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15 दिनों से कार्यवाहक मुख्य सचिव संभाल रहे प्रदेश, योगी को ढूढ़े नहीं मिल रहा अफसर ! - chief secretary up

उत्तर प्रदेश की राजधानी में बीते 15 दिनों से कार्यवाहक मुख्य सचिव आरके तिवारी पदभार संभाल रहे है. 15 दिन बीत जाने के बाद अभी तक यूपी सरकार को स्थाई मुख्य सचिव नहीं मिल सका है.

yogi still searching for chief secretary
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Published : Sep 17, 2019, 8:57 AM IST

लखनऊ: यूपी को अभी तक नियमित मुख्य सचिव नहीं मिल सका है. डॉ. अनूप चंद्र पांडेय 31 अगस्त को रिटायर हुए. उसी दिन आरके तिवारी ने कार्यवाहक मुख्य सचिव का पदभार ग्रहण किया था. तब से वह कार्यवाहक मुख्य सचिव बने हुए हैं. 15 दिन बीत गए और उन्हें अभी तक नियमित मुख्य सचिव नहीं मिल सका है.

जानकारी देते हुए संवाददाता.

वर्ष 1984 बैच के आईएएस अफसर आरके तिवारी कार्यवाहक मुख्य सचिव के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि कार्यवाहक होने की स्थिति में अधिकारी ठीक से काम नहीं कर पाते हैं. वह असमंजस की स्थिति में रहते हैं. ऐसे में निर्णय लेने में कठिनाई होती है. इन सब का असर कामकाज पर पड़ता है. ब्यूरोक्रेसी भी नियमित मुख्य सचिव की बात पर जोर दे रहा है.

मुख्य सचिव की रेस में लगे बड़े अधिकारी
आरके तिवारी के कार्यवाहक मुख्य सचिव होने की वजह से दूसरे अफसर खुद के मुख्य सचिव बनने की राह तलाश रहे हैं. वरिष्ठ आईएएस अफसर संजय अग्रवाल इस कतार में बताए जा रहे हैं. दुर्गाशंकर मिश्र का नाम भी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है. आईएएस अफसर अविनाश श्रीवास्तव भी मुख्य सचिव बनने की रेस में हैं, लेकिन अभी तक नियमित मुख्य सचिव नहीं मिल सका है. कार्यवाहक मुख्य सचिव आरके तिवारी के पास एपीसी का भी दायित्व है. अगर सरकार इन्हें नियमित करती है तो नए एपीसी की खोज शुरू होगी. स्थाई तौर पर मुख्य सचिव की तैनाती नहीं हो पाने की वजह से प्रदेश का कामकाज बाधित हो रहा है, साथ में ब्यूरोक्रेसी में रेस भी जारी है.

अधिकारी बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते हैं. योजनाएं ठीक से संचालित होनी चाहिए. सूबे की कानून-व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए. जनता के सारे काम होने चाहिए. यह सरकार का विशेषाधिकार होता है कि उसे किस अधिकारी से काम लेना है. हो सकता है मुख्य सचिव केंद्र से लेना हो. इसलिए जब तक निर्णय नहीं हो रहा सरकार इन्हीं से काम लेगी.
-जुगल किशोर, प्रवक्ता, भाजपा

कार्यवाहक मुख्य सचिव बने हुए दो सप्ताह हो गए हैं. इससे अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. एक संदेश यह जा रहा है कि सरकार निर्णय नहीं ले पा रही है. दूसरी बात हो सकती है कि सरकार इनके कामकाज को देख रही है. उनके काम को देखने के बाद हो सकता है कि आरके तिवारी को ही नियमित कर दिया जाए. यह भी हो सकता है कि सरकार किसी और अफसर को मुख्य सचिव बनाने की इंतजार में है. इससे कार्य भी प्रभावित होता है. कार्यवाहक मुख्य सचिव और नियमित में बहुत अंतर है.
-गोलेश स्वामी, ब्यूरोक्रेसी विशेषज्ञ

लखनऊ: यूपी को अभी तक नियमित मुख्य सचिव नहीं मिल सका है. डॉ. अनूप चंद्र पांडेय 31 अगस्त को रिटायर हुए. उसी दिन आरके तिवारी ने कार्यवाहक मुख्य सचिव का पदभार ग्रहण किया था. तब से वह कार्यवाहक मुख्य सचिव बने हुए हैं. 15 दिन बीत गए और उन्हें अभी तक नियमित मुख्य सचिव नहीं मिल सका है.

जानकारी देते हुए संवाददाता.

वर्ष 1984 बैच के आईएएस अफसर आरके तिवारी कार्यवाहक मुख्य सचिव के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि कार्यवाहक होने की स्थिति में अधिकारी ठीक से काम नहीं कर पाते हैं. वह असमंजस की स्थिति में रहते हैं. ऐसे में निर्णय लेने में कठिनाई होती है. इन सब का असर कामकाज पर पड़ता है. ब्यूरोक्रेसी भी नियमित मुख्य सचिव की बात पर जोर दे रहा है.

मुख्य सचिव की रेस में लगे बड़े अधिकारी
आरके तिवारी के कार्यवाहक मुख्य सचिव होने की वजह से दूसरे अफसर खुद के मुख्य सचिव बनने की राह तलाश रहे हैं. वरिष्ठ आईएएस अफसर संजय अग्रवाल इस कतार में बताए जा रहे हैं. दुर्गाशंकर मिश्र का नाम भी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है. आईएएस अफसर अविनाश श्रीवास्तव भी मुख्य सचिव बनने की रेस में हैं, लेकिन अभी तक नियमित मुख्य सचिव नहीं मिल सका है. कार्यवाहक मुख्य सचिव आरके तिवारी के पास एपीसी का भी दायित्व है. अगर सरकार इन्हें नियमित करती है तो नए एपीसी की खोज शुरू होगी. स्थाई तौर पर मुख्य सचिव की तैनाती नहीं हो पाने की वजह से प्रदेश का कामकाज बाधित हो रहा है, साथ में ब्यूरोक्रेसी में रेस भी जारी है.

अधिकारी बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते हैं. योजनाएं ठीक से संचालित होनी चाहिए. सूबे की कानून-व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए. जनता के सारे काम होने चाहिए. यह सरकार का विशेषाधिकार होता है कि उसे किस अधिकारी से काम लेना है. हो सकता है मुख्य सचिव केंद्र से लेना हो. इसलिए जब तक निर्णय नहीं हो रहा सरकार इन्हीं से काम लेगी.
-जुगल किशोर, प्रवक्ता, भाजपा

कार्यवाहक मुख्य सचिव बने हुए दो सप्ताह हो गए हैं. इससे अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. एक संदेश यह जा रहा है कि सरकार निर्णय नहीं ले पा रही है. दूसरी बात हो सकती है कि सरकार इनके कामकाज को देख रही है. उनके काम को देखने के बाद हो सकता है कि आरके तिवारी को ही नियमित कर दिया जाए. यह भी हो सकता है कि सरकार किसी और अफसर को मुख्य सचिव बनाने की इंतजार में है. इससे कार्य भी प्रभावित होता है. कार्यवाहक मुख्य सचिव और नियमित में बहुत अंतर है.
-गोलेश स्वामी, ब्यूरोक्रेसी विशेषज्ञ

Intro:लखनऊ। यूपी को अभी तक नया गीत मुख सचिव नहीं मिल सका है। डॉ अनूप चंद्र पांडे 31 अगस्त को रिटायर हुए। उसी दिन आरके तिवारी ने कार्यवाहक मुख्य सचिव का पदभार ग्रहण किया था। तब से वह कार्यवाहक मुख्य सचिव बने हुए हैं। 15 दिन बीत गए। उन्हें अभी तक नियमित नहीं किया गया है। अगर किसी और को नियमित मुख सचिव बनाना है तो सवाल उठ रहे हैं कि क्या योगी सरकार को अफसर ढूंढे नहीं मिल रहे।


Body:वर्ष 1984 बैच के आईएएस अफसर आरके तिवारी कार्यवाहक मुख्य सचिव के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। जानकारों का मानना है कि कार्यवाहक होने की स्थिति में अधिकारी ठीक से काम नहीं कर पाते हैं। वह असमंजस की स्थिति में रहते हैं। ऐसे में अफसर निर्णय लेने में कठिनाई होती है। इस सब का असर कामकाज पर पड़ता है। ब्यूरोक्रेसी भी नियमित मुख्य सचिव की वाट जो रहा है।

आर के तिवारी के कार्यवाहक मुख्य सचिव होने की वजह से दूसरे अफसर खुद के मुख्य सचिव बनने की राह तलाश रहे हैं। वरिष्ठ आईएएस अफसर संजय अग्रवाल इस कतार में बताए जा रहे हैं। दुर्गाशंकर मिश्र का नाम भी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। आईएएस अफसर अविनाश श्रीवास्तव की मुख्य सचिव बनने की रेस में हैं। देखना होगा कि योगी सरकार कब तक नियमित मुख्य सचिव दे सकेगी। कार्यवाहक मुख्य सचिव आरके तिवारी के पास एपीसी का भी दायित्व है। अगर सरकार इन्हें नियमित करती है तो नए एपीसी की खोज शुरू होगी। स्थाई तौर पर मुख्य सचिव की तैनाती नहीं हो पाने की वजह से प्रदेश का कामकाज बाधित हो ही रहा है, साथ में ब्यूरोक्रेसी में रेस भी जारी है।

बाईट- यूपी भाजपा के प्रवक्ता जुगल किशोर का कहना है कि अधिकारी बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते हैं। योजनाएं ठीक से संचालित होनी चाहिए। सूबे की कानून व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए। जनता के सारे काम होने चाहिए। यह सरकार का विशेषाधिकार होता है कि वह किस अधिकारी से काम लेना है। हो सकता है मुख्य सचिव केंद्र से लेना हो। इसलिए जब तक निर्णय नहीं हो रहा सरकार इन्हीं से काम लेगी।

बाईट- ब्यूरोक्रेसी के जानकार गोलेश स्वामी का कहना है कि कार्यवाहक मुख्य सचिव बने हुए दो सप्ताह हो गए हैं। सरकार को इस पर फैसला ले लेना चाहिए। इससे अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। एक संदेश यह जा रहा है कि सरकार निर्णय नहीं ले पा रही है। दूसरी बात हो सकती है कि सरकार इनके कामकाज को देख रही है। उनके काम को देखने के बाद हो सकता है कि आरके तिवारी को ही नियमित कर दिया जाए। यह भी हो सकता है कि सरकार किसी और अफसर को मुख्य सचिव बनाने की इंतजार में है। आईएएस अफसर अविनाश श्रीवास्तव, संजय अग्रवाल, डीएस मिश्रा, शालिनी प्रसाद जैसे नाम चर्चा में हैं। लेकिन यूपी में सबसे सीनियर अफसर आरके तिवारी ही हैं। हालांकि इस पद के लिए दीपक त्रिवेदी भी लगे हुए हैं। सरकार को निर्णय करना है कि मुख्य सचिव पद पर यही रहेंगे या फिर कोई नया चेहरा होगा। सरकार को जल्द से जल्द फैसला लेना चाहिए। अगर सरकार फैसला नहीं ले पाती है तो इसका संदेश अच्छा नहीं जाएगा। इससे कार्य भी प्रभावित होता है। कार्यवाहक मुख्य सचिव और नियमित में बहुत अंतर है।


Conclusion:
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