लखनऊः भारतीय जनता पार्टी (BJP) की छोटे दलों से अनबन की वजह से सभी जातियों को साधना उसके लिए बड़ी चुनौती बन गई है. भाजपा जिन दलों को साथ लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की थी, आज भाजपा से नाराज चल रहे हैं. ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) तो भाजपा से अलग हो चुकी है. चुनावी हलचल बढ़ते देख इस बात की भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि आखिर ओमप्रकाश राजभर और अनुप्रिया पटेल जैसे नेता 2022 के विधानसभा चुनाव में किसके साथ जाएंगे.
मोदी कैबिनेट में शामिल हो सकती हैं अनुप्रिया पटेल
भारतीय जनता पार्टी ने 2017 का विधानसभा चुनाव सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (एस) के साथ गठबंधन कर लड़ा था. उत्तर प्रदेश में कुर्मी बिरादरी का अच्छा प्रभाव है. इसी बिरादरी से अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल अध्यक्ष हैं. अपना दल (एस) का 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन हुआ था और पार्टी के दो सांसद जीते. इनमें से अनुप्रिया पटेल को मोदी सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया. लेकिन मोदी की दूसरी सरकार आने पर अनुप्रिया पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया. बताया जा रहा है कि इससे अनुप्रिया पटेल नाराज हैं. दूसरी तरफ अनुप्रिया पटेल के पति आशीष सिंह भाजपा के सहयोग से एमएलसी बने हैं. अपना दल का प्रयास था कि अनुप्रिया पटेल के पति आशीष सिंह को योगी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए, वह भी नहीं हुआ. इसलिए अपना दल की नाराजगी नाराज चल रही है. सूत्रों की मानें तो मोदी कैबिनेट का विस्तार होने वाला है और इसमें अनुप्रिया पटेल को मंत्री बनाया जा सकता है.
ओपी रजभर को मनाएगी भाजपा?
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाले ओमप्रकाश राजभर सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे. उनकी योगी सरकार से लगातार खटपट चलती रही थी जिसकी वजह से वह सरकार से बाहर हो गए और गठबंधन भी तोड़ दिया. अब उन्होंने छोटे-छोटे दलों का नया गठबंधन तैयार किया है. उसके बलबूते वह मोलभाव करेंगे. सवाल उठता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी ओमप्रकाश राजभर के दरवाजे पर मनाने के लिए जाएगी. जानकारों की मानें तो अभी इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता है लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा ऐसे दलों को साथ लाना जरूर चाहेगी.
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिला था लाभ
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपना दल को 11 सीटें दी थी. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 8 और भाजपा ने खुद 384 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा था. इसमें से भाजपा को 312 सीटें मिलीं. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को चार और अपना दल को 9 सीटों पर जीत मिली थी. सहयोगियों को दी गईं सीटें गिनती में भले ही कम हों लेकिन जातीय आधारित इन दलों का पूर्वांचल की कई सीटों पर प्रभाव पड़ा. लिहाज भाजपा को इसका लाभ मिला.
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छोटे दलों को साधने में जुटे सपा मुखिया अखिलेश
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी छोटे दलों को साधने की कोशिश कर रहे हैं. प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी छोटे दलों को केंद्र में रखकर आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति बना रही है. पिछले दिनों अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी से विद्रोह करने वाले अपने चाचा की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) से गठबंधन करने के संकेत दिए थे. शिवपाल यादव की तरफ से भी सकारात्मक जवाब दिया गया था. सपा राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी पर भी नजर बनाए हुए हैं. अखिलेश चाहते हैं कि पिछड़ी जाति का नेतृत्व करने वाले अगर सभी छोटे दल सपा के साथ खड़े होंगे तो 2022 में उन्हें मजबूती मिलेगी. मुस्लिम, यादव और अन्य पिछड़ी जातियां एक साथ लाने का प्रयास किया जा रहा है. इसी रणनीति के तहत अखिलेश यादव आगे बढ़ रहे हैं. देखना होगा कि भारतीय जनता पार्टी इस जातीय संतुलन को साधने के लिए किस हद तक सफल हो पाती है.