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लालची अफसरों ने डाली UPPCL में PF महाघोटाले की बुनियाद, जानें पूरा मामला

उत्तर प्रदेश में यूपीपीसीएल में पीएफ घोटाले में अधिकारियों ने शातिराना भूमिका निभाई. उन्होंने पीएफ के रुपए निजी क्षेत्र में जमा कर ज्यादा ब्याज का लालच दिखाकर पूरा षडयंत्र रचा. अब सीबीआई को जांच सौंपने में भी देरी की जा रही है. इससे कर्मचारियों में आक्रोश बढ़ रहा है.

पीएफ घोटाले में मुख्य भूमिका निभाने वाले अफसर शिकंजे से बाहर
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Published : Nov 14, 2019, 1:16 PM IST

लखनऊ. यूपीपीसीएल (उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड) में भविष्य निधि घोटाले (पीएफ) की बुनियाद लालची जिम्मेदार अफसरों की शातिराना हरकतों के चलते पड़ी. अपनी जेब भरने के चक्कर में कुछ लालची अफसरों ने बिजली विभाग के हजारों कर्मचारियों के हजारों करोड़ की भविष्य निधि में डाका डाल दिया.

पीएफ घोटाले में मुख्य भूमिका निभाने वाले अफसर शिकंजे से बाहर

मामले का खुलासा हुआ. कई घोटालेबाज अफसर ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ चुके हैं. उनसे पूछताछ जारी है. वहीं दूसरी ओर कर्मचारियों को अपने खून पसीने की कमाई का रुपए डूबने का खतरा सता रहा है. वे सड़कों पर हैं. कर्मचारी, सरकार से अपने पीएफ की राशि को बचाने की गुहार लगा रहे हैं.

इस तरह पड़ी महाघोटाले की नींव

जीपीएफ और सीपीएफ के लिए 8 मई 2013 को बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की बैठक हुई. इसमें तय हुआ कि सामान्य भविष्य निधि की रकम को केवल राष्ट्रीयकृत बैंक में ही लगाया जाएगा. बोर्ड ने 21 अप्रैल 2014 को दूसरी बैठक की और अपना पुराना निर्णय बदल दिया. इसमें ज्यादा ब्याज देने वाली निजी कंपनियों में भी पीएफ का रुपए लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. यहीं से पीएफ महाघोटाले की नींव पड़ी. इस महाघोटाले में 17 मार्च 2017 की तारीख सबसे अहम है. इस तारीख को ट्रस्ट के सचिव और निदेशक वित्त ने निजी कंपनी डीएचएफएल (दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड) में निवेश का अनुमोदन कर दिया. इसके बाद 24 मार्च 2017 में बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में यह प्रपोजल रखा गया. इसे रोकने के बजाए निजी कंपनियों में रुपए लगाने वाले फैसले को भविष्य में भी लागू रखने के लिए अधिकृत कर दिया. इसी आधार पर बिजली कर्मियों के जीपीएफ और सीपीएफ के 4122.70 करोड़ रुपए निजी डीएचएफएल में निवेश किए गए.

मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक यूपी स्टेट सेक्टर पावर एम्पलाइज ट्रस्ट ने जीपीएफ के 2631.20 करोड रुपए और यूपीपीसीएल सीपीएफ (कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड) के 1491.50 करोड़ रुपए डीएचएफसीएल में फिक्स्ड डिपॉजिट किए थे. इस राशि से कुल 1854.80 करोड़ रुपए की ही वापसी हो पाई है. मुंबई हाईकोर्ट ने डीएचएफसीएल के भुगतान पर रोक लगा दी थी, जिससे बिजली कर्मियों के 2267.90 करोड रुपए फंस गए हैं. यदि अधिकारी मार्च 2017 के फैसलों पर सतर्कता बरतते, तो न निवेश होता और न ही बिजली कर्मियों 2267 करोड़ की रकम फंसती.

गुमनाम पत्र ने खोला महाघोटाला

विभाग को 10 जुलाई 2019 को एक गुमनाम शिकायत मिली. पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष आलोक कुमार ने 12 जुलाई को जांच कमेटी गठित की. 29 अगस्त को जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में ट्रस्ट द्वारा गाइडलाइन का पालन नहीं करना, हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में निवेश के आवेदन पत्रों की हस्ताक्षरित प्रतियां नहीं कराना, ट्रस्ट की राशि के 99 प्रतिशत से अधिक केवल 3 हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश करना, 65 प्रतिशत राशि दीवान हाउसिंग फाइनेंस में निवेश करना जैसी बड़ी खामी सामने आईं.

जांच रिपोर्ट के बाद ही 10 अक्टूबर को प्रथमदृष्टया आरोपी तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता, महाप्रबंधक (वित्त)को निलंबित किया गया. अक्तूबर 2016 तक दोनों ट्रस्टों की राशि को राष्ट्रीयकृत बैंकों में फिक्स डिपॉजिट में ही निवेश किया जा रहा था. 17 मार्च 2017 को निजी क्षेत्र की दीवान हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में सावधि जमा कर दिया गया.

कुछ पर कार्रवाई, बड़े घोटालेबाज अब भी बाहर

घोटाले में जिम्मेदार प्रवीण कुमार गुप्ता और सुधांशु द्विवेदी को ईओडब्ल्यू की टीम ने गिरफ्तार किया, पावर कारपोरेशन के तत्कालीन प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा भी ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ चुके हैं. वहीं इस पूरे घोटाले की पटकथा का अहम किरदार ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता का बेटा अभिनव गुप्ता भी ईओडब्ल्यू के शिकंजे में है.बताया जा रहा है कि अभिनव गुप्ता ने ही ब्रोकर कंपनियों के माध्यम से डीएचएफएल में निवेश कराया. इसके बदले कई करोड़ कमीशन बनाया. ईओडब्ल्यू की टीम के राडार में अन्य अधिकारी भी हैं. लेकिन इस पूरी कार्रवाई से बिजली कर्मचारी संतुष्ट नहीं हैं. उनका आरोप है कि मुख्य जिम्मेदार ब्यूरोक्रेट्स पर कार्रवाई के बजाए बचाने की कोशिश की जा रही है. सरकार ने पावर कारपोरेशन की एमडी अपर्णा यू को हटा दिया. कुछ दिनों बाद प्रमुख सचिव आलोक कुमार को भी विभाग से हटाकर दूसरे विभाग की जिम्मेदारी दे दी गई. कर्मचारियों की मांग है कि तत्कालीन ऊर्जा सचिव आलोक कुमार को गिरफ्तार किया जाए, उनके पहले भी जिन ब्यूरोक्रेट्स के समय घोटाले की नींव रखी गई. उनसे भी पूछताछ हो.

सीबीआई जांच की बात कही पर हुई नहीं

सरकार ने कर्मचारियों के हजारों करोड़ के भविष्य निधि के महाघोटाले पर पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने को कहा था. लेकिन सरकार अब इससे पीछे हटती दिख रही है. सूत्र बताते हैं कि सीबीआई जांच होती है, तो कई सफेदपोशों की गर्दन भी फंस सकती है. वहीं कर्मचारी लगातार आंदोलन कर सरकार पर सीबीआई जांच कराने का दबाव बना रहे हैं. उन्हें विश्वास है कि सीबीआई जांच में असली दोषी फंसेंगे और उनकी गाढ़ी कमाई का रुपए वापस मिल सकेगा.

पूर्व ऊर्जा सचिव से हो सकती है पूछताछ

ईओडब्ल्यू, पावर कार्पोरेशन के पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल से भी पूछताछ करेगी. पीएफ की धनराशि के डीएचएफएल में निवेश के मामले में पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल की भी भूमिका पाई गई है. उन्हें पूछताछ के लिए लखनऊ बुलाया जाएगा. यह भी खुलासा हुआ है कि 12 फर्जी ब्रोकर कंनियों के सहारे डीएचएफएल में निवेश किया गया. ये फर्म किसकी थी? कहां की थी? इन फर्मों की क्या भूमिका थी? इसकी भी जांच अहम है. कुल 14 ब्रोकर फर्मों ने निवेश कराने में योगदान दिया था. ईओडब्ल्यू के सूत्र बताते हैं कि डीएचएफएल में निवेश की पत्रावली पर जिन-जिन लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, उन सभी से पूछताछ की जाएगी.

यूपीपीसीएल के दो लेखाधिकारियों से हुई पूछताछ

ईओडब्ल्यू अब तक यूपीपीसीएल के एक मौजूदा और एक पूर्व लेखाधिकारी को भी बुलाकर पूछताछ कर चुकी है. ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने पूछा कि आखिर डीएचएफएल में कब-कब और कितना-कितना निवेश किया गया. कुछ और कर्मचारियों को जल्द ही बुलाकर ईओडब्ल्यू पूछताछ करेगी. बहरहाल कर्मचारियों को अपने पीएफ की राशि चाहिए.

घोटाले की ये तारीखें बनेंगी गवाह

- 8 मई 2013 को जीपीएफ और सीपीएफ के लिए बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में तय हुआ कि सामान्य भविष्य निधि की रकम को केवल राष्ट्रीयकृत बैंक में ही लगाया जाएगा
- 21 अप्रैल 2014 को ट्रस्ट की दूसरी बैठक में पुराना निर्णय बदल दिया गया और ज्यादा ब्याज देने वाली निजी कंपनियों में भी पीएफ का रुपए लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया
- 17 मार्च 2017 को ट्रस्ट के सचिव और निदेशक ने डीएचएफएल में निवेश का अनुमोदन किया.
- 24 मार्च 2017 को बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में ये प्रपोजल रखा गया. इसे रोकने के बजाए भविष्य में भी ऐसा ही करने के लिए अधिकृत कर दिया गया.
- मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक इसी आधार पर जीपीएफ और सीपीएफ की 4122.70 करोड़ रुपए की राशि निजी कंपनी डीएचएफएल में निवेश कर दी गई.
- 10 जुलाई 2019 को एक गुमनाम शिकायत यूपीपीसीएल को मिली.
- 12 जुलाई को पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष आलोक कुमार ने जांच कमेटी गठित की.
- 29 अगस्त को जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की. जांच में पीएफ में घोटाले का मामला सामने आया.
- 10 अक्टूबर 2019 को तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता, महाप्रबंधक (वित्त) को निलंबित किया गया.
- ईओडब्ल्यू ने अधिकारी प्रवीण कुमार गुप्ता, सुधांशु द्विवेदी को गिरफ्तार किया. तत्कालीन प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा भी शिकंजे में हैं. प्रवीण गुप्ता के बेटे अभिनव गुप्ता से भी पूछताछ जारी है.

लखनऊ. यूपीपीसीएल (उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड) में भविष्य निधि घोटाले (पीएफ) की बुनियाद लालची जिम्मेदार अफसरों की शातिराना हरकतों के चलते पड़ी. अपनी जेब भरने के चक्कर में कुछ लालची अफसरों ने बिजली विभाग के हजारों कर्मचारियों के हजारों करोड़ की भविष्य निधि में डाका डाल दिया.

पीएफ घोटाले में मुख्य भूमिका निभाने वाले अफसर शिकंजे से बाहर

मामले का खुलासा हुआ. कई घोटालेबाज अफसर ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ चुके हैं. उनसे पूछताछ जारी है. वहीं दूसरी ओर कर्मचारियों को अपने खून पसीने की कमाई का रुपए डूबने का खतरा सता रहा है. वे सड़कों पर हैं. कर्मचारी, सरकार से अपने पीएफ की राशि को बचाने की गुहार लगा रहे हैं.

इस तरह पड़ी महाघोटाले की नींव

जीपीएफ और सीपीएफ के लिए 8 मई 2013 को बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की बैठक हुई. इसमें तय हुआ कि सामान्य भविष्य निधि की रकम को केवल राष्ट्रीयकृत बैंक में ही लगाया जाएगा. बोर्ड ने 21 अप्रैल 2014 को दूसरी बैठक की और अपना पुराना निर्णय बदल दिया. इसमें ज्यादा ब्याज देने वाली निजी कंपनियों में भी पीएफ का रुपए लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. यहीं से पीएफ महाघोटाले की नींव पड़ी. इस महाघोटाले में 17 मार्च 2017 की तारीख सबसे अहम है. इस तारीख को ट्रस्ट के सचिव और निदेशक वित्त ने निजी कंपनी डीएचएफएल (दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड) में निवेश का अनुमोदन कर दिया. इसके बाद 24 मार्च 2017 में बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में यह प्रपोजल रखा गया. इसे रोकने के बजाए निजी कंपनियों में रुपए लगाने वाले फैसले को भविष्य में भी लागू रखने के लिए अधिकृत कर दिया. इसी आधार पर बिजली कर्मियों के जीपीएफ और सीपीएफ के 4122.70 करोड़ रुपए निजी डीएचएफएल में निवेश किए गए.

मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक यूपी स्टेट सेक्टर पावर एम्पलाइज ट्रस्ट ने जीपीएफ के 2631.20 करोड रुपए और यूपीपीसीएल सीपीएफ (कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड) के 1491.50 करोड़ रुपए डीएचएफसीएल में फिक्स्ड डिपॉजिट किए थे. इस राशि से कुल 1854.80 करोड़ रुपए की ही वापसी हो पाई है. मुंबई हाईकोर्ट ने डीएचएफसीएल के भुगतान पर रोक लगा दी थी, जिससे बिजली कर्मियों के 2267.90 करोड रुपए फंस गए हैं. यदि अधिकारी मार्च 2017 के फैसलों पर सतर्कता बरतते, तो न निवेश होता और न ही बिजली कर्मियों 2267 करोड़ की रकम फंसती.

गुमनाम पत्र ने खोला महाघोटाला

विभाग को 10 जुलाई 2019 को एक गुमनाम शिकायत मिली. पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष आलोक कुमार ने 12 जुलाई को जांच कमेटी गठित की. 29 अगस्त को जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में ट्रस्ट द्वारा गाइडलाइन का पालन नहीं करना, हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में निवेश के आवेदन पत्रों की हस्ताक्षरित प्रतियां नहीं कराना, ट्रस्ट की राशि के 99 प्रतिशत से अधिक केवल 3 हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश करना, 65 प्रतिशत राशि दीवान हाउसिंग फाइनेंस में निवेश करना जैसी बड़ी खामी सामने आईं.

जांच रिपोर्ट के बाद ही 10 अक्टूबर को प्रथमदृष्टया आरोपी तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता, महाप्रबंधक (वित्त)को निलंबित किया गया. अक्तूबर 2016 तक दोनों ट्रस्टों की राशि को राष्ट्रीयकृत बैंकों में फिक्स डिपॉजिट में ही निवेश किया जा रहा था. 17 मार्च 2017 को निजी क्षेत्र की दीवान हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में सावधि जमा कर दिया गया.

कुछ पर कार्रवाई, बड़े घोटालेबाज अब भी बाहर

घोटाले में जिम्मेदार प्रवीण कुमार गुप्ता और सुधांशु द्विवेदी को ईओडब्ल्यू की टीम ने गिरफ्तार किया, पावर कारपोरेशन के तत्कालीन प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा भी ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ चुके हैं. वहीं इस पूरे घोटाले की पटकथा का अहम किरदार ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता का बेटा अभिनव गुप्ता भी ईओडब्ल्यू के शिकंजे में है.बताया जा रहा है कि अभिनव गुप्ता ने ही ब्रोकर कंपनियों के माध्यम से डीएचएफएल में निवेश कराया. इसके बदले कई करोड़ कमीशन बनाया. ईओडब्ल्यू की टीम के राडार में अन्य अधिकारी भी हैं. लेकिन इस पूरी कार्रवाई से बिजली कर्मचारी संतुष्ट नहीं हैं. उनका आरोप है कि मुख्य जिम्मेदार ब्यूरोक्रेट्स पर कार्रवाई के बजाए बचाने की कोशिश की जा रही है. सरकार ने पावर कारपोरेशन की एमडी अपर्णा यू को हटा दिया. कुछ दिनों बाद प्रमुख सचिव आलोक कुमार को भी विभाग से हटाकर दूसरे विभाग की जिम्मेदारी दे दी गई. कर्मचारियों की मांग है कि तत्कालीन ऊर्जा सचिव आलोक कुमार को गिरफ्तार किया जाए, उनके पहले भी जिन ब्यूरोक्रेट्स के समय घोटाले की नींव रखी गई. उनसे भी पूछताछ हो.

सीबीआई जांच की बात कही पर हुई नहीं

सरकार ने कर्मचारियों के हजारों करोड़ के भविष्य निधि के महाघोटाले पर पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने को कहा था. लेकिन सरकार अब इससे पीछे हटती दिख रही है. सूत्र बताते हैं कि सीबीआई जांच होती है, तो कई सफेदपोशों की गर्दन भी फंस सकती है. वहीं कर्मचारी लगातार आंदोलन कर सरकार पर सीबीआई जांच कराने का दबाव बना रहे हैं. उन्हें विश्वास है कि सीबीआई जांच में असली दोषी फंसेंगे और उनकी गाढ़ी कमाई का रुपए वापस मिल सकेगा.

पूर्व ऊर्जा सचिव से हो सकती है पूछताछ

ईओडब्ल्यू, पावर कार्पोरेशन के पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल से भी पूछताछ करेगी. पीएफ की धनराशि के डीएचएफएल में निवेश के मामले में पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल की भी भूमिका पाई गई है. उन्हें पूछताछ के लिए लखनऊ बुलाया जाएगा. यह भी खुलासा हुआ है कि 12 फर्जी ब्रोकर कंनियों के सहारे डीएचएफएल में निवेश किया गया. ये फर्म किसकी थी? कहां की थी? इन फर्मों की क्या भूमिका थी? इसकी भी जांच अहम है. कुल 14 ब्रोकर फर्मों ने निवेश कराने में योगदान दिया था. ईओडब्ल्यू के सूत्र बताते हैं कि डीएचएफएल में निवेश की पत्रावली पर जिन-जिन लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, उन सभी से पूछताछ की जाएगी.

यूपीपीसीएल के दो लेखाधिकारियों से हुई पूछताछ

ईओडब्ल्यू अब तक यूपीपीसीएल के एक मौजूदा और एक पूर्व लेखाधिकारी को भी बुलाकर पूछताछ कर चुकी है. ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने पूछा कि आखिर डीएचएफएल में कब-कब और कितना-कितना निवेश किया गया. कुछ और कर्मचारियों को जल्द ही बुलाकर ईओडब्ल्यू पूछताछ करेगी. बहरहाल कर्मचारियों को अपने पीएफ की राशि चाहिए.

घोटाले की ये तारीखें बनेंगी गवाह

- 8 मई 2013 को जीपीएफ और सीपीएफ के लिए बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में तय हुआ कि सामान्य भविष्य निधि की रकम को केवल राष्ट्रीयकृत बैंक में ही लगाया जाएगा
- 21 अप्रैल 2014 को ट्रस्ट की दूसरी बैठक में पुराना निर्णय बदल दिया गया और ज्यादा ब्याज देने वाली निजी कंपनियों में भी पीएफ का रुपए लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया
- 17 मार्च 2017 को ट्रस्ट के सचिव और निदेशक ने डीएचएफएल में निवेश का अनुमोदन किया.
- 24 मार्च 2017 को बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में ये प्रपोजल रखा गया. इसे रोकने के बजाए भविष्य में भी ऐसा ही करने के लिए अधिकृत कर दिया गया.
- मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक इसी आधार पर जीपीएफ और सीपीएफ की 4122.70 करोड़ रुपए की राशि निजी कंपनी डीएचएफएल में निवेश कर दी गई.
- 10 जुलाई 2019 को एक गुमनाम शिकायत यूपीपीसीएल को मिली.
- 12 जुलाई को पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष आलोक कुमार ने जांच कमेटी गठित की.
- 29 अगस्त को जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की. जांच में पीएफ में घोटाले का मामला सामने आया.
- 10 अक्टूबर 2019 को तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता, महाप्रबंधक (वित्त) को निलंबित किया गया.
- ईओडब्ल्यू ने अधिकारी प्रवीण कुमार गुप्ता, सुधांशु द्विवेदी को गिरफ्तार किया. तत्कालीन प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा भी शिकंजे में हैं. प्रवीण गुप्ता के बेटे अभिनव गुप्ता से भी पूछताछ जारी है.

Intro:लालची अफसरों की शातिराना हरकतों से पड़ी यूपीपीसीएल के इस पीएफ महाघोटाले की बुनियाद

लखनऊ। यूपीपीसीएल में भविष्य निधि घोटाले की बुनियाद लालची जिम्मेदार अफसरों की शातिराना हरकतों के चलते ही पड़ी थी। अपनी जेब भरने के चक्कर में कुछ लालची अफसरों ने बिजली विभाग के हजारों कर्मचारियों की हजारों करोड़ की भविष्य निधि में खेल कर उनके भविष्य में अंधेरा ला दिया। अधिक ब्याज वाले विकल्प पर विचार करने के निर्णय के बाद ही इस महाघोटाले को अंजाम दिया गया। हालांकि कई महा घोटालेबाज अफसर और उनसे जुड़े लोग अब इस महा घोटाले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ चुके हैं और कई शातिर लोगों से पूछताछ जारी है। बावजूद इसके अभी भी कर्मचारी सड़क पर हैं क्योंकि उन्हें अपने पैसे डूबने की फिक्र सता रही है। लगातार हजारों कर्मचारी सड़क पर उतरकर सरकार से भविष्य निधि का पैसा वापस कराकर भविष्य संवारने की गुहार लगा रहे हैं।

इस तरह पड़ी नींव

जीपीएफ और सीपीएफ के लिए 8 मई 2013 को बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की बैठक में तय हुआ था कि सामान्य भविष्य निधि की रकम को केवल राष्ट्रीयकृत बैंक में ही लगाया जाएगा, लेकिन बोर्ड ने 21 अप्रैल 2014 को पुराना निर्णय बदल दिया और यहीं से शुरू हुआ इस घोटाले का खेल। बोर्ड ने राष्ट्रीय कृत बैंक के निवेश की तरह सुरक्षित और ज्यादा ब्याज के चक्कर में यह निर्णय लिया था जो भविष्य में भविष्य निधि से खिलवाड़ करने वाला साबित हुआ है। अब इस पर घमासान मचा हुआ है वहीं कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। पहले 8 मई 2013 को बोर्ड का पहला कदम और उसके बाद 17 मार्च 2017 को दूसरा कदम घातक साबित हुआ जब ट्रस्ट के सचिव और निदेशक वित्त ने निजी कंपनी डीएचएफएल में पहले निवेश का अनुमोदन कर दिया। 24 मार्च 2017 को बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में जब यह प्रपोजल रखा गया तो सेक्रेटरी और डायरेक्टर ने सवाल जवाब करने के बजाए उल्टा भविष्य में ऐसे और फैसले लेने के लिए अधिकृत कर दिया। बिजली कर्मियों के जीपीएफ और सीपीएफ के 4122.70 करोड़ रुपए निजी कंपनी दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड में निवेश किए गए थे।


Body:मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक यूपी स्टेट सेक्टर पावर एम्पलाइज ट्रस्ट द्वारा जीपीएफ के 2631.20 करोड रुपए और यूपीपीसीएल सीपीएफ (कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड के 1491.50 करोड़ रुपए डीएचएफसीएल में फिक्स्ड डिपॉजिट करा दिया गया था। अभी तक इस राशि में से कुल 1854.80करोड़ रुपए की ही वापसी हो पाई है। मुंबई हाई कोर्ट ने डीएचएफसीएल के भुगतान पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद बिजली कर्मियों के 2267.90 करोड रुपए फंस गए । 17 मार्च 2017 को हुए निवेश के बाद अगर सतर्कता बरती जाती तो उसके आगे ना निवेश होता और न ही आज 2267 करोड़ की रकम फंसी होती।

ऐसे खुला पीएफ घोटाले का राज

बता दें कि 10 जुलाई 2019 को विभाग को एक गुमनाम शिकायत मिली। पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष आलोक कुमार ने 12 जुलाई को जांच कमेटी गठित की। 29 अगस्त को जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में ट्रस्ट द्वारा गाइडलाइन का पालन नहीं करना, हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में निवेश के आवेदन पत्रों की हस्ताक्षरित प्रतियां नहीं कराना, ट्रस्ट की राशि के 99 प्रतिशत से अधिक केवल 3 हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश करना, 65 प्रतिशत राशि दीवान हाउसिंग फाइनेंस में निवेश करना, सामने आया। जांच रिपोर्ट मिलते ही 10 अक्तूबर को प्रथमदृष्टया आरोपी तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता, महाप्रबंधक (वित्त)को निलंबित किया गया। 21 अप्रैल 2014 को बोर्ड ऑफ ट्रस्टी ने बैंक के निवेश की तरह अधिक सुरक्षित एवं अधिक सुनिश्चित ब्याज वाले विकल्प मिलने पर उन पर विचार करने और आवश्यकता पड़ने पर निवेश सलाहकार की सेवाएं लेने के लिए निदेशक (वित्त) को अधिकृत किया था। अक्तूबर 2016 तक दोनों ट्रस्टों की राशि को राष्ट्रीयकृत बैंकों में फिक्स डिपॉजिट में ही निवेश किया जा रहा था। 17 मार्च 2017 को निजी क्षेत्र की दीवान हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में सावधि जमा कर दिया गया।

धरे गए खेल करने वाले, कुछ पर कार्रवाई

घोटाले में जिम्मेदार प्रवीण कुमार गुप्ता और सुधांशु द्विवेदी को ईओडब्ल्यू की टीम ने गिरफ्तार कर लिया, वहीं महा घोटाले में अहम भूमिका निभाने वाले पावर कारपोरेशन के तत्कालीन प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा भी ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ चुके हैं। वहीं इस पूरे घोटाले की पटकथा लिखने वाला ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता का बेटा अभिनव गुप्ता भी अब ईओडब्ल्यू के पास है। बताया जा रहा है कि अभिनव गुप्ता ने ही ब्रोकर कंपनियों के माध्यम से डीएचएफएल में निवेश कराया और इसके बदले कई करोड़ कमीशन बनाया। अभी ईओडब्ल्यू की टीम अन्य अधिकारियों को भी रडार पर लिए हुए है। हालांकि एक बड़ा सवाल अभी भी बिजली कर्मचारी लगातार उठा रहे हैं और वह यही है कि सरकार ने इसके असल जिम्मेदार ब्यूरोक्रेट्स पर कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि उन्हें विभाग से हटाकर दूसरे विभाग की जिम्मेदारी देकर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की है। बता दें कि जब महा घोटाला खुला तो सरकार ने पावर कारपोरेशन की एमडी अपर्णा यू को हटा दिया और जब मांग और तेजी पकड़ी तो प्रमुख सचिव आलोक कुमार को भी इस विभाग से हटाकर दूसरे विभाग की जिम्मेदारी दे दी गई। कर्मचारी लगातार सड़कों पर उतर कर मांग कर रहे हैं कि तत्कालीन ऊर्जा सचिव आलोक कुमार को गिरफ्तार किया जाए, साथ ही इससे पहले भी जिन ब्यूरोक्रेट्स के समय इस घोटाले की नींव रखी गई उनसे भी पूछताछ हो।

सीबीआई जांच की बात कही पर हुई नहीं

सरकार ने कर्मचारियों के हजारों करोड़ के भविष्य निधि के इस महा घोटाले पर पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की बात कही थी, लेकिन सरकार अब इससे पीछे हटती हुई दिख रही है। सूत्र बताते हैं कि डर ये है कि अगर सीबीआई जांच हो जाती है तो कई सफेदपोश के गर्दन तक भी हाथ पहुंचेंगे। ऐसे में सीबीआई जांच से जहां तक बच पाया जाए, बचा जाए, वहीं कर्मचारी लगातार आंदोलन कर सरकार पर सीबीआई जांच कराने का दबाव बना रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि जब सीबीआई जांच होगी तभी असल दोषी फंसेंगे और कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई का पैसा उन्हें वापस मिल पाएगा।


बाइट 1: शैलेंद्र दुबे: अध्यक्ष, विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति

बाइट 2: अवधेश वर्मा: अध्यक्ष, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद




Conclusion:पूर्व ऊर्जा सचिव से भी हो सकती है पूछताछ

पीएफ घोटाले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू पावर कार्पोरेशन के पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल से भी पूछताछ करेगी। पीएफ की धनराशि के डीएचएफएल में निवेश के मामले में पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल की भी भूमिका पाई गई है। 
ईओडब्ल्यू जल्द ही पूछताछ के लिए उन्हें लखनऊ बुला सकती है। साथ ही जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि 12 फर्जी ब्रोकर कंनियों के सहारे डीएचएफएल में निवेश किया गया। यह फर्म किसकी थी? कहां की थी? और इन फर्मों की क्या भूमिका थी, इसकी भी जांच की जा रही है।
ईओडब्ल्यू के सूत्र बताते हैं कि डीएचएफएल में निवेश की पत्रावली पर जिन-जिन लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, उन सभी से सवाल किए जाएंगे। जानकारी हुई कि कुल 14 ब्रोकर फर्मों ने निवेश कराने में योगदान दिया था। 



यूपीपीसीएल के  दो लेखाधिकारियों से हुई पूछताछ

ईओडब्ल्यू अब तक यूपीपीसीएल के एक मौजूदा और एक पूर्व लेखाधिकारी को भी बुलाकर पूछताछ कर चुकी है। ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने पूछा कि आखिर डीएचएफएल में कब-कब और कितना-कितना निवेश किया गया। कुछ और कर्मचारियों को जल्द ही बुलाकर ईओडब्ल्यू पूछताछ करेगी।


यूपीपीसीएल में इतना बड़ा घोटाला हुआ तो इस घोटाले का सीधा असर विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों पर पड़ा है। उनकी भविष्य निधि की रकम डूबती हुए नजर आ रही है। अब ईओडब्ल्यू की कार्रवाई और सीबीआई जांच के बाद ही यह तय हो पाएगा कि कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई का पैसा उन्हें वापस मिल पाएगा या डूब ही जाएगा। इसीलिए कर्मचारी लगातार विरोध प्रदर्शित कर सरकार पर दबाव बनाने में लगे हैं कि मामले को सीबीआई ही हैंडल करे तभी कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय होने से बच सकेगा।


अखिल पांडेय, लखनऊ, 9336864096


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