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...ऐसे जज्बे को सलाम, हर गांव को चाहिए ऐसा समाजसेवी

यूपी के महोबा में युवा समाजसेवी ने वो कर दिखाया, जो यहां का जिला प्रशासन भी नहीं कर सका. समाजसेवी के अन्ना पशुओं के लिए निजी गोशाला खोलने की चारों तरफ सराहना हो रही है. देखें महोबा से यह स्पेशल रिपोर्ट...

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Published : Oct 23, 2019, 8:57 PM IST

महोबा में इस शख्स ने खुद के खर्चे से खोली गोशालाएं.

महोबा: कहते हैं कि यदि हौसले बुलंद हों तो हर राह आसान है. जी हां बुंदेलखंड के महोबा जिले में एक समाजसेवी ने अपने गांव के किसानों को अन्ना जानवरों से निजात दिलाने के लिए गोशालाएं अपने निजी खर्चे से संचालित करने का बीड़ा उठाया है, ताकि गांव के किसानों की फसलें बच सकें.

कबरई विकासखंड के सिजहरी गांव के रहने वाले युवा कल्लू राजपूत ने वह कर दिखाया, जो शायद अभी तक यहां का जिला प्रशासन नहीं कर सका. कल्लू ने अपने गांव के अन्ना जानवरों से किसानों की फसलों की रक्षा करने का बीड़ा उठाया है. वह भी अकेले दम पर. हां यह जरूर है कि इसके लिए गांव के किसानों की समिति बनाई गई, जिसमें निर्णय लिया गया कि अन्ना जानवरों के लिए गोशाला खोली जाए और एक नहीं बल्कि दो गोशाला खोलकर गांव में घूम रहे लगभग 500 जानवरों को रखने की व्यवस्था का जिम्मा कल्लू ने अपने अकेले दम पर उठाया. इसमें गांव वाले उसका बराबर सहयोग कर रहे हैं.

समाजसेवी के कार्य की चारों तरफ हो रही सराहना.

इन जानवरों को चराने के लिए 4 चरवाहे नियुक्त किए गए हैं. गोशाला के चौकीदार व इनके खाने-पीने और चरवाहों की तनख्वाह कल्लू अपनी जेब से भर रहा है. कल्लू के इस कदम से गांव के किसानों को अपनी फसलें पैदा करने और खेतों की रखवाली न करने का लाभ मिल रहा है.

गोशाला खुलने से बहुत लाभ है. यहां के किसान रात भर जगकर खेतों की रखवाली कर रहे थे. फिर भी जानवर खेत चर जाते थे. सरकारी गोशाला खुल नहीं पा रही है. तब गांव वालों ने प्राइवेट गोशाला खोलने का निर्णय लिया और कल्लू इसका खर्च उठाने को तैयार हो गया. इसके लिए गांव में मुनादी करवाई गई और फिर सभी ने साइन करके गोशाला शुरू कर दी.
- राजेन्द्र राजपूत, ग्रामीण

सरकारी गोशाला संचालित न होने से किसान परेशान थे. तब जाकर सभी के सहयोग से गोशाला का निर्माण किया गया. इसके लिए चार चरवाहे लगाए गए और चौकीदार भी नियुक्त किया गया है. चरवाहे दिन भर जानवरों को चराते हैं और शाम को गोशाला में बंद कर देते हैं, जिसमें चारा व भूसा का भी इंतजाम है. गोशाला का पूरा खर्च कल्लू अपनी देता है।
-भगवानदास, ग्रामीण

गांव के किसानों का दर्द उनसे देखा नहीं देखा गया. दिन-रात किसान रात भर जागकर खेत की रखवाली कर रहे थे. तब यह फैसला लिया गया कि क्यों न निजी गोशाला खोली जाए और गांव के सहयोग से गोशाला खुल गई. इसका खर्च हम अपनी जेब से उठाते हैं. जानवर ज्यादा होने के कारण दो गोशाला संचालित कर रहे हैं, जिसमें लगभग 400 जानवर रखे गए हैं और कुछ जानवर अभी भी बाहर घूम रहे हैं, जिन्हें पकड़कर गोशाला लाया जा रहा है. इस गोशाला की व्यवस्थाओं के लिए चरवाहे और चौकीदार को भी रखा गया है, जो अपने काम को अंजाम दे रहे हैं.

- कल्लू राजपूत, प्राइवेट गोशाला संचालक

महोबा: कहते हैं कि यदि हौसले बुलंद हों तो हर राह आसान है. जी हां बुंदेलखंड के महोबा जिले में एक समाजसेवी ने अपने गांव के किसानों को अन्ना जानवरों से निजात दिलाने के लिए गोशालाएं अपने निजी खर्चे से संचालित करने का बीड़ा उठाया है, ताकि गांव के किसानों की फसलें बच सकें.

कबरई विकासखंड के सिजहरी गांव के रहने वाले युवा कल्लू राजपूत ने वह कर दिखाया, जो शायद अभी तक यहां का जिला प्रशासन नहीं कर सका. कल्लू ने अपने गांव के अन्ना जानवरों से किसानों की फसलों की रक्षा करने का बीड़ा उठाया है. वह भी अकेले दम पर. हां यह जरूर है कि इसके लिए गांव के किसानों की समिति बनाई गई, जिसमें निर्णय लिया गया कि अन्ना जानवरों के लिए गोशाला खोली जाए और एक नहीं बल्कि दो गोशाला खोलकर गांव में घूम रहे लगभग 500 जानवरों को रखने की व्यवस्था का जिम्मा कल्लू ने अपने अकेले दम पर उठाया. इसमें गांव वाले उसका बराबर सहयोग कर रहे हैं.

समाजसेवी के कार्य की चारों तरफ हो रही सराहना.

इन जानवरों को चराने के लिए 4 चरवाहे नियुक्त किए गए हैं. गोशाला के चौकीदार व इनके खाने-पीने और चरवाहों की तनख्वाह कल्लू अपनी जेब से भर रहा है. कल्लू के इस कदम से गांव के किसानों को अपनी फसलें पैदा करने और खेतों की रखवाली न करने का लाभ मिल रहा है.

गोशाला खुलने से बहुत लाभ है. यहां के किसान रात भर जगकर खेतों की रखवाली कर रहे थे. फिर भी जानवर खेत चर जाते थे. सरकारी गोशाला खुल नहीं पा रही है. तब गांव वालों ने प्राइवेट गोशाला खोलने का निर्णय लिया और कल्लू इसका खर्च उठाने को तैयार हो गया. इसके लिए गांव में मुनादी करवाई गई और फिर सभी ने साइन करके गोशाला शुरू कर दी.
- राजेन्द्र राजपूत, ग्रामीण

सरकारी गोशाला संचालित न होने से किसान परेशान थे. तब जाकर सभी के सहयोग से गोशाला का निर्माण किया गया. इसके लिए चार चरवाहे लगाए गए और चौकीदार भी नियुक्त किया गया है. चरवाहे दिन भर जानवरों को चराते हैं और शाम को गोशाला में बंद कर देते हैं, जिसमें चारा व भूसा का भी इंतजाम है. गोशाला का पूरा खर्च कल्लू अपनी देता है।
-भगवानदास, ग्रामीण

गांव के किसानों का दर्द उनसे देखा नहीं देखा गया. दिन-रात किसान रात भर जागकर खेत की रखवाली कर रहे थे. तब यह फैसला लिया गया कि क्यों न निजी गोशाला खोली जाए और गांव के सहयोग से गोशाला खुल गई. इसका खर्च हम अपनी जेब से उठाते हैं. जानवर ज्यादा होने के कारण दो गोशाला संचालित कर रहे हैं, जिसमें लगभग 400 जानवर रखे गए हैं और कुछ जानवर अभी भी बाहर घूम रहे हैं, जिन्हें पकड़कर गोशाला लाया जा रहा है. इस गोशाला की व्यवस्थाओं के लिए चरवाहे और चौकीदार को भी रखा गया है, जो अपने काम को अंजाम दे रहे हैं.

- कल्लू राजपूत, प्राइवेट गोशाला संचालक

Intro:एंकर- कहते हैं कि यदि हौसले बुलंद हो तो हर राह आसान है। जी हाँ बुंदेलखंड के महोबा जिले में एक समाजसेवी ने अपने गांव के किसानों को अन्ना जानवरों से निजात दिलाने के लिए गौशालाएं अपने निजी खर्चे से संचालित करने का बीणा उठाया है। ताकि गांव के किसानों की फसलें बच सके और खुशहाल बन सके।




Body:यह है कबरई विकासखंड का सिजहरी गांव यहाँ के रहने वाले युवा कल्लू राजपूत ने वह कर दिखाया जो शायद अभी तक यहाँ का जिला प्रशासन नही कर सका। जी हाँ कल्लू ने अपने गांव के अन्ना जानवरों से किसानों की फसलों की रक्षा करने का वीणा उठाया है। वह भी अकेले दम पर हां यह जरूर है कि इसके लिए गांव के आधा सैकड़ा किसानों की समिति बनाई गई । जिसमे निर्णय लिया गया कि अन्ना जानवरों के लिए गौशाला खोली जाए और एक नही बल्कि दो गौशाला खोलकर गांव में धूम रहे लगभग पांच सैकड़ा जानवरों को रखने की व्यवस्था का जिम्मा कल्लू ने अपने अकेले दम पर खर्चे का बीणा उठाया। जिसमे गांव वाले बराबर सहयोग कर रहे है। इन जानवरों को चराने के लिए 4 चरवाहे नियुक्त किये गए और गौशाला के चौकीदार व इनके खाने पीने और चरवाहों की तनख्वाह कल्लू अपनी जेब से भर रहा है। कल्लू के इस कदम से गांव के किसानों को अपनी फसलें पैदा करने और खेतों की रखवाली न करने का लाभ मिल रहा है।

ग्रामीण राजेन्द्र राजपूत कहते है कि गौशाला खुलने से बहुत लाभ है। यहाँ के किसान रात भर जगकर खेतो की रखवाली कर रहे थे। फिर भी जानवर खेत चर जाते थे। सरकारी गौशाला खुल नही पा रही है। तब गांव वालों ने प्राइवेट गौशाला खोलने का निर्णय लिया और कल्लू इसका खर्च उठाने को तैयार हो गया जिसके लिए गांव में मुनादी करवाई गई और फिर सभी ने साइन करके गौशाला शुरू कर दी।
बाइट- राजेन्द्र राजपूत (ग्रामीण)

ग्रामीण भगवानदास कहते है कि सरकारी गौशाला संचालित न होने से किसान परेशान थे। तब जाकर सभी के सहयोग से गौशाला का निर्माण किया गया। इसके लिए चार चरवाहे लगाए गए और चौकीदार भी नियुक्त किया गया है। चरवाहे दिन भर जानवरों को चराते है और शाम को गौशाला में बंद कर देते है।जिसमे चारा व भूसा का भी इंतजाम है। गौशाला का पूरा खर्च कल्लू अपनी देता है।
बाइट- भगवानदास (ग्रामीण)




Conclusion:गौशाला संचालक कल्लू राजपूत कहते हैं कि गांव के किसानों का दर्द नहीं देखा गया दिन-रात किसान रात भर जागकर खेत की रखवाली कर रहे थे। तब यह फैसला लिया गया कि क्यो न प्राइवेट गौशाला खोली जाए और गांव के सहयोग से गौशाला खुल गई। इसका खर्च हम अपनी जेब से उठाते हैं। जानवर ज्यादा होने के कारण दो गौशाला संचालित कर रहे हैं। जिसमें लगभग 4 सैकड़ा जानवर रखे गए हैं और कुछ जानवर अभी भी बाहर घूम रहे हैं। जिन्हें पकड़कर गौशाला लाया जा रहा है। इस गौशाला की व्यवस्थाओं के लिए चरवाहे और चौकीदार को भी रखा गया है। जो अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।

बाइट- कल्लू राजपूत (प्राइवेट गौशाला संचालक)

तेज प्रताप सिंह
महोबा यूपी
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