लखनऊः उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पर्यावरण को बचाने के लिए काफी प्रयास कर रही है. इसी कड़ी में प्रदेश में 100 साल पुराने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के वृक्षों को विरासत वृक्ष घोषित किया गया है. नवंबर 2019 से विरासत वृक्षों को पूरे प्रदेश में खोजने का काम उत्तर प्रदेश जैव विविधता बोर्ड को दिया गया. लखनऊ विश्वविद्यालय के साथ मिलकर अब प्रदेश में 18 प्रजातियों के 943 ऐसी वृक्षों की पहचान की गई है, जिनका ऐतिहासिक (historical connect) और धार्मिक महत्व काफी बड़ा है.
इन वृक्षों को अब विरासत वृक्ष घोषित करके इनका संरक्षण किया जाएगा. वहीं लोगों को इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी बताया जाएगा. वहीं दूसरी तरफ इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए भी सरकार का यह प्रयास है. सरकार का यह भी प्रयास है कि यह वृक्ष जहां स्थित है वहां पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए समय-समय पर मेलों का भी आयोजन होगा जिससे उनकी आय बढ़ेगी .
तैयार है 943 विरासत वृक्षों की सूची
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश भर में विरासत वृक्षों की पहचान कराई है. 100 साल से अधिक उम्र के ऐसे वृक्ष जिनका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के साथ उनका किसी विशिष्ट व्यक्ति से लगाव और धार्मिक परंपराओं से जुड़ा होना चयन के लिए मानक थे, उनको इस श्रेणी में शामिल किया गया है .उत्तर प्रदेश में खोजे गए विरासत वृक्ष 18 प्रजातियों के हैं. वहीं इन वृक्षों में पारिजात का वृक्ष सबसे प्राचीन है.
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विरासत वृक्षों की चयनित सूची अब तैयार हो चुकी है. इसे एक कॉफी टेबल बुक का रूप दिया जा रहा है. इन विरासत वृक्षों में सबसे पुराना वृक्ष जो प्रयागराज के संगम किनारे किले में स्थित है जिसकी अनुमानित आयु 7000 साल से भी ज्यादा है. सूची में लखनऊ का दशहरी वृक्ष भी शामिल है जो 150 साल से भी पुराना है और इसे दशहरी आम का मदर ट्री कहा जाता है. बनारस का लंगड़े आम का मदर ट्री भी इसमें शामिल किया गया है. प्रदेश के विरासत वृक्षों में सबसे ज्यादा वाराणसी में 99 वृक्ष शामिल है. वहीं इनमें लखनऊ के 26 वृक्ष हैं.
1500 चयनित वृक्षों में से घोषित हुए 943 विरासत वृक्ष
सरकार की योजना के तहत उत्तर प्रदेश के 75 जनपदों में जहां 100 साल से ज्यादा उम्र के पेड़ों को काटने पर रोक है. वहीं जैव विविधता बोर्ड और लखनऊ विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयास के चलते 1500 से ज्यादा बुजुर्ग विरासत वृक्षों का चयन किया गया. जिनमें 943 वृक्ष को विरासत सूची में शामिल किया गया. पुराने पेड़ जहां पर्यावरण संरक्षण में सहायक होते हैं. वही यह पेड़ जैव विविधता को भी बढ़ावा देते हैं.
कॉफी टेबल बुक के रूप में तैयार होगी विरासत वृक्षों की सूची
जैव विविधता बोर्ड के सचिव पवन कुमार शर्मा ने बताया कि विरासत वृक्षों के ऊपर कॉफी टेबल बुक तैयार की जा रही है. जल्द ही इसका लोकार्पण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किया जाएगा. इसके साथ ही इस बुक में विरासत वृक्षों के महत्व के साथ-साथ उनकी प्राचीनता और ऐतिहासिकता के साथ महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ाव अति विशिष्ट व्यक्तियों के द्वारा इनके संबंध को धार्मिक परंपराओं के रूप में भी वर्णन होगा. पवन शर्मा का कहना है कि इससे इको टूरिज्म को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी.
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विरासत वृक्षों को काटने पर मिलेगी सजा
उत्तर प्रदेश में चयनित विरासत वृक्षों की देखभाल की जिम्मेदारी स्थानीय निकाय और ग्राम पंचायतों को दी गई है. वहीं वन विभाग और जैव विविधता बोर्ड के द्वारा इन वृक्षों की निगरानी के साथ-साथ इनका संरक्षण भी किया जाएगा. ऐसे वृक्षों को नुकसान पहुंचाने या काटने पर दोषी के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी होगी. केवल आपात स्थिति में शोध संस्थानों की सलाह पर ही इन्हें काटा या हटाया जा सकता है.
इन मांगों पर विरासत वृक्षों का हुआ चयन
1- 100 साल से पुराना वृक्ष होना चाहिए
2- धार्मिक पौराणिक परंपराओं व विशेष व्यक्तियों से जुड़ा हो
3- विलुप्त हो रही प्रजाति का हो और पूजा भी होती हो.
4- भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्थान से संकटग्रस्त प्रजाति में शामिल हो .
5-सामुदायिक भूमि पर हो और कोई विवाद ना हो.
विरासत वृक्षों में शामिल सबसे पुराना पेड़
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के निर्देश पर तलाशे गए 943 विरासत वृक्षों में जहां 100 साल से ज्यादा उम्र की वृक्षों का चयन किया गया है. इनमें उन्नाव के जानकी कुंड में लगा त्रेता युग का अक्षय वट और नैमिषारण्य का वट वृक्ष सबसे पुराने वृक्षों में शामिल है. इनकी आयु 1000 साल से भी ज्यादा बताई जाती है. प्रयागराज संगम किनारे पातालपुरी मंदिर के पास बरगद का पेड़ जिसकी आयु 7000 साल के आसपास बताई जाती है इसकी प्राचीनता विरासत वृक्षों में सबसे ज्यादा है. मुजफ्फरनगर के पास शुक्रताल को भी 5000 साल पुराना वृक्ष माना जाता है. यहां पर शुक्र देव का आश्रम था. उसी दौरान उन्होंने बरगद का पेड़ लगाया था जो आज तक जीवित है. इन वृक्षों में वाराणसी का बोधि वृक्ष भी शामिल है.