लखनऊ : उत्तर प्रदेश के हर चौराहों, एंट्री-एग्जिट प्वाॅइंट, वीवीआईपी और थानों में ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मी मानसिक तनाव में जी रहे हैं. कोई लंबी ड्यूटी से परेशान है तो कोई अवकाश न मिलने से परिवार को समय न दे पाने की वजह से तनाव में है. इस तनाव के विषय में वे न किसी से कुछ कह पा रहे हैं और न ही उनकी कोई सुनने वाला है. यही वजह है बीते कुछ वर्षों में पुलिसकर्मियों की आत्महत्या करने की बाढ़ से आ गई है. बीते दिनों यूपी के उन्नाव और लखनऊ में पुलिसकर्मियों की आत्महत्या की घटना ने एक फिर से इस मुद्दे को हवा दे दी है कि आखिर पुलिसकर्मियों का तनाव कम करने के लिए सिस्टम क्या कर रहा है.
महज 60 छुट्टियां हैं, वो भी मुस्किल से मिलती हैं : उत्तर प्रदेश पुलिस एसोसियासन अराजपत्रित के महासचिव आरडी पाठक कहते हैं कि पुलिसकर्मियों को साल भर में 60 छुट्टियां ही मिलती हैं. इन छूटी छुट्टियों का लाभ भी उन्हें किसी तरह का नहीं मिलता है. पाठक कहते हैं कि बोर्डर स्कीम न होने के चलते यदि किसी पुलिसकर्मी के घर में कोई आकस्मिक समस्या आ जाए तो घर दूर होने की वजह से उसे छुट्टी की जरूरत होती है वह भी अधिकारी छुट्टी जल्दी मंजूर नहीं करते. ऐसे में रोजाना परिवार सदस्यों द्वारा दिए जाने वाले तानों, पारिवारिक कलह के चलते पुलिसकर्मी मानसिक तनाव में चले जाते हैं.
10 वर्ष पहले वीक ऑफ देने को हुई थी पहल : हालांकि ऐसा नहीं है कि पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक छुट्टी देने की कभी पहल नहीं हुई है. 10 वर्ष पहले एक जून 2013 को तत्कालीन डीआईजी लखनऊ नवनीत सिकेरा ने पायलेट प्रोजेक्ट के तहत गोमतीनगर थाने के पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने की पहल की थी. इसे कैसे लागू किया जाएगा, इसके लिए रिसर्च भी को गई थी. इसका नतीजा सफल रहा, इस दौरान अवकाश का लाभ पाने वाले पुलिसकर्मियों का हेल्थ चेकअप भी कराया जाता रहा और उसमें भी काफी सुधार दिखा था. हालांकि धीरे-धीरे इस पहल ने दम तोड़ दिया और फिर इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका.
मानसिक रोग विशेषज्ञ इन कारणों को मानते हैं सुसाइड करने की वजह : मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ला कहते हैं कि कोरोना काल के बाद से अचानक से मानसिक तनाव इतना बढ़ गया है कि वह गुस्से में आकर आत्महत्या कर ले रहे हैं. खासकर वे पुलिसकर्मी जो 15 घंटे से अधिक की बिना छुट्टी के ड्यूटी करते हैं. डॉ. देवाशीष के मुताबिक पुलिसकर्मियों की पोस्टिंग आमतौर पर घर को छोड़िए संबधित जिले से भी काफी दूर होती है. ऐसे में परिवार से मिलना कम ही होता है. ऊपर से ड्यूटी के दौरान हमेशा अलर्ट रहना और सभी विभागों के अपेक्षा अधिक जवाबदेही होना, पब्लिक में निगेटिव इमेज, अधिकारियों की ओर से संवादहीनता, लंबी ड्यूटी, साप्ताहिक अवकाश न मिलना जैसे कारण उनके तनाव और मानसिक बीमारियों का मुख्य कारण बनते हैं और फिर अचानक से वे अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं.
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