लखनऊ. यूपीपीसीएल (उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड) में भविष्य निधि घोटाले (पीएफ) की बुनियाद लालची जिम्मेदार अफसरों की शातिराना हरकतों के चलते पड़ी. अपनी जेब भरने के चक्कर में कुछ लालची अफसरों ने बिजली विभाग के हजारों कर्मचारियों के हजारों करोड़ की भविष्य निधि में डाका डाल दिया.
मामले का खुलासा हुआ. कई घोटालेबाज अफसर ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ चुके हैं. उनसे पूछताछ जारी है. वहीं दूसरी ओर कर्मचारियों को अपने खून पसीने की कमाई का रुपए डूबने का खतरा सता रहा है. वे सड़कों पर हैं. कर्मचारी, सरकार से अपने पीएफ की राशि को बचाने की गुहार लगा रहे हैं.
इस तरह पड़ी महाघोटाले की नींव
जीपीएफ और सीपीएफ के लिए 8 मई 2013 को बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की बैठक हुई. इसमें तय हुआ कि सामान्य भविष्य निधि की रकम को केवल राष्ट्रीयकृत बैंक में ही लगाया जाएगा. बोर्ड ने 21 अप्रैल 2014 को दूसरी बैठक की और अपना पुराना निर्णय बदल दिया. इसमें ज्यादा ब्याज देने वाली निजी कंपनियों में भी पीएफ का रुपए लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. यहीं से पीएफ महाघोटाले की नींव पड़ी. इस महाघोटाले में 17 मार्च 2017 की तारीख सबसे अहम है. इस तारीख को ट्रस्ट के सचिव और निदेशक वित्त ने निजी कंपनी डीएचएफएल (दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड) में निवेश का अनुमोदन कर दिया. इसके बाद 24 मार्च 2017 में बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में यह प्रपोजल रखा गया. इसे रोकने के बजाए निजी कंपनियों में रुपए लगाने वाले फैसले को भविष्य में भी लागू रखने के लिए अधिकृत कर दिया. इसी आधार पर बिजली कर्मियों के जीपीएफ और सीपीएफ के 4122.70 करोड़ रुपए निजी डीएचएफएल में निवेश किए गए.
मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक यूपी स्टेट सेक्टर पावर एम्पलाइज ट्रस्ट ने जीपीएफ के 2631.20 करोड रुपए और यूपीपीसीएल सीपीएफ (कंट्रीब्यूटरी प्रोविडेंट फंड) के 1491.50 करोड़ रुपए डीएचएफसीएल में फिक्स्ड डिपॉजिट किए थे. इस राशि से कुल 1854.80 करोड़ रुपए की ही वापसी हो पाई है. मुंबई हाईकोर्ट ने डीएचएफसीएल के भुगतान पर रोक लगा दी थी, जिससे बिजली कर्मियों के 2267.90 करोड रुपए फंस गए हैं. यदि अधिकारी मार्च 2017 के फैसलों पर सतर्कता बरतते, तो न निवेश होता और न ही बिजली कर्मियों 2267 करोड़ की रकम फंसती.
गुमनाम पत्र ने खोला महाघोटाला
विभाग को 10 जुलाई 2019 को एक गुमनाम शिकायत मिली. पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष आलोक कुमार ने 12 जुलाई को जांच कमेटी गठित की. 29 अगस्त को जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में ट्रस्ट द्वारा गाइडलाइन का पालन नहीं करना, हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में निवेश के आवेदन पत्रों की हस्ताक्षरित प्रतियां नहीं कराना, ट्रस्ट की राशि के 99 प्रतिशत से अधिक केवल 3 हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश करना, 65 प्रतिशत राशि दीवान हाउसिंग फाइनेंस में निवेश करना जैसी बड़ी खामी सामने आईं.
जांच रिपोर्ट के बाद ही 10 अक्टूबर को प्रथमदृष्टया आरोपी तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता, महाप्रबंधक (वित्त)को निलंबित किया गया. अक्तूबर 2016 तक दोनों ट्रस्टों की राशि को राष्ट्रीयकृत बैंकों में फिक्स डिपॉजिट में ही निवेश किया जा रहा था. 17 मार्च 2017 को निजी क्षेत्र की दीवान हाउसिंग फाइनेंस कंपनी में सावधि जमा कर दिया गया.
कुछ पर कार्रवाई, बड़े घोटालेबाज अब भी बाहर
घोटाले में जिम्मेदार प्रवीण कुमार गुप्ता और सुधांशु द्विवेदी को ईओडब्ल्यू की टीम ने गिरफ्तार किया, पावर कारपोरेशन के तत्कालीन प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा भी ईओडब्ल्यू के हत्थे चढ़ चुके हैं. वहीं इस पूरे घोटाले की पटकथा का अहम किरदार ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता का बेटा अभिनव गुप्ता भी ईओडब्ल्यू के शिकंजे में है.बताया जा रहा है कि अभिनव गुप्ता ने ही ब्रोकर कंपनियों के माध्यम से डीएचएफएल में निवेश कराया. इसके बदले कई करोड़ कमीशन बनाया. ईओडब्ल्यू की टीम के राडार में अन्य अधिकारी भी हैं. लेकिन इस पूरी कार्रवाई से बिजली कर्मचारी संतुष्ट नहीं हैं. उनका आरोप है कि मुख्य जिम्मेदार ब्यूरोक्रेट्स पर कार्रवाई के बजाए बचाने की कोशिश की जा रही है. सरकार ने पावर कारपोरेशन की एमडी अपर्णा यू को हटा दिया. कुछ दिनों बाद प्रमुख सचिव आलोक कुमार को भी विभाग से हटाकर दूसरे विभाग की जिम्मेदारी दे दी गई. कर्मचारियों की मांग है कि तत्कालीन ऊर्जा सचिव आलोक कुमार को गिरफ्तार किया जाए, उनके पहले भी जिन ब्यूरोक्रेट्स के समय घोटाले की नींव रखी गई. उनसे भी पूछताछ हो.
सीबीआई जांच की बात कही पर हुई नहीं
सरकार ने कर्मचारियों के हजारों करोड़ के भविष्य निधि के महाघोटाले पर पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने को कहा था. लेकिन सरकार अब इससे पीछे हटती दिख रही है. सूत्र बताते हैं कि सीबीआई जांच होती है, तो कई सफेदपोशों की गर्दन भी फंस सकती है. वहीं कर्मचारी लगातार आंदोलन कर सरकार पर सीबीआई जांच कराने का दबाव बना रहे हैं. उन्हें विश्वास है कि सीबीआई जांच में असली दोषी फंसेंगे और उनकी गाढ़ी कमाई का रुपए वापस मिल सकेगा.
पूर्व ऊर्जा सचिव से हो सकती है पूछताछ
ईओडब्ल्यू, पावर कार्पोरेशन के पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल से भी पूछताछ करेगी. पीएफ की धनराशि के डीएचएफएल में निवेश के मामले में पूर्व चेयरमैन संजय अग्रवाल की भी भूमिका पाई गई है. उन्हें पूछताछ के लिए लखनऊ बुलाया जाएगा. यह भी खुलासा हुआ है कि 12 फर्जी ब्रोकर कंनियों के सहारे डीएचएफएल में निवेश किया गया. ये फर्म किसकी थी? कहां की थी? इन फर्मों की क्या भूमिका थी? इसकी भी जांच अहम है. कुल 14 ब्रोकर फर्मों ने निवेश कराने में योगदान दिया था. ईओडब्ल्यू के सूत्र बताते हैं कि डीएचएफएल में निवेश की पत्रावली पर जिन-जिन लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, उन सभी से पूछताछ की जाएगी.
यूपीपीसीएल के दो लेखाधिकारियों से हुई पूछताछ
ईओडब्ल्यू अब तक यूपीपीसीएल के एक मौजूदा और एक पूर्व लेखाधिकारी को भी बुलाकर पूछताछ कर चुकी है. ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने पूछा कि आखिर डीएचएफएल में कब-कब और कितना-कितना निवेश किया गया. कुछ और कर्मचारियों को जल्द ही बुलाकर ईओडब्ल्यू पूछताछ करेगी. बहरहाल कर्मचारियों को अपने पीएफ की राशि चाहिए.
घोटाले की ये तारीखें बनेंगी गवाह
- 8 मई 2013 को जीपीएफ और सीपीएफ के लिए बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में तय हुआ कि सामान्य भविष्य निधि की रकम को केवल राष्ट्रीयकृत बैंक में ही लगाया जाएगा
- 21 अप्रैल 2014 को ट्रस्ट की दूसरी बैठक में पुराना निर्णय बदल दिया गया और ज्यादा ब्याज देने वाली निजी कंपनियों में भी पीएफ का रुपए लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया
- 17 मार्च 2017 को ट्रस्ट के सचिव और निदेशक ने डीएचएफएल में निवेश का अनुमोदन किया.
- 24 मार्च 2017 को बोर्ड आफ ट्रस्ट की बैठक में ये प्रपोजल रखा गया. इसे रोकने के बजाए भविष्य में भी ऐसा ही करने के लिए अधिकृत कर दिया गया.
- मार्च 2017 से दिसंबर 2018 तक इसी आधार पर जीपीएफ और सीपीएफ की 4122.70 करोड़ रुपए की राशि निजी कंपनी डीएचएफएल में निवेश कर दी गई.
- 10 जुलाई 2019 को एक गुमनाम शिकायत यूपीपीसीएल को मिली.
- 12 जुलाई को पावर कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष आलोक कुमार ने जांच कमेटी गठित की.
- 29 अगस्त को जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की. जांच में पीएफ में घोटाले का मामला सामने आया.
- 10 अक्टूबर 2019 को तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता, महाप्रबंधक (वित्त) को निलंबित किया गया.
- ईओडब्ल्यू ने अधिकारी प्रवीण कुमार गुप्ता, सुधांशु द्विवेदी को गिरफ्तार किया. तत्कालीन प्रबंध निदेशक एपी मिश्रा भी शिकंजे में हैं. प्रवीण गुप्ता के बेटे अभिनव गुप्ता से भी पूछताछ जारी है.