लखनऊ : सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई के लिए यह जरूरी है कि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल विवेकपूर्वक तरीके से करें. सही समय पर सही एंटीबायोटिक का इस्तेमाल ही काफी नहीं है, बल्कि यह भी जानना है कि उसका इस्तेमाल कब नहीं करना है. बगैर डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के बहुत से लोग दवाइयां का सेवन करते हैं. जिसका असर उनके शरीर पर बड़ा पड़ता है. एंटीबायोटिक का लगातार सेवन करने से तमाम दिक्कतें भी हो सकती हैं. इस बात को लोगों को समझने की आवश्यकता है.
यह बातें मंगलवार को केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) वेद प्रकाश ने कहीं. उन्होंने कहा कि सेप्टिसीमिया का अर्थ है कि खून में संक्रमण की वजह से शरीर के विभिन्न अंगों में नुकसान होता है. जिससे ब्लड प्रेशर में कमी, अंगों का निष्क्रिय होना (मल्टी ऑर्गन फेल्योर) हो सकता है. अगर सही समय पर इसकी पहचान एवं उपचार न किया जाए तो इससे मृत्यु भी हो सकती है.
सेप्सिस के के कारण : बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण यह सेप्सिस का सबसे प्रमुख कारण है. यह विभिन्न प्रकार से हो सकता है, जैसे फेफड़ों का संक्रमण (निमोनिया) पेशाब के रास्ते का संक्रमण (यूटीआई). त्वचा एवं अन्य अंगों का संक्रमण इत्यादि. वायरल संक्रमण इसके उदाहरणों में फ्लू (इन्फ्लूएंजा ), एचआईवी, कोविड, डेंगू वायरस इत्यादि है. फंगस संक्रमण यानी ऐसे व्यक्तियों में होता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती हैं. इसके उदारण कैन्डिटा, एस्पराजिलस इत्यादि है. परजीवी संक्रमण यानी मलेरिया इत्यादि. अस्पताल से प्राप्त संक्रमण यानी यह संक्रमण समुदाय से प्राप्त संक्रमण की तुलना में बहुत खतरनाक होता है. इसमें कैथेटर से होने वाले संक्रमण (जैसे यूरो कैथेटर सेन्ट्रल लाइन का संक्रमण). वेन्टीलेटर से होने वाला संक्रमण इत्यादि आता है. मरीजों की अन्य बीमारियां जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, जैसे- डायबिटीज, कैंसर, सीओपीडी इत्यादि बीमारियों में सेप्सिस का खतरा काफी बढ़ जाता है. एंटीबायोटिक का सही तरह से इस्तेमाल न करना या बिना डाक्टर सलाह के एन्टीबायोटिक्स का इस्तेमाल करना, सेप्सिस को बढ़ा सकता है.
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