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जानिए आखिर कैसे हो रहा है बायो मेडिकल वेस्ट का निपटारा - lucknow latest news

प्रदेश भर में कोरोना संक्रमित मरीजों का करीब 200 क्विंटल बायो मेडिकल वेस्ट प्रतिदिन निकलता है. संक्रमण रोकने के लिए उसे अलग तरह के बायो मेडिकल वेस्ट के तौर पर रखा जाता है. सावधानी बरतते हुए इसके निपटारे के लिए पीले रंग के डस्टबिन का इस्तेमाल किया जाता है.

स्वास्थ्य भवन.
स्वास्थ्य भवन.
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Published : Sep 2, 2020, 1:29 PM IST

लखनऊ: कोरोना वायरस के संक्रमण से प्रदेश भर में रोजाना हजारों की संख्या में कोविड-19 के मरीज सामने आ रहे हैं और अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज करवा रहे हैं. कोरोना संक्रमित मरीजों के संपर्क में आए कूड़े को बायो मेडिकल वेस्ट की श्रेणी में रखा गया है और इसका निस्तारण नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा बनाए गए गाइडलाइंस के आधार पर किया जाता है. प्रदेश भर में रोजाना लगभग 200 क्विंटल बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है. इसके निस्तारण के लिए किए गए व्यवस्थाओं का ईटीवी भारत ने जायजा लिया.

पीले रंग की डस्टबिन का होता है इस्तेमाल
अस्पतालों में आ रहे कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के संपर्क में आ रही हर चीज को बायो मेडिकल वेस्ट के तहत रखा जाता है और उसके निस्तारण का प्रबंधन भी अलग तरह से किया जाता है. इसके बारे में उत्तर प्रदेश चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा के महानिदेशक डॉ. डीएस नेगी कहते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण काल में आ रहा बायोमेडिकल वेस्ट पहले की अपेक्षा अलग है, क्योंकि इस दौरान मरीज के संपर्क में आने वाली हर एक चीज संक्रमित हो सकती है. इस वजह से उसे अलग तरह के बायो मेडिकल वेस्ट के तौर पर रखा जाता है. इसके निपटारे के लिए पीले रंग के डस्टबिन का इस्तेमाल किया जाता है. पीले रंग का डस्टबिन पहले भी इनफेक्शियस बायो मेडिकल वेस्ट के लिए इस्तेमाल किया जाता था. इसके तहत आने वाले कोरोना के संक्रमण के कूड़े को इकट्ठा कर उस पर कोविड-19 का लेबल भी लगा दिया जाता है ताकि इसके निपटारे का प्रबंधन अलग तरह से सुनिश्चित किया जा सके. वह कहते हैं कि यह सभी कोविड-19 अस्पतालों के लिए नियम बनाया जा चुका है और इस पर अमल भी किया जा रहा है.

बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण

समय-समय पर बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए आई नई गाइडलाइन
मेडिकल वेस्ट को कलेक्शन एरिया तक पहुंचाने का काम अस्पताल का होता है और उसके बाद इस वेस्ट को निर्धारित की गई बायो मेडिकल वेस्ट की एजेंसी लेकर जाती है. उनके लिए भी गाइडलाइंस बनाए गए हैं और उसी के तहत उन्हें ऐसे बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण करना होता है. उत्तर प्रदेश के बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम की प्रभारी डॉ. शिप्रा पांडे कहती हैं कि कोविड में निकले कूड़े के निस्तारण के लिए समय-समय पर कई गाइडलाइंस आई हैं. हाल ही में नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा चौथी बार रिवाइज्ड गाइडलाइन आई है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह से एक बायो मेडिकल वेस्ट का सही तरीके से निस्तारण किया जाना चाहिए.

डॉक्टर शिप्रा कहती हैं कि बायो मेडिकल वेस्ट के लिये लाल और पीले रंग की डस्टबिन को निर्धारित किया गया है. मसलन, रुई, इंजेक्शन, सीरिंज आदि को पीले बास्केट में तो वहीं प्लास्टिक वेस्ट जैसे ट्यूब, पाइपलाइन, पीपीई किट, गॉगल्स, फेस शील्ड आदि को लाल बास्केट में डाला जाएगा. इसके अलावा कूड़ा उठाने वाले वर्कर्स के लिए हर तरह के सुरक्षा उपकरणों का इंतजाम किया जाना निर्धारित किया गया है. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें पीपीई किट मुहैया करवाई जा रही है, ताकि उन्हें कमी न हो और सही तरीके से बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण किया जा सके. डॉ शिप्रा कहती हैं कि इन सभी को मॉनिटर करने के लिए 'कोविड-19 बीडब्ल्यूएम' ऐप भी बनाया गया है. इसमें रोजाना इस बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण की हर जानकारी साझा की जाती है और इस बायो मेडिकल वेस्ट को एनजीटी द्वारा भी रोजाना मॉनिटर किया जा रहा है.

होम आइसोलेशन वाले संक्रमित मरीजों का बायो मेडिकल वेस्ट
अगर होम आइसोलेशन और एसिंप्टोमेटिक कोरोना संक्रमित मरीजों के बायो मेडिकल वेस्ट की बात की जाए तो डॉक्टर शिप्रा ने बताया कि एसिंप्टोमेटिक श्रेणी में आने वाले मरीजों के लिए निर्धारित की गई गाइडलाइंस में यह बताया जाता है कि जब कोरोना वायरस संक्रमित मरीज होम आइसोलेट हो तो उसके द्वारा निकाले गए हर कूड़े को एक पन्नी में रखकर उसमें ब्लीचिंग पाउडर डालकर बांध दिया जाए और उसे उठाने वाले कर्मचारी को भी इसकी जानकारी दे दी जाए, ताकि वह इस कूड़े को अलग कर सकें.

क्या कहते हैं आंकड़े
उत्तर प्रदेश में कुल कोविड-19 अस्पतालों से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट की बात की जाए तो प्रदेश में कुल 240 आइसोलेशन वॉर्ड, 152 सैंपल कलेक्शन सेंटर, 72 कोरोना टेस्टिंग लैबोरेट्रीज और 396 क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाए गए हैं. डॉ. शिप्रा के अनुसार प्रतिदिन इन सभी जगहों से कुल मिलाकर लगभग 20,000 किलोग्राम बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है. अब तक के कुल बायो मेडिकल वेस्ट के बारे में बात की जाए तो कोरोना काल में प्रतिदिन के लिहाज से 25 अप्रैल 2020 से लेकर 28 अगस्त 2020 तक लगभग 17 लाख किलोग्राम प्रतिदिन बायो मेडिकल वेस्ट के तहत निस्तारित किया गया है.

वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम लगाए जाने पर हो रहा विचार
डॉ. शिप्रा बताती हैं कि उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में कुल 18 बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट की एजेंसी स्थापित है. कई टन कूड़ा रोजाना निस्तारित किया जाता है. हालांकि यह रोजाना निकलने वाले कूड़े के निस्तारण की संख्या में काफी कम है. उनके अनुसार इसके लिए पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा कुछ नई मशीनें और वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम लगाए जाने पर भी विचार किया जा रहा है और इसका प्रस्ताव भेजा गया है.

कोविड-19 के बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण समुचित रूप से न किए जाने की स्थिति में डॉक्टर नेगी कहते हैं कि इंफेक्शन का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है और इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण द्वारा तय की गई गाइडलाइंस का भी उल्लंघन माना जा सकता है.

इस बारे में डॉक्टर शिप्रा कहती हैं कि यदि इस कूड़े का सही तरीके से निस्तारण न हो तो इसके बहुत बुरे प्रभाव देखे जा सकते हैं क्योंकि यह एक 'पोटेंशियल इन्फेक्शन सोर्स' है जो हवा और छूने भर से ही फैल सकता है और यदि ऐसे खुले में छोड़ दिया गया हो तो इसके संपर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति गंभीर रूप से संक्रमित हो सकता है.

लखनऊ: कोरोना वायरस के संक्रमण से प्रदेश भर में रोजाना हजारों की संख्या में कोविड-19 के मरीज सामने आ रहे हैं और अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज करवा रहे हैं. कोरोना संक्रमित मरीजों के संपर्क में आए कूड़े को बायो मेडिकल वेस्ट की श्रेणी में रखा गया है और इसका निस्तारण नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा बनाए गए गाइडलाइंस के आधार पर किया जाता है. प्रदेश भर में रोजाना लगभग 200 क्विंटल बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है. इसके निस्तारण के लिए किए गए व्यवस्थाओं का ईटीवी भारत ने जायजा लिया.

पीले रंग की डस्टबिन का होता है इस्तेमाल
अस्पतालों में आ रहे कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के संपर्क में आ रही हर चीज को बायो मेडिकल वेस्ट के तहत रखा जाता है और उसके निस्तारण का प्रबंधन भी अलग तरह से किया जाता है. इसके बारे में उत्तर प्रदेश चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा के महानिदेशक डॉ. डीएस नेगी कहते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण काल में आ रहा बायोमेडिकल वेस्ट पहले की अपेक्षा अलग है, क्योंकि इस दौरान मरीज के संपर्क में आने वाली हर एक चीज संक्रमित हो सकती है. इस वजह से उसे अलग तरह के बायो मेडिकल वेस्ट के तौर पर रखा जाता है. इसके निपटारे के लिए पीले रंग के डस्टबिन का इस्तेमाल किया जाता है. पीले रंग का डस्टबिन पहले भी इनफेक्शियस बायो मेडिकल वेस्ट के लिए इस्तेमाल किया जाता था. इसके तहत आने वाले कोरोना के संक्रमण के कूड़े को इकट्ठा कर उस पर कोविड-19 का लेबल भी लगा दिया जाता है ताकि इसके निपटारे का प्रबंधन अलग तरह से सुनिश्चित किया जा सके. वह कहते हैं कि यह सभी कोविड-19 अस्पतालों के लिए नियम बनाया जा चुका है और इस पर अमल भी किया जा रहा है.

बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण

समय-समय पर बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए आई नई गाइडलाइन
मेडिकल वेस्ट को कलेक्शन एरिया तक पहुंचाने का काम अस्पताल का होता है और उसके बाद इस वेस्ट को निर्धारित की गई बायो मेडिकल वेस्ट की एजेंसी लेकर जाती है. उनके लिए भी गाइडलाइंस बनाए गए हैं और उसी के तहत उन्हें ऐसे बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण करना होता है. उत्तर प्रदेश के बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम की प्रभारी डॉ. शिप्रा पांडे कहती हैं कि कोविड में निकले कूड़े के निस्तारण के लिए समय-समय पर कई गाइडलाइंस आई हैं. हाल ही में नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा चौथी बार रिवाइज्ड गाइडलाइन आई है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह से एक बायो मेडिकल वेस्ट का सही तरीके से निस्तारण किया जाना चाहिए.

डॉक्टर शिप्रा कहती हैं कि बायो मेडिकल वेस्ट के लिये लाल और पीले रंग की डस्टबिन को निर्धारित किया गया है. मसलन, रुई, इंजेक्शन, सीरिंज आदि को पीले बास्केट में तो वहीं प्लास्टिक वेस्ट जैसे ट्यूब, पाइपलाइन, पीपीई किट, गॉगल्स, फेस शील्ड आदि को लाल बास्केट में डाला जाएगा. इसके अलावा कूड़ा उठाने वाले वर्कर्स के लिए हर तरह के सुरक्षा उपकरणों का इंतजाम किया जाना निर्धारित किया गया है. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें पीपीई किट मुहैया करवाई जा रही है, ताकि उन्हें कमी न हो और सही तरीके से बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण किया जा सके. डॉ शिप्रा कहती हैं कि इन सभी को मॉनिटर करने के लिए 'कोविड-19 बीडब्ल्यूएम' ऐप भी बनाया गया है. इसमें रोजाना इस बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण की हर जानकारी साझा की जाती है और इस बायो मेडिकल वेस्ट को एनजीटी द्वारा भी रोजाना मॉनिटर किया जा रहा है.

होम आइसोलेशन वाले संक्रमित मरीजों का बायो मेडिकल वेस्ट
अगर होम आइसोलेशन और एसिंप्टोमेटिक कोरोना संक्रमित मरीजों के बायो मेडिकल वेस्ट की बात की जाए तो डॉक्टर शिप्रा ने बताया कि एसिंप्टोमेटिक श्रेणी में आने वाले मरीजों के लिए निर्धारित की गई गाइडलाइंस में यह बताया जाता है कि जब कोरोना वायरस संक्रमित मरीज होम आइसोलेट हो तो उसके द्वारा निकाले गए हर कूड़े को एक पन्नी में रखकर उसमें ब्लीचिंग पाउडर डालकर बांध दिया जाए और उसे उठाने वाले कर्मचारी को भी इसकी जानकारी दे दी जाए, ताकि वह इस कूड़े को अलग कर सकें.

क्या कहते हैं आंकड़े
उत्तर प्रदेश में कुल कोविड-19 अस्पतालों से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट की बात की जाए तो प्रदेश में कुल 240 आइसोलेशन वॉर्ड, 152 सैंपल कलेक्शन सेंटर, 72 कोरोना टेस्टिंग लैबोरेट्रीज और 396 क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाए गए हैं. डॉ. शिप्रा के अनुसार प्रतिदिन इन सभी जगहों से कुल मिलाकर लगभग 20,000 किलोग्राम बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है. अब तक के कुल बायो मेडिकल वेस्ट के बारे में बात की जाए तो कोरोना काल में प्रतिदिन के लिहाज से 25 अप्रैल 2020 से लेकर 28 अगस्त 2020 तक लगभग 17 लाख किलोग्राम प्रतिदिन बायो मेडिकल वेस्ट के तहत निस्तारित किया गया है.

वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम लगाए जाने पर हो रहा विचार
डॉ. शिप्रा बताती हैं कि उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में कुल 18 बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट की एजेंसी स्थापित है. कई टन कूड़ा रोजाना निस्तारित किया जाता है. हालांकि यह रोजाना निकलने वाले कूड़े के निस्तारण की संख्या में काफी कम है. उनके अनुसार इसके लिए पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा कुछ नई मशीनें और वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम लगाए जाने पर भी विचार किया जा रहा है और इसका प्रस्ताव भेजा गया है.

कोविड-19 के बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण समुचित रूप से न किए जाने की स्थिति में डॉक्टर नेगी कहते हैं कि इंफेक्शन का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है और इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण द्वारा तय की गई गाइडलाइंस का भी उल्लंघन माना जा सकता है.

इस बारे में डॉक्टर शिप्रा कहती हैं कि यदि इस कूड़े का सही तरीके से निस्तारण न हो तो इसके बहुत बुरे प्रभाव देखे जा सकते हैं क्योंकि यह एक 'पोटेंशियल इन्फेक्शन सोर्स' है जो हवा और छूने भर से ही फैल सकता है और यदि ऐसे खुले में छोड़ दिया गया हो तो इसके संपर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति गंभीर रूप से संक्रमित हो सकता है.

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