ETV Bharat / state

जानिए कृषि अपशिष्टों को जलाने से रोकने के लिए क्या कर रही है सरकार

खेतों से गन्ने और धान आदि की कटाई के बाद बचे ठूंठ अथवा अन्य खर-पतवार को जलाने की पुरानी प्रथा रही है. इससे निपटने के लिए सरकार ने राज्य जैव ऊर्जा नीति 2022 (energy policy 2022) का ड्राफ्ट तैयार किया है.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Sep 19, 2022, 7:48 PM IST

लखनऊ : खेतों से गन्ने और धान आदि की कटाई के बाद बचे ठूंठ अथवा अन्य खर-पतवार को जलाने की पुरानी प्रथा रही है. इससे निपटने के लिए सरकार ने राज्य जैव ऊर्जा नीति 2022 (energy policy 2022) का ड्राफ्ट तैयार किया है. इसके अनुसार सरकार कृषि अपशिष्ट आधारित बायो सीएनजी, सीबीजी (कंप्रेस्ड बायो गैस) इकाइयों को कई तरह के प्रोत्साहन देगी. मुख्यमंत्री चाहते हैं कि इस तरह की ईकाइयां हर जिले में लगाई जाएं. ऐसा ही एक प्लांट करीब 160 करोड़ रुपये की लागत से इंडियन ऑयल गोरखपुर के दक्षिणांचल स्थित धुरियापार में लग रहा है. उम्मीद है कि यह प्लांट मार्च 2023 तक चालू हो जाएगा. इसमें गेंहू-धान की पराली के साथ, धान की भूसी, गन्ने की पत्तियां और गोबर का उपयोग होगा. हर चीज का एक मूल्य तय होगा. इस तरह फसलों के ठूठ के दाम भी मिलेंगे और किसानों की लागत बढ़ेगी.


अगले महीने से धान की कटाई होने वाली है. कृषि यंत्रीकरण के इस दौर में अमूमन यह कटाई कंबाइन से होती है. कटाई के बाद खेतों में ही फसल पराली व ठूठ जलाने की प्रथा रही है. हर साल धान की पराली जाने से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और इससे लगे पश्चिमी क्षेत्रों में कोहरा मिश्रित धुंआ आकाश में छाकर माहौल को दमघोंटू बना देता है. हालांकि पर्यावरण संबंधी सख्त नियमों और इसके सख्त क्रियान्वयन से पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं. इसमें कानून के अलावा सरकार द्वारा चलाई गई जागरूकता एवं पराली को सहेजने वाले कृषि यंत्रों पर दिए जाने वाले अनुदान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.


माना जा रहा है कि इस तरह के प्लांट लग जाने से प्लांट की जरूरत के लिए कच्चे माल के एकत्रीकरण, लोडिंग, अनलोडिंग एवं ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर मिलेंगे. सीएनजी एवं सीबीजी के उत्पादन के बाद जो कंपोस्ट खाद उपलब्ध होगी, वह किसानों को सस्ते दामों पर उपलब्ध कराई जाएगी. इस बीच पराली जलाने के दुष्प्रभावों के प्रति किसानों को जागरूक करने के कार्यक्रम भी कृषि विज्ञान केंद्रों, किसान कल्याण केंद्रों के जरिए चलते रहेंगे. किसानों को बताया जाएगा कि पराली के साथ फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जल जाते हैं. भूसे के रूप में पशुओं का हक तो मारा ही जाता है.

यह भी पढ़ें : चीतों का भारत में रीलोकेशन कितना सफल होगा, विशेषज्ञ ने कही बड़ी बात

गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं. उप्र पशुधन विकास परिषद के पूर्व जोनल प्रबंधक डॉ. बीके सिंह के मुताबिक प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है. सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपये माना जाए तो डंठल के रूप में 7200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है. बाद में यही चारा संकट का कारण बनता है.

लखनऊ : खेतों से गन्ने और धान आदि की कटाई के बाद बचे ठूंठ अथवा अन्य खर-पतवार को जलाने की पुरानी प्रथा रही है. इससे निपटने के लिए सरकार ने राज्य जैव ऊर्जा नीति 2022 (energy policy 2022) का ड्राफ्ट तैयार किया है. इसके अनुसार सरकार कृषि अपशिष्ट आधारित बायो सीएनजी, सीबीजी (कंप्रेस्ड बायो गैस) इकाइयों को कई तरह के प्रोत्साहन देगी. मुख्यमंत्री चाहते हैं कि इस तरह की ईकाइयां हर जिले में लगाई जाएं. ऐसा ही एक प्लांट करीब 160 करोड़ रुपये की लागत से इंडियन ऑयल गोरखपुर के दक्षिणांचल स्थित धुरियापार में लग रहा है. उम्मीद है कि यह प्लांट मार्च 2023 तक चालू हो जाएगा. इसमें गेंहू-धान की पराली के साथ, धान की भूसी, गन्ने की पत्तियां और गोबर का उपयोग होगा. हर चीज का एक मूल्य तय होगा. इस तरह फसलों के ठूठ के दाम भी मिलेंगे और किसानों की लागत बढ़ेगी.


अगले महीने से धान की कटाई होने वाली है. कृषि यंत्रीकरण के इस दौर में अमूमन यह कटाई कंबाइन से होती है. कटाई के बाद खेतों में ही फसल पराली व ठूठ जलाने की प्रथा रही है. हर साल धान की पराली जाने से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और इससे लगे पश्चिमी क्षेत्रों में कोहरा मिश्रित धुंआ आकाश में छाकर माहौल को दमघोंटू बना देता है. हालांकि पर्यावरण संबंधी सख्त नियमों और इसके सख्त क्रियान्वयन से पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं. इसमें कानून के अलावा सरकार द्वारा चलाई गई जागरूकता एवं पराली को सहेजने वाले कृषि यंत्रों पर दिए जाने वाले अनुदान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.


माना जा रहा है कि इस तरह के प्लांट लग जाने से प्लांट की जरूरत के लिए कच्चे माल के एकत्रीकरण, लोडिंग, अनलोडिंग एवं ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर मिलेंगे. सीएनजी एवं सीबीजी के उत्पादन के बाद जो कंपोस्ट खाद उपलब्ध होगी, वह किसानों को सस्ते दामों पर उपलब्ध कराई जाएगी. इस बीच पराली जलाने के दुष्प्रभावों के प्रति किसानों को जागरूक करने के कार्यक्रम भी कृषि विज्ञान केंद्रों, किसान कल्याण केंद्रों के जरिए चलते रहेंगे. किसानों को बताया जाएगा कि पराली के साथ फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जल जाते हैं. भूसे के रूप में पशुओं का हक तो मारा ही जाता है.

यह भी पढ़ें : चीतों का भारत में रीलोकेशन कितना सफल होगा, विशेषज्ञ ने कही बड़ी बात

गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं. उप्र पशुधन विकास परिषद के पूर्व जोनल प्रबंधक डॉ. बीके सिंह के मुताबिक प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है. सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपये माना जाए तो डंठल के रूप में 7200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है. बाद में यही चारा संकट का कारण बनता है.

यह भी पढ़ें : आईआरसीटीसी के रेल टूर पैकेज का उठा सकते हैं लाभ, धार्मिक यात्राओं के लिए इन ट्रेनों में ले सकते हैं कंफर्म सीट

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.