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1962 में चीन ने धोखे से किया था हमला, हमारे पास नहीं थे आधुनिक हथियार: पूर्व सैनिक

1962 में हुए युद्ध में चीन ने धोखे से भारत पर आक्रमण किया था. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण हमारे सैनिकों के पास आधुनिक हथियार नहीं थे. चीन ने हमेशा भारत से विश्वासघात किया है, उस पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता. ये बातें 1962 का युद्ध लड़ चुके पूर्व सैनिक शालिगराम ने ईटीवी भारत से कहीं, जो उस समय कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात थे. देखिए हमारी ये रिपोर्ट...

former soldier shaligram story
पूर्व सैनिक शालिगराम.
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Published : Jun 21, 2020, 8:35 PM IST

मैनपुरी: जिले में थाना कुर्रा क्षेत्र के रहने वाले शालिगराम ने 1962 में भारत-चीन युद्ध लड़ा. इस युद्ध में भारत की करारी हार हुई. काफी संख्या में सैनिक हताहत हुए और वीरगति को प्राप्त हुए. वहीं युद्ध के दौरान कुछ सैनिक जीवित बच गए थे, जिनमें से कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात एक शालिगराम भी हैं.

former soldier shaligram story
पूर्व सैनिक शालिगराम.

धोखेबाज देश है चीन
ईटीवी भारत की टीम ने जब शालिगराम से बात की तो उन्होंने बताया कि 1962 में चीन ने धोखे से भारत पर आक्रमण किया था. मौजूदा समय में कोरोना जैसी भयंकर बीमारी से विश्व तबाह है. इससे भारत भी अछूता नहीं है. कोरोना के चलते देश की आर्थिक स्थिति खराब है, जिसका लाभ चीन ने उठाया और गलवान घाटी में हिंसक झड़प की. इस दौरान चीनी सैनिकों ने धोखे से हमारे सैनिकों की हत्या की है. चीन धोखेबाज देश है, जिस पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता.

कौन हैं शालिगराम
थाना कुर्रा क्षेत्र के बदनपुर गांव में वीर सपूत शालिगराम का जन्म हुआ. ये तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं. दोनों छोटे भाई किसान हैं. शालिगराम शांति स्वभाव के चलते परिवार में सबके चहेते हैं. वे कुमाऊं रेजीमेंट में सिपाही पद पर भर्ती हुए और कुछ दिन बाद लेह, लद्दाख के रिंजगला पर उनकी तैनाती कर दी गई.

ईटीवी भारत से बातचीत करते पूर्व सैनिक.

यूनिट के 114 सैनिक हुए थे शहीद
भारत और चीन के बीच हुए 1962 के युद्ध को याद करते हुए पूर्व सैनिक शालिगराम बताते हैं, 'हमारी यूनिट में 120 सैनिक थे. हम सभी सैनिक रिजंगला पहाड़ी पर तैनात थे. 18 नवंबर 1962 को देर रात सूचना मिली कि चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की है. इस पर हमारी यूनिट ने घुसपैठ कर रहे चीनी सैनिकों को मार गिराया. कुछ समय बाद हजारों की संख्या में चीनी सैनिक बैलों के गले में लालटेन लटकाकर उनके पीछे से आकर हमारी सेना पर आक्रमण कर दिया, जिसमें हमारे 114 सैनिक शहीद हो गए. 6 सैनिक जीवित शेष बचे, जिसमें एक मैं भी था.'

'आधुनिक हथियारों की थी कमी'
ईटीवी भारत से पूर्व सैनिक शालिगराम ने बताया, 'सन 1962 में भारत-चीन युद्ध में भारत को करारी हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि हमारे पास अत्याधुनिक शस्त्र नहीं थे. साथ ही हमारी कोई तैयारी भी नहीं थीं. अचानक चालाकी से चीन ने आक्रमण किया था. हम लोगों के पास थ्री नोट थ्री की राइफल और 60 कारतूस थे. वहीं उनके पास अच्छे आधुनिक हथियार थे, क्योंकि उस समय देश आर्थिक मंदी से गुजर रहा था.'

former soldier shaligram story
परिवार के साथ पूर्व सैनिक.

'चीन ने हमेशा दिया है धोखा'
पूर्व सैनिक ने बताया कि मौजूदा समय में भी चीन ने धोखेबाजी से हमारे गलवान घाटी में सैनिकों की हत्या की है. चीन पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता है. वह बहुत ही धोखेबाज देश है. चाहे 1962 की बात हो या आज की, चीन ने हमेशा से ही धोखा देने का काम किया है.'

जानें, कैसे बिहार रेजिमेंट ने गलवान में चीनी पोस्ट को उखाड़ फेंका

वहीं सिसकती आवाज और रुंधे हुए गले से शालिगराम ने बताया, 'हमारा बेटा राजेंद्र सेना में नायक के पद पर था. 18 नवंबर 1988 को भारत ने श्रीलंका शांति सेना भेजी थी, वहीं वह शहीद हो गया. बेटे का पार्थिव शरीर तक देखने को नहीं मिला.' हालांकि उम्र के इस पड़ाव में चेहरे पर झुर्रियां आ गईं हैं और आंखों से धुंधला दिखने लगा है. शरीर भी साथ नहीं दे रहा, लेकिन फिर भी देश के लिए सैनिक का जज्बा जरा सा कम नहीं है.

मैनपुरी: जिले में थाना कुर्रा क्षेत्र के रहने वाले शालिगराम ने 1962 में भारत-चीन युद्ध लड़ा. इस युद्ध में भारत की करारी हार हुई. काफी संख्या में सैनिक हताहत हुए और वीरगति को प्राप्त हुए. वहीं युद्ध के दौरान कुछ सैनिक जीवित बच गए थे, जिनमें से कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात एक शालिगराम भी हैं.

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पूर्व सैनिक शालिगराम.

धोखेबाज देश है चीन
ईटीवी भारत की टीम ने जब शालिगराम से बात की तो उन्होंने बताया कि 1962 में चीन ने धोखे से भारत पर आक्रमण किया था. मौजूदा समय में कोरोना जैसी भयंकर बीमारी से विश्व तबाह है. इससे भारत भी अछूता नहीं है. कोरोना के चलते देश की आर्थिक स्थिति खराब है, जिसका लाभ चीन ने उठाया और गलवान घाटी में हिंसक झड़प की. इस दौरान चीनी सैनिकों ने धोखे से हमारे सैनिकों की हत्या की है. चीन धोखेबाज देश है, जिस पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता.

कौन हैं शालिगराम
थाना कुर्रा क्षेत्र के बदनपुर गांव में वीर सपूत शालिगराम का जन्म हुआ. ये तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं. दोनों छोटे भाई किसान हैं. शालिगराम शांति स्वभाव के चलते परिवार में सबके चहेते हैं. वे कुमाऊं रेजीमेंट में सिपाही पद पर भर्ती हुए और कुछ दिन बाद लेह, लद्दाख के रिंजगला पर उनकी तैनाती कर दी गई.

ईटीवी भारत से बातचीत करते पूर्व सैनिक.

यूनिट के 114 सैनिक हुए थे शहीद
भारत और चीन के बीच हुए 1962 के युद्ध को याद करते हुए पूर्व सैनिक शालिगराम बताते हैं, 'हमारी यूनिट में 120 सैनिक थे. हम सभी सैनिक रिजंगला पहाड़ी पर तैनात थे. 18 नवंबर 1962 को देर रात सूचना मिली कि चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की है. इस पर हमारी यूनिट ने घुसपैठ कर रहे चीनी सैनिकों को मार गिराया. कुछ समय बाद हजारों की संख्या में चीनी सैनिक बैलों के गले में लालटेन लटकाकर उनके पीछे से आकर हमारी सेना पर आक्रमण कर दिया, जिसमें हमारे 114 सैनिक शहीद हो गए. 6 सैनिक जीवित शेष बचे, जिसमें एक मैं भी था.'

'आधुनिक हथियारों की थी कमी'
ईटीवी भारत से पूर्व सैनिक शालिगराम ने बताया, 'सन 1962 में भारत-चीन युद्ध में भारत को करारी हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि हमारे पास अत्याधुनिक शस्त्र नहीं थे. साथ ही हमारी कोई तैयारी भी नहीं थीं. अचानक चालाकी से चीन ने आक्रमण किया था. हम लोगों के पास थ्री नोट थ्री की राइफल और 60 कारतूस थे. वहीं उनके पास अच्छे आधुनिक हथियार थे, क्योंकि उस समय देश आर्थिक मंदी से गुजर रहा था.'

former soldier shaligram story
परिवार के साथ पूर्व सैनिक.

'चीन ने हमेशा दिया है धोखा'
पूर्व सैनिक ने बताया कि मौजूदा समय में भी चीन ने धोखेबाजी से हमारे गलवान घाटी में सैनिकों की हत्या की है. चीन पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता है. वह बहुत ही धोखेबाज देश है. चाहे 1962 की बात हो या आज की, चीन ने हमेशा से ही धोखा देने का काम किया है.'

जानें, कैसे बिहार रेजिमेंट ने गलवान में चीनी पोस्ट को उखाड़ फेंका

वहीं सिसकती आवाज और रुंधे हुए गले से शालिगराम ने बताया, 'हमारा बेटा राजेंद्र सेना में नायक के पद पर था. 18 नवंबर 1988 को भारत ने श्रीलंका शांति सेना भेजी थी, वहीं वह शहीद हो गया. बेटे का पार्थिव शरीर तक देखने को नहीं मिला.' हालांकि उम्र के इस पड़ाव में चेहरे पर झुर्रियां आ गईं हैं और आंखों से धुंधला दिखने लगा है. शरीर भी साथ नहीं दे रहा, लेकिन फिर भी देश के लिए सैनिक का जज्बा जरा सा कम नहीं है.

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