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UP में सपा की नींद उड़ाएंगे ओवैसी! - political analyst

पंचायत चुनाव के बाद से राजनीतिक दलों में सरगर्मियां तेज हो गई हैं. जहां भारतीय जनता पार्टी संगठन के साथ साथ आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर लगातार बैठक और मंथन कर रही है. वहीं अन्य राजनीतिक दल भी प्रदेश में 2022 के विधान सभा चुनाव में अपनी सियासी जमीन तैयार करने में जुट गई हैं. बीते जनवरी माह में पूर्वांचल का दौरा करने पहुंचे ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अखिलेश यादव पर खूब निशाना साधा था.

UP में सपा की नींद उड़ाएंगे ओवैसी!
UP में सपा की नींद उड़ाएंगे ओवैसी!
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Published : Jun 2, 2021, 5:48 PM IST

Updated : Jun 2, 2021, 7:52 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अभी लगभग 8 माह बचे हुए हैं, मगर उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ने लगा है. यूपी में अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जिस तरह से जनवरी माह में पूर्वांचल का दौरा किया उससे समाजवादी पार्टी की नीद उड़ी हुई है. सबसे खास बात यह है कि जिस दिन ओवैसी पूर्वांचल के दौरे पर थे उसी दिन प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पूर्वांचल के दौरे पर थे. जहां एक तरफ ओवैसी ने अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए यह कहा कि 2012 से 2017 के दौरान 28 बार उत्तर प्रदेश में परमिशन की अनुमति नहीं मिली. वहीं, ओवैसी के इन बयानों पर समाजवादी पार्टी ने चुप्पी साध ली थी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ओवैसी की उत्तर प्रदेश में इंट्री से समाजवादी पार्टी किस कदर सदमे में है.

UP में सपा की नींद उड़ाएंगे ओवैसी!
असदुद्दीन ओवैसी जनवरी माह में पूर्वांचल के दौरे पर आए थे और वाराणसी में एयरपोर्ट से उतरने के बाद सबसे पहले अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ के दौरे पर गए थे. जहां उन्होंने समाजवादी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा था कि 2012 से 2017 के दौरान जब उत्तर प्रदेश की सत्ता पर समाजवादी पार्टी का शासन था, उस समय ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में जनसभा करने के लिए 28 बार परमिशन मांगी थी पर तत्कालीन समाजवादी पार्टी ने ओवैसी को उत्तर प्रदेश में जनसभा करने की अनुमति नहीं दी थी. हालांकि ओवैसी के इन सवालों का जवाब न तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज तक दे पाए हैं और न ही समाजवादी पार्टी ही इस मामले पर कुछ बोल पाई.क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषकउत्तर प्रदेश में ओवैसी की एंट्री पर राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि ओवैसी को वोट देने के बाद बिहार में जो राजनैतिक समीकरण बने हैं उस समीकरण से ओवैसी की खासी किरकिरी हुई. लोगों को ऐसा लगा कि इससे बहुमत के आंकड़े पर फर्क पड़ सकता है. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भी ओवैसी को नुकसान उठाना पड़ा. विजय उपाध्याय का मानना है कि ओवैसी को वोट करने के लिए जनता तैयार नहीं है. पूरे देश में चल रही है दो तरह की राजनीतिराजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि पूरे देश में इस समय दो तरह की राजनीति चल रही है. एक मोदी के साथ और एक जो मोदी को हटा सके. राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि बीजेपी के जो लोग नाराज हैं वह अलग-अलग वोट नहीं करेंगे और उत्तर प्रदेश में वोटों का बंटवारा होना असंभव है. ऐसे में या तो ओवैसी के आने से भाजपा को फायदा मिलेगा और या नुकसान यह भविष्य के गर्त में हैं.राजनीति का गढ़ है पूर्वांचलपूर्वांचल को उत्तर प्रदेश की राजनीति का गढ़ कहा जाता है पूर्वांचल से लगभग सैकड़ों सीटें आती हैं. ऐसे में प्रदेश की 403 विधानसभा के लिए 100 सीटें काफी महत्व रखती हैं और यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में पूर्वांचल प्रमुख होता है. यही कारण है कि सपा, बसपा और भाजपा सहित सभी राजनीतिक दल पूर्वांचल को केंद्र बिंदु में रखते हैं.मुस्लिम मतों में कर सकते हैं सेंधमारीअसदुद्दीन ओवैसी जिस तरह से पूर्वांचल का दौरा कर उन्होंने उत्तर प्रदेश में संगठन मजबूत करने की बात कही है. ऐसे में ओवैसी के उत्तर प्रदेश में सक्रियता से सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा. समाजवादी पार्टी जिन मुस्लिम वोटों को अपना जनाधार मानती थी निश्चित रूप से ओवैसी की इंट्री के बाद इन वोटों में सेंधमारी होगी.प्रसपा-ओवैसी का गठबंधन हुआ तो सपा को होगा नुकसानपूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार जिस तरह से बार-बार यह कहते रहे हैं कि छोटे दलों के दरवाजे हमेशा समाजवादी पार्टी के लिए खुले हैं. जबकि प्रगतिशील समाज पार्टी के अध्यक्ष और अपने चाचा शिवपाल यादव को एक सीट देने की बात कही थी. ऐसे में जिस तरह से ओवैसी ओमप्रकाश राजभर मिलकर एक बना रहे सहयोगी मोर्चे में शिवपाल यादव भी यदि शामिल होते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को अपने घर में भी चुनौती से निपटना होगा.बताते चलें कि, पंचायत चुनाव के बाद से राजनीतिक दलों में सरगर्मियां तेज हो गई हैं. जहां भारतीय जनता पार्टी संगठन के साथ साथ आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर लगातार बैठक और मंथन कर रही है. वहीं अन्य सभी राजनीतिक दलों में बैठकों के साथ-साथ चर्चाएं शुरू हो गई हैं. सभी राजनीतिक दल 2022 की तैयारियों में जुट गए हैं. अब ऐसे में देखना यह होगा कि ओवैसी की यूपी में एंट्री से किस राजनीतिक दल को फायदा मिलता है और किसे इसका नुकसान उठाना पड़ेगा.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अभी लगभग 8 माह बचे हुए हैं, मगर उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ने लगा है. यूपी में अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जिस तरह से जनवरी माह में पूर्वांचल का दौरा किया उससे समाजवादी पार्टी की नीद उड़ी हुई है. सबसे खास बात यह है कि जिस दिन ओवैसी पूर्वांचल के दौरे पर थे उसी दिन प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पूर्वांचल के दौरे पर थे. जहां एक तरफ ओवैसी ने अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए यह कहा कि 2012 से 2017 के दौरान 28 बार उत्तर प्रदेश में परमिशन की अनुमति नहीं मिली. वहीं, ओवैसी के इन बयानों पर समाजवादी पार्टी ने चुप्पी साध ली थी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ओवैसी की उत्तर प्रदेश में इंट्री से समाजवादी पार्टी किस कदर सदमे में है.

UP में सपा की नींद उड़ाएंगे ओवैसी!
असदुद्दीन ओवैसी जनवरी माह में पूर्वांचल के दौरे पर आए थे और वाराणसी में एयरपोर्ट से उतरने के बाद सबसे पहले अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ के दौरे पर गए थे. जहां उन्होंने समाजवादी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा था कि 2012 से 2017 के दौरान जब उत्तर प्रदेश की सत्ता पर समाजवादी पार्टी का शासन था, उस समय ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में जनसभा करने के लिए 28 बार परमिशन मांगी थी पर तत्कालीन समाजवादी पार्टी ने ओवैसी को उत्तर प्रदेश में जनसभा करने की अनुमति नहीं दी थी. हालांकि ओवैसी के इन सवालों का जवाब न तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज तक दे पाए हैं और न ही समाजवादी पार्टी ही इस मामले पर कुछ बोल पाई.क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषकउत्तर प्रदेश में ओवैसी की एंट्री पर राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि ओवैसी को वोट देने के बाद बिहार में जो राजनैतिक समीकरण बने हैं उस समीकरण से ओवैसी की खासी किरकिरी हुई. लोगों को ऐसा लगा कि इससे बहुमत के आंकड़े पर फर्क पड़ सकता है. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भी ओवैसी को नुकसान उठाना पड़ा. विजय उपाध्याय का मानना है कि ओवैसी को वोट करने के लिए जनता तैयार नहीं है. पूरे देश में चल रही है दो तरह की राजनीतिराजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि पूरे देश में इस समय दो तरह की राजनीति चल रही है. एक मोदी के साथ और एक जो मोदी को हटा सके. राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि बीजेपी के जो लोग नाराज हैं वह अलग-अलग वोट नहीं करेंगे और उत्तर प्रदेश में वोटों का बंटवारा होना असंभव है. ऐसे में या तो ओवैसी के आने से भाजपा को फायदा मिलेगा और या नुकसान यह भविष्य के गर्त में हैं.राजनीति का गढ़ है पूर्वांचलपूर्वांचल को उत्तर प्रदेश की राजनीति का गढ़ कहा जाता है पूर्वांचल से लगभग सैकड़ों सीटें आती हैं. ऐसे में प्रदेश की 403 विधानसभा के लिए 100 सीटें काफी महत्व रखती हैं और यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में पूर्वांचल प्रमुख होता है. यही कारण है कि सपा, बसपा और भाजपा सहित सभी राजनीतिक दल पूर्वांचल को केंद्र बिंदु में रखते हैं.मुस्लिम मतों में कर सकते हैं सेंधमारीअसदुद्दीन ओवैसी जिस तरह से पूर्वांचल का दौरा कर उन्होंने उत्तर प्रदेश में संगठन मजबूत करने की बात कही है. ऐसे में ओवैसी के उत्तर प्रदेश में सक्रियता से सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा. समाजवादी पार्टी जिन मुस्लिम वोटों को अपना जनाधार मानती थी निश्चित रूप से ओवैसी की इंट्री के बाद इन वोटों में सेंधमारी होगी.प्रसपा-ओवैसी का गठबंधन हुआ तो सपा को होगा नुकसानपूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार जिस तरह से बार-बार यह कहते रहे हैं कि छोटे दलों के दरवाजे हमेशा समाजवादी पार्टी के लिए खुले हैं. जबकि प्रगतिशील समाज पार्टी के अध्यक्ष और अपने चाचा शिवपाल यादव को एक सीट देने की बात कही थी. ऐसे में जिस तरह से ओवैसी ओमप्रकाश राजभर मिलकर एक बना रहे सहयोगी मोर्चे में शिवपाल यादव भी यदि शामिल होते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को अपने घर में भी चुनौती से निपटना होगा.बताते चलें कि, पंचायत चुनाव के बाद से राजनीतिक दलों में सरगर्मियां तेज हो गई हैं. जहां भारतीय जनता पार्टी संगठन के साथ साथ आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर लगातार बैठक और मंथन कर रही है. वहीं अन्य सभी राजनीतिक दलों में बैठकों के साथ-साथ चर्चाएं शुरू हो गई हैं. सभी राजनीतिक दल 2022 की तैयारियों में जुट गए हैं. अब ऐसे में देखना यह होगा कि ओवैसी की यूपी में एंट्री से किस राजनीतिक दल को फायदा मिलता है और किसे इसका नुकसान उठाना पड़ेगा.
Last Updated : Jun 2, 2021, 7:52 PM IST
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