मैनपुरीः गरीबों के लिए संजीवनी कही जाने वाली आयुष्मान भारत योजना धरातल पर दम तोड़ती हुई नजर आ रही है. कार्ड धारकों का इलाज अस्पताल संचालक नकद भुगतान के बाद ही इलाज किया जाता है. ईटीवी भारत की टीम आयुष्मान योजना की पड़ताल मुख्यालय से सटे गांव में पहुंची. यहां गोल्डन कार्ड का नाम सुनते ही बुजुर्ग भड़क गया.
गोल्डन कार्ड देखते ही अस्पताल संचालक ने इलाज से मना किया
आयुष्मान योजना की हकीकत जानने के लिए ईटीवी की टीम जब नगला निरंजन के बाहर एक खोखे में बैठे बुजुर्ग से जब आयुष्मान भारत या गोल्डन कार्ड के बारे में जानना चाहा तो बुजुर्ग पहले तो भड़क गया. इसके बाद उसने बताया कि 2019 में गांव में डेंगू बुखार फैला था. बुजुर्ग ने बताया कि उसका बेटा भी डेंगू से पीड़ित था और जिला अस्पताल लेकर गए. जहां से डॉक्टरों ने बेटे को सैफई के लिए रेफर कर दिया. इसके बाद हमने बेटे को प्राइवेट अस्पताल के लिए रुख किया क्योंकि हमारे पास गोल्डन कार्ड था. बुजुर्ग ने बताया कि प्रावेट अस्पताल में गोल्डन कार्ड दिखाते ही अस्पताल संचालक भड़क गया और कहा कि आपके पास पैसा है तो इलाज कराइए नहीं तो इस कार्ड से इलाज नहीं होगा.
गोल्डन कार्ड को नहीं मानते अस्पताल संचालक
नगला निरंजन गांव के रामनरेश ने बताया कि मेरी पत्नी, बेटा और बेटी बीमार थे. आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तो आयुष्मान भारत के अंतर्गत गोल्डन कार्ड से इलाज कराने तीनों को शहर के एक निजी अस्पताल ले गए. अस्पताल में गोल्डन कार्ड दिखाया तो इलाज करने से साफ शब्दों में मना कर. रामनरेश ने बताया कि इसके बाद उसने रुपये जमा किए और अपने पत्नी बच्चों का इलाज करवाया.
भैंस बेचकर कर बेटे का कराया इलाज
गांव के ही सुरेश जोकि मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं उन्होंने बताया कि वह अपने बेटे के इलाज के लिए दो भैंसे बेच दी. सुरेश ने बताया कि उसके पास गोल्डन कार्ड था, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ. गांव में गोमती देवी या सुमन हो गांव के एक हिस्से में ईटीवी की टीम को 6 से 8 लोग के कार्ड तो मिले लेकिन इनको अपने इलाज के लिए या तो कर्ज लिया या इन्होंने पशुओं या जेवर बेच इलाज करवाया. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2011 में सर्वे के आधार पर जनपद मैनपुरी में एक लाख 10 हजार परिवारों को चिन्हित किया गया था अब तक 83500 कार्ड बने हैं, जिसमें 3070 लोग इस योजना के तहत निशुल्क इलाज भी करा चुके हैं.