महराजगंजः वर्दी शब्द जेहन में आते ही तेज तर्रार, रोबीला चेहरा और निडर शख्सियत की छाप सामने आती है. लेकिन, महराजगंज में एक ऐसा थाना है, जहां पुलिस में ही अंधविश्वास का खौफ है. इसके थाने के कोतवाल अपने ही थाने में अपनी ही कुर्सी पर बैठने से कतराते हैं. कोतवाल कार्यालय में फरियादियों की शिकायतें तो सुनते हैं. लेकिन, अपनी कुर्सी पर बैठकर नहीं. हम जिस थाने की बात कर रहे हैं, वो कोई और थाना नहीं, बल्कि सदर कोतवाली थाना है. लेकिन, क्या है इसकी वजह? क्यों अपनी ही कुर्सी पर नहीं बैठते हैं थाने के कोतवाल, चलिए आपको बताते हैं.
महराजगंज के सदर कोतवाली थाने पर शहर और आसपास के क्षेत्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है. जिला मुख्यालय भी अपनी सुरक्षा के लिए कोतवाली थाने पर निर्भर रहता है. लेकिन, जब थाने के कोतवाल के अंदर अपने ही चैंबर की कुर्सी पर बैठने को लेकर अंधविश्वास का खौफ हो तो वो भला दूसरे को निडर रहने की प्रेरणा कैसे देगा. हालांकि, इसमें पूरी तरह से गलती वर्तमान कोतवाल की भी नहीं है, बल्कि पूर्व के साथियों से मिले अनुभव से कोतवाली में ऐसी धारणा बन गई कि पिछले एक दशक में प्रभारी निरीक्षक की कुर्सी पर जो भी बैठा, उसके सामने ऐसी घटनाएं हुईं. इसके चलते या तो उनकी नींद हराम हुई या फिर उन्हें कोतवाली को टाटा बाय-बाय कहना पड़ा. हालांकि, कुर्सी पर बैठने को लेकर अपने अनोखे डर को खुलेतौर पर जिम्मेदार बताने से परहेज करते हैं. लेकिन, कार्यालय की बजाय गोलंबर में ही बैठकर क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन करते नजर आते हैं.
पूजा-पाठ के बाद भी नहीं हटा अंधविश्वास का साया: बता दें कि कोतवाली में एक दशक पहले प्रभारी निरीक्षक का कार्यालय बना. इस कार्यालय के बारे में पुलिसकर्मियों में ऐसी धारणा बनी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि कोतवाल के अपने चैंबर की कुर्सी पर बैठने के बाद क्षेत्र में शांति व्यवस्था बिगड़ने लगती है. जब-जब कोई प्रभारी निरीक्षक कुर्सी पर बैठा, तब-तब वह परेशान हुआ. कानून व्यवस्था बरकरार रखने की जिम्मेदारी नहीं संभाल पाने पर उन्हें हटाया भी गया. कुछ साल तक यह कार्यालय खाली रहा. पूजा-पाठ और पुनरोद्धार भी कराया गया. लेकिन, कुर्सी पर बैठने के बाद मिले अनुभव से जिम्मेदार दूसरी जगह बैठकर ही कोतवाली को संभालने में अपनी भलाई समझते हैं.
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कुर्सी पर बैठने के प्रयास से मन हो जाता है अशांत: सदर कोतवाली की कमान संभाल चुके एक प्रभारी निरीक्षक ने बताया कि कार्यालय के चैम्बर की कुर्सी पर बैठने से पहले सबकुछ सामान्य और नियंत्रण में रहता है. लेकिन, चैम्बर की कुर्सी पर बैठते ही कानून व्यवस्था को लेकर मन अशांत हो जाता है. अचानक कानून व्यवस्था इस कदर बिगड़ जाती है, जिसे संभालना मुश्किल हो जाता है. उन्होंने बताया कि ये सब जानने के बाद उन्होंने कार्यालय में बैठना तो दूर, उसमें जाना भी छोड़ दिया. वर्तमान कोतवाल भी इस परंपरा का निर्वहन करते हुए मुख्य कुर्सी को छोड़ कार्यालय में दूसरी कुर्सी पर बैठकर ही कामकाज निपटाते हैं. दबी जुबान से यह बात सामने आ रही है कि अब कार्यालय को किसी दूसरे काम में इस्तेमाल किया जाएगा.
अंधविश्वास जैसी बात नहीं: कार्यालय में नहीं बैठने के सवाल पर कोतवाल रवि कुमार रॉय ने कहा कि वह अंधविश्वास को नहीं मानते. कार्यालय का उन्होंने ही पुनरोद्धार कराया. लेकिन, गोलंबर में बैठने से पूरे कोतवाली परिसर पर नजर बनी रहती है. कार्यालय में बैठकर कानून व्यवस्था संभालना आसान भी नहीं है. कभी-कभार कार्यालय की मुख्य कुर्सी के बजाय बगल की कुर्सी पर बैठने के सवाल पर उनका कहना है कि फरियादियों से दूरी बनाया जाना उचित नहीं है. नजदीक बैठकर प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान पीड़ितों को संतुष्टि मिलती है. फरियादियों की संतुष्टि ही पुलिस के लिए महत्वपूर्ण है.
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