लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों ने उपभोक्ताओं की बिजली दर में 18 से 23 फीसदी तक की बढ़ोतरी संबंधी प्रस्ताव नियामक आयोग को सौंपा था. इसके लिए याचिका दाखिल की गई थी. सोमवार को यूपी विद्युत नियामक आयोग (Uttar Pradesh Electricity Regulatory Commission) की तरफ से राज्य सलाहकार समिति की बैठक हुई. इसमें प्रस्तावित दरों पर मंथन किया गया. उपभोक्ता परिषद की तरफ से दाखिल बिजली दरों में कमी (Hike in electricity rates) के प्रस्ताव सहित वार्षिक राजस्व आवश्यकता वर्ष 2023-24 के मामले पर अपना विरोध उपभोक्ताओं की तरफ से दर्ज कराया.
विद्युत नियामक आयोग सभागार में सोमवार को ऊर्जा क्षेत्र की सबसे बड़ी संवैधानिक कमेटी राज्य सलाहकार समिति की बैठक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह की अध्यक्षता और सदस्य बीके श्रीवास्तव और संजय कुमार सिंह की उपस्थिति में हुई. इसमें प्रदेश की बिजली कंपनियों की तरफ से अपर मुख्य सचिव ऊर्जा महेश कुमार गुप्ता, अध्यक्ष पावर कारपोरेशन एम देवराज, प्रबंध निदेशक पंकज कुमार और निदेशक नेडा सहित उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा व अन्य प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
उपभोक्ताओं की तरफ से राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जहां तक बिजली दरों में बढ़ोतरी का सवाल है, तो वह पूरी तरह असंवैधानिक है. जब प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 25,133 करोड़ रुपया सरप्लस है, तो ऐसे में दरों में बढ़ोतरी पर जन सुनवाई नहीं होनी चाहिए थी, बल्कि दरों में कमी के मुद्दे पर जन सुनवाई होनी थी. ऐसे में बढ़ोतरी प्रस्ताव (electricity rate hike proposal) की बात करना ही रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के खिलाफ होगा. बिजली कंपनियां अपीलेट ट्रिब्यूनल में मुकदमा दाखिल कर उसकी आड़ में पिछले तीन साल से बिजली दरों में कमी के मुद्दे को लटका रही हैं. इस पर उपभोक्ता परिषद ने सुप्रीम कोर्ट की कई रूलिंग पेश करते हुए कहा कि किसी भी सूरत में बिजली दरों में कमी रोकी नहीं जा सकती.
उपभोक्ता परिषद ने अपीलेट ट्रिब्यूनल के आदेश को दिखाते हुए कहा कि रेगुलेटरी असेट के मामले में तीन वर्ष में अदायगी का आदेश है. ऐसे में जब रेगुलेटरी लायबिलिटी यानी कि सरप्लस उपभोक्ताओं का निकल रहा है, तो उसे भी तीन साल में बराबर किया जाना चाहिए. उसके आधार पर अगले पांच साल तक दरों में सात फीसदी की कमी की जानी चाहिए. उपभोक्ता परिषद ने बिजली कंपनियों की तरफ से निकाले जा रहे गलत रेगुलेटरी असेट का भी मुद्दा उठाया. कहा कि जब यह पूर्व आयोग की तरफ से खारिज किया जा चुका है, तो इसे बार-बार बिजली कंपनियां क्यों पेश करती हैं? उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने बैठक में अडानी ग्रुप पर बहस करते हुए कहा आने वाले समय में यह लडाई जारी रहेगी. जब नोएडा पावर कंपनी के मामले में सरप्लस निकला, तो बिजली दरों में वहां 10 प्रतिशत की रिबेट दी गई तो यहां पर उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनियों में यह व्यवस्था क्यों नहीं लागू की गई. यह अपने आप में बहुत बडा संवैधानिक संकट हैं.
उपभोक्ता परिषद ने चंडीगढ में सरप्लस के मामले में जारी आदेश पर भी चर्चा की. कहा कि वहां फ्यूल सरचार्ज तक की वसूली बंद है फिर प्रदेश में भी इस प्रकार की व्यवस्था लागू हो. यहां उत्तर प्रदेश में फ्यूल सरचार्ज में भी उपभोक्ताओं का सरप्लस निकल रहा है उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह ने स्पष्ट किया कि बिजली कंपनियों का बढ़ोतरी का प्रस्ताव सिर्फ जनसुनवाई में दिखाया गया है उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है.जहां तक सवाल है बिजली कंपनियों की तरफ से निकाले जा रहे रेगुलेटरी असेट का तो वह पहले ही खारिज किया जा चुका है. चेयरमैन ने कहा कि पूरी गंभीरता से जो भी मुद्दे उठाए जा रहे हैं उसे आदेश में सम्मिलित करने के लिए संकलित किया है. इसके आधार पर आगे निर्णय लिया जाएगा.
पावर कारपोरेशन के चेयरमैन एम. देवराज ने यह मुद्दा उठाया कि आरडीएसएस स्कीम में जो वितरण हानियां भारत सरकार ने ट्रैजेक्टरी के रूप में अनुमानित की हैं उसे आयोग लागू करे और उसी आधार पर टैरिफ निर्धारण करे. पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक पंकज कुमार ने कहा कि मेरिट आर्डर के मामले में बिजली खरीद के कुल क्वांटम को देखा जाना चाहिए. अवधेश कुमार वर्मा ने वितरण हानियों पर कहा कि आरडीएसएस में अनुमानित वितरण हानियां नहीं ली जा सकतीं क्योंकि विद्युत नियामक आयोग अपने बिजनेस प्लान में पहले ही वितरण हानियां क्या लिया जाना है, उस पर निर्णय सुना चुका है.
ऐसे में बिजनेस प्लान में अनुमानित वितरण हानियां वर्ष 2023-24 के लिए 10.31 प्रतिशत तय की गई हैं, वहीं लिया जाना चाहिए. पावर कारपोरेशन 14.90 प्रतिशत वितरण हानियां लागू करने की मांग कर रहा है. इससे उपभोक्ताओं का बडा नुकसान होगा. उपभोक्ता परिषद ने कहा जब बिजनेस प्लान अनुमोदित नहीं किया गया था, तब बिजली कंपनियां कह रही थीं कि बिजनेस प्लान अनुमोदित हो तभी बिजली पर प्रस्ताव दिया जाएगा. अब अनुमोदित किया गया है तो उसके आंकड़े मानने को तैयार नहीं.
अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि किसानों के मामले में सरकार ने कहा था कि एक अप्रैल से बिजली फ्री की जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि टैरिफ जब जारी होगा तो वह व्यवस्था आगे से लागू होगी. लेकिन किसानों के मामले में क्या एक अप्रैल से बिजली फ्री का निर्णय लिया जाना है? इस पर आयोग चेयरमैन ने कहा यह मामला सरकार और आयोग के बीच का है जो भी सरकार ने सब्सिडी का एलान किया है उसके आधार पर टैरिफ में निर्णय लिया जाएगा.