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Vice Chancellor of Bhatkhande Culture University : प्रो मांडवी ने ढाई महीने बाद संभाला कार्यभार, इतने दिनों तक इसलिए नहीं कर रही थीं ज्वाइन

भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय में नियुक्ति प्रक्रिया के करीब ढाई महीने बाद भी प्रो मांडवी सिंह के कार्यभार ग्रहण नहीं करने पर विश्वविद्यालय सहित शासन स्तर पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे. हालांकि पहले उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के कारण कुछ दिनों का समय मांगा था. बहरहाल उन्होंने बुधवार को अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया है.

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Published : Jan 27, 2023, 1:35 PM IST

लखनऊ : प्रो मांडवी सिंह ने बुधवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति का कार्यभार ग्रहण किया. दो वर्षों से भातखंडे संस्थान कुलपति विहीन था. भातखंडे संस्थान से विश्वविद्यालय बनने के बाद अभी तक संस्थान को कुलपति नहीं मिला था. नवंबर महीने में प्रो मांडवी के कुलपति बनने की घोषणा हुई थी. कार्यभार ग्रहण करते उन्होंने विश्वविद्यालय की समृद्धि का संकल्प लिया. प्रो. मांडवी इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ छत्तीसगढ़ की कथक की प्रफेसर हैं.

पदभार ग्रहण करते प्रो. मांडवी सिंह नौ साल (2011-2020) तक इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में बतौर कुलपति दो कार्यकाल पूरे कर चुकी हैं. पिछले दस महीने से वह भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फेलो भी हैं. वह लखनऊ से जुडीं हैं. पिछले 12 वर्षों से पंडित बिरजू महाराज के पुत्र जयकिशन महाराज के साथ कथक शिक्षा से जुड़ी हैं. विदेशों के विद्यार्थियों ने भी प्रो. मांडवी से प्रशिक्षण प्राप्त किया है. वे विभिन्न भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के अध्ययन बोर्ड शैक्षणिक निकायों की सदस्य भी हैं. प्रो. सिंह की भारतीय संस्कृति में कथक परंपरा का दूसरा संस्करण, कथक परंपरा में गुरु लच्छू महाराज, कथक परंपरा और रायगढ़ दरबार किताबें भी प्रकाशित हैं.

करीब ढाई महीने बाद ग्रहण किया अपना कार्यभार : प्रदेश सरकार ने भातखंडे सम विश्वविद्यालय को बीते साल पूर्णकालिक विश्वविद्यालय का दर्जा दिया था. इसके बाद भातखंडे सम विश्वविद्यालय से इसका नाम बदलकर भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय कर दिया गया था. पूर्णकालिक विश्वविद्यालय बनने के बाद प्रशासन की ओर से पहले कुलपति के तौर पर प्रोफेसर मांडवी सिंह को नियुक्त किया गया था, लेकिन अपनी नियुक्ति प्रक्रिया के करीब ढाई महीने बाद भी उन्होंने अपना कार्यभार ग्रहण नहीं किया था. तो विश्वविद्यालय सहित शासन स्तर पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे. पहले उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के कारण कुछ दिनों का समय मांगा था. फिर उसके बाद उनके पिता के देहांत हो जाने के कारण 10 जनवरी तक कार्यभार ग्रहण न कर पाने की सूचना विश्वविद्यालयों को भेजी थी. जब 10 जनवरी को भी उन्होंने कार्यभार नहीं ग्रहण किया तो विश्वविद्यालय में कई तरह के कयास लगाए जाए ने शुरू हो गए थे.

लखनऊ : प्रो मांडवी सिंह ने बुधवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति का कार्यभार ग्रहण किया. दो वर्षों से भातखंडे संस्थान कुलपति विहीन था. भातखंडे संस्थान से विश्वविद्यालय बनने के बाद अभी तक संस्थान को कुलपति नहीं मिला था. नवंबर महीने में प्रो मांडवी के कुलपति बनने की घोषणा हुई थी. कार्यभार ग्रहण करते उन्होंने विश्वविद्यालय की समृद्धि का संकल्प लिया. प्रो. मांडवी इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ छत्तीसगढ़ की कथक की प्रफेसर हैं.

पदभार ग्रहण करते प्रो. मांडवी सिंह नौ साल (2011-2020) तक इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में बतौर कुलपति दो कार्यकाल पूरे कर चुकी हैं. पिछले दस महीने से वह भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फेलो भी हैं. वह लखनऊ से जुडीं हैं. पिछले 12 वर्षों से पंडित बिरजू महाराज के पुत्र जयकिशन महाराज के साथ कथक शिक्षा से जुड़ी हैं. विदेशों के विद्यार्थियों ने भी प्रो. मांडवी से प्रशिक्षण प्राप्त किया है. वे विभिन्न भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के अध्ययन बोर्ड शैक्षणिक निकायों की सदस्य भी हैं. प्रो. सिंह की भारतीय संस्कृति में कथक परंपरा का दूसरा संस्करण, कथक परंपरा में गुरु लच्छू महाराज, कथक परंपरा और रायगढ़ दरबार किताबें भी प्रकाशित हैं.

करीब ढाई महीने बाद ग्रहण किया अपना कार्यभार : प्रदेश सरकार ने भातखंडे सम विश्वविद्यालय को बीते साल पूर्णकालिक विश्वविद्यालय का दर्जा दिया था. इसके बाद भातखंडे सम विश्वविद्यालय से इसका नाम बदलकर भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय कर दिया गया था. पूर्णकालिक विश्वविद्यालय बनने के बाद प्रशासन की ओर से पहले कुलपति के तौर पर प्रोफेसर मांडवी सिंह को नियुक्त किया गया था, लेकिन अपनी नियुक्ति प्रक्रिया के करीब ढाई महीने बाद भी उन्होंने अपना कार्यभार ग्रहण नहीं किया था. तो विश्वविद्यालय सहित शासन स्तर पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे. पहले उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के कारण कुछ दिनों का समय मांगा था. फिर उसके बाद उनके पिता के देहांत हो जाने के कारण 10 जनवरी तक कार्यभार ग्रहण न कर पाने की सूचना विश्वविद्यालयों को भेजी थी. जब 10 जनवरी को भी उन्होंने कार्यभार नहीं ग्रहण किया तो विश्वविद्यालय में कई तरह के कयास लगाए जाए ने शुरू हो गए थे.

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