमंग में शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाए. छड़ी मार होली के दौरान देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु मौजूद थे. गोकुल में कृष्ण का बचपन बीतने के कारण यहां लाठी की जगह छड़ी से होली खेली जाती है. मान्यता है कि बाल कृष्ण को लाठी से कहीं लग न जाए, इसलिए गोपियां छड़ी से होली खेलती हैं. छड़ी मार होली गोकुल के मुरलीधर घाट से शुरू होती है. माना जाता है कि इसी घाट पर कान्हा ने सबसे पहले अपने अधरों पर मुरली रखी थी.

Intro:गोकुल में हुई छड़ी मार होली में हुरियारों पर जमकर छड़िया बरसी। इस दौरान वहां उड़ रहे रंग बिरंगे गुलाल के बीच सतरंगी आसमान के नीचे अलौकिक दृश्य बना रहा। श्री कृष्ण बलराम का डोला मुरलीधर घाट पहुंचा जिसके बाद हुरियारिनों के साथ श्री कृष्ण के रूप में छड़ी होली खेलकर इसकी शुरुआत की। सुबह से ही गोकुल में छड़ी मार होली को लेकर उत्साह छाया रहा।


Body:एक एक हुरियारे पर हुरियारिनो के समूह टूट पड़े हुरियारे लाठियों के सहारे खुद को रोकने का प्रयास करते तो वहां मौजूद अन्य हुरियारनो को उकसा देते ।मंदिर प्रांगण से करीब 12 बजे डोले में विराजमान होकर भगवान श्री कृष्ण और बलराम निकले इसके पीछे डोला था डोली के पीछे चल रही हुरियारने रास्ते में श्रद्धालु से चुहल करती रही। नंद चौक पर डोले के पहुंचते ही हुरियारने झूमि। बाल सेवायत चल रहे थे उनके आगे ढोल नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते गाते आगे बढ़ रहे थे। विभिन्न समुदायों की रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थी। नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था। भजन कीर्तन रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई। इस दौरान वहां मौजूद देसी विदेशी भक्तों को भी खूब छडीयो का सामना करना पड़ा।


Conclusion:विदेशी भक्त भी होली के इस उमंग में शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाए। छड़ी मार होली के दौरान देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु मौजूद थे। गोकुल में कृष्ण का बचपन बीतने के कारण यहां लाठी की जगह छड़ी से होली खेली जाती है। मान्यता है कि बालकृष्ण को लाठी से कहीं लग ना जाए इसलिए गोपियां छड़ी से होली खेलती है। छड़ी मार होली गोकुल के मुरलीधर घाट से शुरू होती है माना जाता है कि इसी घाट पर कान्हा ने सबसे पहले अपने अधरों पर मुरली रखी थी।
बाइट- श्रद्धालु मालती शर्मा
स्ट्रिंगर मथुरा
राहुल खरे
mb-9897000608
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