लखनऊ: उत्तर प्रदेश में करीब साढ़े चार दशक पूर्व (वर्ष 1975) लोकायुक्त संगठन की नीव रखी गई. 1977 से कामकाज शुरू करने वाले यूपी लोकायुक्त संगठन ने अपने इस सफर के दौरान बहुत से कीर्तिमान स्थापित किए. भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए मंत्रियों, विधायकों, नौकरशाहों के खिलाफ यूपी लोकायुक्त संगठन ने कार्रवाई के लिए सरकार से मजबूत सिफारिश की. इसके चलते कई प्रभावशाली लोगों को जेल भी जाना पड़ा, लेकिन मौजूदा समय में लोकायुक्त संगठन बेहद कमजोर दिखाई पड़ रहा है. या फिर यूं कहें कि उत्तर प्रदेश लोकायुक्त संगठन केवल दिखावे का बनकर रह गया है.
सरकार करती है कार्रवाई का निर्णय
वर्तमान में न्यायमूर्ति संजय मिश्रा ने सातवें लोकायुक्त के रूप में 31 जनवरी 2016 को अपना कार्यभार ग्रहण किया है. साल 2024 तक इनका कार्यकाल है. वर्ष 2016 से खासकर योगी सरकार में लोकायुक्त की संस्तुतियों पर किसी प्रभावशाली व्यक्ति पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लोकायुक्त संगठन ने सरकार को अपनी संस्तुतियां भेजी ही नहीं. ऐसा नहीं है, सूत्रों का कहना है कि अन्वेषण के बाद संस्तुतियां की गई हैं. हर साल राज्यपाल को सारी रिपोर्ट सौंपी जाती है. कार्रवाई करने का निर्णय सरकार का होता है. भ्रष्टाचार एवं कुप्रशासन से निजात के लिए हुआ गठन भ्रष्टाचार एवं प्रशासन से निजात दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश लोकायुक्त संगठन 14 सितंबर 1977 से कार्य कर रहा है.
उत्तर प्रदेश लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त अधिनियम 1975 विधानसभा में पारित हुआ. इसके उपरांत सात सितंबर 1975 को राष्ट्रपति ने अपनी अनुमति प्रदान की. सरकारी गजट में आठ सितंबर को प्रकाशित हुआ. इस अधिनियम को 12 जुलाई 1977 को गजट नोटिफिकेशन के पश्चात इसे लागू किया गया. यह संगठन 14 सितंबर 1977 को अस्तित्व में आया, जब मध्य प्रदेश के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश विशंभर दयाल ने पदभार ग्रहण किया.
इन्होंने भी संभाला लोकायुक्त का दायित्व
न्यायमूर्ति विशंभर दयाल का कार्यकाल पूरा होने के बाद उच्च न्यायालय इलाहाबाद के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मिर्जा मोहम्मद मुर्तजा हुसैन ने 10 जनवरी 1983 को दूसरे लोकायुक्त के रूप में कार्यभार ग्रहण किया. इनके बाद तीसरे लोकायुक्त के रूप में न्यायमूर्ति कैलाश नाथ गोयल ने 28 जनवरी 1989 को पदभार ग्रहण किया. एससी वर्मा कार्यकाल में संगठन हुआ प्रभावशाली इलाहाबाद न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति राजेश्वर सिंह ने नौ फरवरी 1995 को उत्तर प्रदेश के चौथे लोकायुक्त के रूप में कुर्सी संभाली, लेकिन कार्यकाल के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई.
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इसके पश्चात न्यायमूर्ति एससी वर्मा ने पांचवें लोकायुक्त के रूप में 16 मार्च 2000 को दायित्व संभाला. एससी वर्मा सक्रिय लोकायुक्त के रूप में दिखे. इन्होंने लोकायुक्त संगठन को प्रभावशाली एवं विस्तारित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. इन्होंने कई महत्वपूर्ण मामले निपटाए.
एनके मेहरोत्रा का लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हुआ नाम
न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने छठे लोक आयुक्त के रूप में 16 मार्च 2006 को कुर्सी संभाली थी. इनके कार्यकाल के दौरान लोकायुक्त संगठन ने कई कीर्तिमान स्थापित किया. इनके कार्यकाल में आम लोगों को लोकायुक्त की क्षमता के बारे में पता चला.
तत्कालीन सरकारें भी घबड़ाती थीं
अपनी कार्यशैली के चलते ही एनके मेहरोत्रा का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल हुआ. इनके कार्यकाल में बसपा सरकार (2007-2012) के कई मंत्रियों के खिलाफ हुई शिकायतों की तह तक जाकर लोकायुक्त संगठन ने सरकार से कार्रवाई की मजबूत सिफारिश की. इनमें करीब नौ मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ. इसके साथ ही कुछ मंत्रियों को जेल भी हुई. वर्ष 2018 तक 1.8 लाख से अधिक मामलों का लिया संज्ञान लोकायुक्त संगठन में प्रारंभ से लेकर दिसंबर 2018 तक कुल एक लाख आठ हजार 479 परिवाद (मामले) प्राप्त हुए हैं. इनमें से 83 हजार 686 परिवाद प्रारंभिक स्तर पर निस्तारित किए गए. वहीं 24 हजार 432 परिवाद अन्वेषण के बाद निस्तारित किए गए. इस दौरान 522 संस्तुतियों को सक्षम प्राधिकारियों मुख्यमंत्री/मुख्य सचिव (सरकार) को भेजी गई हैं. लोकायुक्त की संस्तुतियों पर कोई कार्रवाई नहीं होने होने 208 प्रतिवेदन भी भेजा गया. इनके खिलाफ संस्तुतियां भेजी गईं उनमें आईएएस, आईपीएस, मंत्री, विधायक, नगर पालिका अध्यक्ष में शामिल हैं.