लखनऊ: इस बार सेना दिवस की कमान मध्य कमान को मिली है. मध्य कमान का अपना गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. इस कमान के जांबाजों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए सीमा पर देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. इस कमान के पास चार परमवीर चक्र हैं, इसीलिए इस कमान को इस बार सेना दिवस की कमान सौंपी गई है.
भारतीय सेना की मध्य कमान को सूर्या कमान के नाम से भी जाना जाता है, उसका मुख्यालय लखनऊ में स्थित है. इसकी स्थापना 1962 के युद्ध के बाद एक मई 1963 को की गई थी. यह कमान बड़ी संख्या में प्रशिक्षण केंद्रों और बाकी सेना के लिए रसद सहायता प्रणाली का जरिया है. भौगोलिक रूप से इस कमान में आठ राज्यों के क्षेत्र शामिल हैं.
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश का कुछ हिस्सा है. यह देश के 31% क्षेत्र को कवर करता है. देश के 62% सैन्य स्टेशनों और छावनियों का घर है. मध्य कमान के जन संपर्क अधिकारी शांतनु प्रताप सिंह बताते हैं कि इस कमान की उत्तराखंड में तिब्बत की भारत से 540 किलोमीटर लंबी सीमा की रक्षा करने में अहम भूमिका है, जो वर्तमान में चीनी कब्जे में है.
यह नेपाल के साथ 1300 किमी लंबी सीमा भी साझा करता है. ये सीमाएं कमांड थिएटर के रणनीतिक महत्व को दर्शाती हैं. कमांड थिएटर का भूगोल ऐसा है कि इसमें बहुत सारी नदियां, पर्वत और बंगाल की खाड़ी के समुद्री तट भी हैं. मध्य कमान थिएटर सैन्य विरासत की समृद्ध विरासत का घर है. दरअसल, आजादी की पहली लड़ाई भी मेरठ से ही शुरू हुई थी जो इसी कमान थिएटर का हिस्सा है.
बहादुर वीरों की भूमि है मध्य कमानः उन्होंने बताया कि यह कमान सबसे बहादुर वीरों की भूमि है. क्योंकि, चार परमवीर चक्र विजेताओं के अलावा बड़ी संख्या में अन्य वीरता पुरस्कार विजेता भी इसी भूमि से रहे हैं. पहला सैन्य सम्मान 1839 में यहीं के वीर को प्रदान किया गया. इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के एक योग्य बंगाल इंजीनियर्स के सूबेदार देवी सिंह को मिला था.
कमान में 17 प्रशिक्षण केंद्रः मध्य कमान भारतीय सेना में प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र है. कमांड में 17 प्रशिक्षण केंद्र हैं, जहां भारतीय सेना के 30% सैनिकों को प्रशिक्षित किया जाता है. इसमें आर्मी वॉर कॉलेज महू, आर्मी मेडिकल कोर सेंटर एंड कॉलेज लखनऊ, ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी गया और ऐतिहासिक भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून जैसे प्रशिक्षण प्रतिष्ठान भी शामिल हैं, जो हमारे देश की सामूहिक स्मृति में एक प्रतीक के रूप में अंकित हैं.
कमान के सैनिकों ने दिखाया अदम्य साहसः मध्य कमान के पीआरओ शांतनु प्रताप सिंह ने बताया कि राहत और बचाव कार्यों में सेना की अहम भूमिका रही है. 2013 की उत्तराखंड बाढ़ के बाद सूर्या कमान राहत कार्यों के केंद्र में था. निकासी के लिए वैकल्पिक मार्ग बना रहा था. फंसे हुए नागरिकों को बचा रहा था. फंसे हुए लोगों को भोजन और कपड़े सहित राहत सामग्री प्रदान कर रहा था.
2017 में फिर जब बिहार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बाढ़ ने कहर बरपाया तो सूर्या कमान ने 1500 फंसे हुए लोगों को सफलतापूर्वक बचाया और 10,000 से अधिक नागरिकों को राहत प्रदान की. हाल ही में जोशीमठ प्राकृतिक आपदा के दौरान सूर्य योद्धाओं ने खतरे में पड़े लोगों को निकालने में मदद की. अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी 2018 में इंडोनेशिया में आए भीषण भूकंप के बाद सूर्या कमान के सैनिकों ने भारत के ऑपरेशन मैत्री के हिस्से के रूप में फील्ड अस्पताल बनाया.
कोविड में कमान में स्थापित हुए अस्पतालः कोविड महामारी के दौरान लखनऊ, पटना और वाराणसी में तीन प्रमुख कोविड अस्पताल स्थापित किए गए और सेना के 260 से अधिक डॉक्टरों/विशेषज्ञों, 100 से अधिक नर्सों और 330 से अधिक पैरामेडिक स्टाफ की एक टीम को इन अस्पतालों में भेजा गया. एचएडीआर में इस कमान की महत्वपूर्ण भूमिका भारत और विदेश दोनों में भारतीय सेना की तरफ से निभाई गई मानवीय भूमिका का उदाहरण है.
चीन से लगी सीमाओं पर मध्य कमान का रणनीतिक महत्व बढ़ गया है. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में अतीत में कठिन इलाकों में सीमित बुनियादी ढांचा था. विषम परिस्थितियों के बीच सूर्य योद्धाओं ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर निरंतर निगरानी बनाए रखी थी. उत्तरी सीमाओं पर बढ़ती चीनी आक्रामकता जिसे 2020 में गलवान जैसी घटनाओं के माध्यम से दर्शाया गया है, जिसमें 540 किलोमीटर से अधिक सीमा सूर्या कमांड के अंतर्गत आती है.
कमान में रक्षा उत्पादन के कई केंद्रः सूर्या कमान थिएटर भारतीय रक्षा उत्पादन क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है. कानपुर, शाहजहांपुर, मुरादनगर, अमेठी, प्रयागराज, नालंदा और जबलपुर पारंपरिक रूप से रक्षा उत्पादन के केंद्र रहे हैं. हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश जहां भारत सरकार की तरफ से योजनाबद्ध छह नोड्स वाले दो रक्षा औद्योगिक गलियारे में से एक का निर्माण हो रहा है. साल 2020 में लखनऊ ने पहले डिफेंस एक्सपो की मेजबानी की, साथ ही इस वर्ष आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान उत्तर प्रदेश में हथियार, गोला-बारूद और उपकरण उत्पादकों का आकर्षण रहा.
11 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट का मुख्यालयः मध्य कमान के अंतर्गत ही लखनऊ में 11 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट का भी मुख्यालय है. यहां पर 11 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट के जवानों को ट्रेनिंग दी जाती है. लखनऊ में निकट भविष्य में ब्रह्मोस और अन्य सैन्य औद्योगिक परिसरों का निर्माण होगा, जिससे न सिर्फ भारतीय सशस्त्र बलों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई उपकरणों का उत्पादन होगा, बल्कि भारत को हथियारों और सैन्य उपकरणों का प्रमुख निर्यातक बनने में मदद मिलेगी.
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