ETV Bharat / state

संस्कृति नीति बनाकर संस्कृति-साहित्य और कला को सहेजने की तैयारी में योगी सरकार

author img

By

Published : Aug 3, 2021, 4:09 PM IST

कला और कलाकारों का महत्व समाप्त न हो इसके लिए योगी सरकार( Yogi government) ने संस्कृति नीति(culture policy) बनाने का निर्णय लिया है. संस्कृति एवं पर्यटन प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम बताते हैं कि प्रदेश में एक राष्ट्रीय कला केंद्र(National Center for the Arts) बनेगा. इसके अंतर्गत अलग-अलग विधाओं और क्षेत्रों की शाखाओं का गठन होगा. प्रशासनिक कमान एक जगह रहने से कामों में दोहराव से बचा जा सकेगा और ठोस काम हो सकेगा.

योगी सरकार
योगी सरकार

लखनऊ: वर्तमान में राजधानी में साहित्यक, सांस्कृतिक और कला सिर्फ प्रस्तुतियों तक ही सीमित रह गई है. कला और कलाकारों को बचाने के लिए राजधानी में इन दिनों मंथन किया जा रहा है. इन तीनों चीजों का महत्व समाप्त न हो इसके लिए मौजूदा सरकार ने संस्कृति नीति बनाने का निर्णय लिया है. जिसको लेकर कई बार मीटिंग हो चुकी है. सांस्कृतिक एवं पर्यटन प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम(Mukesh Meshram) बताते हैं कि प्रस्तावित संस्कृति नीति के बारे में योगी आदित्यनाथ ने विषय से जुड़े विशेषज्ञों से बातचीत कर इसको तैयार करने का निर्देश दिया है. फिलहाल इसमें दो से तीन महीने लग जाएगें.

उन्होंने कहा कि इस नीति के तहत एक राष्ट्रीय कला केंद्र बनेगा. इसके अंतर्गत अलग-अलग विधाओं और क्षेत्रों की शाखाओं का गठन होगा. प्रशासनिक कमान एक जगह रहने से कामों में दोहराव से बचा जा सकेगा और ठोस काम हो सकेगा.

संस्कृति-साहित्य और कला को सहेजने की तैयारी
संस्कृति-साहित्य और कला को सहेजने की तैयारी
इन विभागों को मिलता है बजट
सरकार प्रदेश की संस्कृति नीति के बारे में गंभीरता से विचार कर रही है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ही ये नीति लागू हो जाएगी.सरकार की तरफ से संस्कृतिक पक्ष को विश्व पटल पर उत्कृष्टता के साथ स्थापित करने के लिए इस समय खाका तैयार कराया जा रहा है. प्रदेश सरकार अब प्रदेश की संस्कृति विरासत को अलग पहचान देने के लिए यह काम किया जा रहा है.


गौरतलब है कि प्रदेश के सांस्कृतिक एवं पर्यटन विभाग(Department of Cultural and Tourism) के अधीन कई निदेशालय और कई समीतियां कार्य करते हैं. इनमें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, राष्ट्रीय कत्थक संस्थान, कत्थक केंद्र, ललित कला अकादमी, भारतेंदु संगीत नाटक अकादमी, राजकीय अभिलेखागार, पुरातत्व विभाग और पुरातत्व निदेशालय सहित बहुत सारी संस्थाएं विभाग से जुड़ी हैं. जिनके लिए लाखों के बजट हर साल विभागों को आवंटित किए जाते हैं, लेकिन यह अकादमियां वर्ष में कुछ कार्यक्रम कर और कुछ पुरस्कार बांट कर ही अपने दायित्वों का निर्वहन कर लेती हैं. यही कारण है कि प्रदेश सरकार को लगता है कि संस्कृति के संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए एक व्यापक नीति होनी चाहिए. इस पर समग्रता के साथ कार्य होना चाहिए.

जानकारों का कहना है कि वर्ष में दो, चार प्रस्तुतियां करवा देना ही संस्कृति का संरक्षण और प्रोत्साहन नहीं है. बल्कि इसके लिए क्षेत्रों में जाकर अभिलेखीकरण, कलाकारों का भरण पोषण का दायित्व और कलाओं का संरक्षण किया जाना चाहिए. जानकारों का कहना है कि कोरोना काल में एक समग्र नीति नहीं होने के कारण बहुत सारे कलाकार आर्थिक तंगी से जूझे हैं.

कलाकारों को मिलेगा लाभ
सांस्कृतिक एवं पर्यटन प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम बताते हैं कि कोरोना काल में कलाकारों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा. संस्कृति और लोककलाओं को बचाने और समग्रता से सहेजने के लिए सरकार ने संस्कृति नीति बनाने का निर्णय लिया है. इस नीति के तहत सभी विभाग से बातचीत होती रहेगी साथ ही कलाकारों को भी इससे लाभ मिलेगा. उन्होंने बताया कि इसको लेकर सीएम योगी के सामने प्रदेश की प्रस्तावित संस्कृति नीति के प्रमुख बिंदुओं को रखा जा चुका है. प्रस्तावित संस्कृति नीति के बारे में योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को विषय से जुड़े विशेषज्ञों से बातचीत कर इसको तैयार करने का निर्देश दिया है. फिलहाल इसमें दो से तीन महीने लग जाएगें.

इसे भी पढ़ें- मुख्यमंत्री योगी ने 'अखिलेश यादव' को दिया नियुक्ति पत्र, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने ली चुटकी

मुकेश मेश्राम ने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस के लंबे शासनकाल के दौरान अपने लोगों को पद और प्रतिष्ठा देने-दिलाने के चक्कर में संस्थान खुलते चले गए. तब तर्क दिया गया कि विकेन्द्रीकरण से काम सुगमता से होगा, लेकिन हुआ इसके उलट. कला-संस्कृति के प्रशासन के विकेन्द्रीकरण ने अराजकता को बढ़ावा दिया. अब तो स्थिति ये है कि कला संस्कृति से जुड़ी ज्यादातर संस्थाएं आयोजन में लग गई हैं. ज्यादातर जगहों पर ठोस काम नहीं हो पा रहा है. पहले भी इस बात की चर्चा की जा चुकी है कि साहित्य कला और संस्कृति से जुड़ी ज्यादातर संस्थाएं इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में तब्दील हो गई हैं. वो आयोजन करके ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं.

लखनऊ: वर्तमान में राजधानी में साहित्यक, सांस्कृतिक और कला सिर्फ प्रस्तुतियों तक ही सीमित रह गई है. कला और कलाकारों को बचाने के लिए राजधानी में इन दिनों मंथन किया जा रहा है. इन तीनों चीजों का महत्व समाप्त न हो इसके लिए मौजूदा सरकार ने संस्कृति नीति बनाने का निर्णय लिया है. जिसको लेकर कई बार मीटिंग हो चुकी है. सांस्कृतिक एवं पर्यटन प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम(Mukesh Meshram) बताते हैं कि प्रस्तावित संस्कृति नीति के बारे में योगी आदित्यनाथ ने विषय से जुड़े विशेषज्ञों से बातचीत कर इसको तैयार करने का निर्देश दिया है. फिलहाल इसमें दो से तीन महीने लग जाएगें.

उन्होंने कहा कि इस नीति के तहत एक राष्ट्रीय कला केंद्र बनेगा. इसके अंतर्गत अलग-अलग विधाओं और क्षेत्रों की शाखाओं का गठन होगा. प्रशासनिक कमान एक जगह रहने से कामों में दोहराव से बचा जा सकेगा और ठोस काम हो सकेगा.

संस्कृति-साहित्य और कला को सहेजने की तैयारी
संस्कृति-साहित्य और कला को सहेजने की तैयारी
इन विभागों को मिलता है बजट
सरकार प्रदेश की संस्कृति नीति के बारे में गंभीरता से विचार कर रही है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ही ये नीति लागू हो जाएगी.सरकार की तरफ से संस्कृतिक पक्ष को विश्व पटल पर उत्कृष्टता के साथ स्थापित करने के लिए इस समय खाका तैयार कराया जा रहा है. प्रदेश सरकार अब प्रदेश की संस्कृति विरासत को अलग पहचान देने के लिए यह काम किया जा रहा है.


गौरतलब है कि प्रदेश के सांस्कृतिक एवं पर्यटन विभाग(Department of Cultural and Tourism) के अधीन कई निदेशालय और कई समीतियां कार्य करते हैं. इनमें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, राष्ट्रीय कत्थक संस्थान, कत्थक केंद्र, ललित कला अकादमी, भारतेंदु संगीत नाटक अकादमी, राजकीय अभिलेखागार, पुरातत्व विभाग और पुरातत्व निदेशालय सहित बहुत सारी संस्थाएं विभाग से जुड़ी हैं. जिनके लिए लाखों के बजट हर साल विभागों को आवंटित किए जाते हैं, लेकिन यह अकादमियां वर्ष में कुछ कार्यक्रम कर और कुछ पुरस्कार बांट कर ही अपने दायित्वों का निर्वहन कर लेती हैं. यही कारण है कि प्रदेश सरकार को लगता है कि संस्कृति के संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए एक व्यापक नीति होनी चाहिए. इस पर समग्रता के साथ कार्य होना चाहिए.

जानकारों का कहना है कि वर्ष में दो, चार प्रस्तुतियां करवा देना ही संस्कृति का संरक्षण और प्रोत्साहन नहीं है. बल्कि इसके लिए क्षेत्रों में जाकर अभिलेखीकरण, कलाकारों का भरण पोषण का दायित्व और कलाओं का संरक्षण किया जाना चाहिए. जानकारों का कहना है कि कोरोना काल में एक समग्र नीति नहीं होने के कारण बहुत सारे कलाकार आर्थिक तंगी से जूझे हैं.

कलाकारों को मिलेगा लाभ
सांस्कृतिक एवं पर्यटन प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम बताते हैं कि कोरोना काल में कलाकारों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा. संस्कृति और लोककलाओं को बचाने और समग्रता से सहेजने के लिए सरकार ने संस्कृति नीति बनाने का निर्णय लिया है. इस नीति के तहत सभी विभाग से बातचीत होती रहेगी साथ ही कलाकारों को भी इससे लाभ मिलेगा. उन्होंने बताया कि इसको लेकर सीएम योगी के सामने प्रदेश की प्रस्तावित संस्कृति नीति के प्रमुख बिंदुओं को रखा जा चुका है. प्रस्तावित संस्कृति नीति के बारे में योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को विषय से जुड़े विशेषज्ञों से बातचीत कर इसको तैयार करने का निर्देश दिया है. फिलहाल इसमें दो से तीन महीने लग जाएगें.

इसे भी पढ़ें- मुख्यमंत्री योगी ने 'अखिलेश यादव' को दिया नियुक्ति पत्र, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने ली चुटकी

मुकेश मेश्राम ने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस के लंबे शासनकाल के दौरान अपने लोगों को पद और प्रतिष्ठा देने-दिलाने के चक्कर में संस्थान खुलते चले गए. तब तर्क दिया गया कि विकेन्द्रीकरण से काम सुगमता से होगा, लेकिन हुआ इसके उलट. कला-संस्कृति के प्रशासन के विकेन्द्रीकरण ने अराजकता को बढ़ावा दिया. अब तो स्थिति ये है कि कला संस्कृति से जुड़ी ज्यादातर संस्थाएं आयोजन में लग गई हैं. ज्यादातर जगहों पर ठोस काम नहीं हो पा रहा है. पहले भी इस बात की चर्चा की जा चुकी है कि साहित्य कला और संस्कृति से जुड़ी ज्यादातर संस्थाएं इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में तब्दील हो गई हैं. वो आयोजन करके ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.