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UP Politics: कल्याण सिंह के ICU में जाते ही आखिर क्यों बढ़ी BJP की धड़कनें - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Former Chief Minister Kalyan Singh) लखनऊ के पीजीआई में भर्ती हैं, लेकिन लेकिन धड़कनें बीजेपी की बढ़ी हुई हैं. क्योंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास अभी भी कल्याण सिंह जैसा मजबूत और बड़ा पिछड़ों का चेहरा नहीं है. जबकि यूपी में विधानसभा (UP Assembly Election 2022) चुनाव नजदीक है.

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह
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Published : Jul 13, 2021, 6:52 PM IST

लखनऊः भाजपा (BJP) में अबतक ओबीसी के सबसे बड़ा चेहरा रहे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Former Chief Minister Kalyan Singh) फिलहाल आईसीयू में हैं, लेकिन धड़कनें बीजेपी की बढ़ी हुई हैं. वजह साफ है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी के पास अभी भी कल्याण सिंह जैसा मजबूत और बड़ा पिछड़ों का चेहरा नहीं है और विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) नजदीक है. दरअसल यूपी में अखिलेश यादव ओबीसी की सियासत (OBC Politics) कर रहे हैं और पिछड़ों को साधने की कोशिश में लगे हैं. ऐसे में भाजपा को कल्याण जैसे चेहरे की बेहद जरूरत है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पीजीआई में भर्ती कल्याण सिंह को देखने के लिए भाजपा के प्रदेश से लेकर केंद्रीय नेताओं के पहुंचने का सिलसिला जारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके स्वास्थ्य का हाल बराबर ले रहे हैं.

इसे भी पढ़ें-लखनऊ पहुंचे बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से की मुलाकात

बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यपाल कल्याण सिंह की तबीयत बिगड़ी तो उन्हें लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनका हाल लेने फौरन डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अस्पताल पहुंच गए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी तीन बार कल्याण सिंह का हाल-चाल जानने अस्पताल जा चुके हैं. सीएम हर दिन पूर्व मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य की जानकारी डॉक्टरों से ले रहे हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, यूपी भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, सुनील बंसल, बिहार सरकार के मंत्री शाहनवाज हुसैन समेत पार्टी के बड़े नेता कल्याण सिंह को देखने के लिए पहुंच चुके हैं. दरअसल, राम मंदिर आंदोलन के वक्त से कल्याण सिंह का कद इस कदर बढ़ा कि भाजपा और कल्याण एक दूसरे के पूरक बन गए. हालांकि अनबन की वजह से उन्होंने दो बार भाजपा छोड़ी, लेकिन आज भी उनके कद का पिछड़ा नेता यूपी भाजपा के पास नहीं है.

पिछड़ों का साथ भाजपा के लिए जरूरी क्यों?
राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि कल्याण सिंह बड़े नेता हैं, इसलिए उन्हें लोग देखने जाएंगे ही. रही बात भाजपा के पिछड़ी राजनीति की तो यह वक्त की जरूरत है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में पिछड़ा वर्ग एक बहुत बड़ा वोट बैंक है. ऐसे में हर राजनीतिक दल इस वोट बैंक को साधने की कोशिश करेगा. उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ताधारी दल है और चुनाव नजदीक है. ऐसे में स्वाभाविक है कि सभी राजनीतिक दल यह चाहेंगे कि उनके पास प्रदेश का सबसे बड़ा वोट बैंक रहे. भाजपा भी यही कर रही है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है. इसमें भी 27 चेहरे ओबीसी के हैं. उत्तर प्रदेश से जिन सात चेहरों को शामिल किया गया है, उनमें भी ओबीसी को खास महत्व दिया गया है.

सपा का दावा, पिछड़ों का वोट बैंक हमारे पास
बता दें कि समाजवादी दावा करती है कि उसके पास पिछड़ों का सबसे बड़ा वोट बैंक है. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने छोटे दलों के साथ गठबंधन करने की बात कह चुके हैं. प्रदेश के ज्यादातर छोटे दल पिछड़ा वर्ग पर आधारित हैं. वह चाहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (एस) हों या फिर निषाद पार्टी. इनमें से दो दल निषाद पार्टी और अपना दल (एस) भाजपा के साथ हैं. राजभर की पार्टी भाजपा का साथ छोड़ चुकी है. सपा ऐसे दलों को साथ लेने की कोशिश में है. पीएन द्विवेदी कहते हैं कि सपा के पास पिछड़ों में यादव विरादरी सपा के साथ मजबूती से खड़ा है. इसके अलावा अन्य जातियों को साधने की सपा की कोशिश होगी. यदि सपा इसमें सफल होती है तो 2022 में वह काफी मजबूती से लड़ेगी. दूसरी तरफ भाजपा यादव वोट बैंक पर भी काम कर रही है.

लखनऊः भाजपा (BJP) में अबतक ओबीसी के सबसे बड़ा चेहरा रहे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Former Chief Minister Kalyan Singh) फिलहाल आईसीयू में हैं, लेकिन धड़कनें बीजेपी की बढ़ी हुई हैं. वजह साफ है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी के पास अभी भी कल्याण सिंह जैसा मजबूत और बड़ा पिछड़ों का चेहरा नहीं है और विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) नजदीक है. दरअसल यूपी में अखिलेश यादव ओबीसी की सियासत (OBC Politics) कर रहे हैं और पिछड़ों को साधने की कोशिश में लगे हैं. ऐसे में भाजपा को कल्याण जैसे चेहरे की बेहद जरूरत है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पीजीआई में भर्ती कल्याण सिंह को देखने के लिए भाजपा के प्रदेश से लेकर केंद्रीय नेताओं के पहुंचने का सिलसिला जारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके स्वास्थ्य का हाल बराबर ले रहे हैं.

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बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यपाल कल्याण सिंह की तबीयत बिगड़ी तो उन्हें लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनका हाल लेने फौरन डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अस्पताल पहुंच गए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी तीन बार कल्याण सिंह का हाल-चाल जानने अस्पताल जा चुके हैं. सीएम हर दिन पूर्व मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य की जानकारी डॉक्टरों से ले रहे हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, यूपी भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, सुनील बंसल, बिहार सरकार के मंत्री शाहनवाज हुसैन समेत पार्टी के बड़े नेता कल्याण सिंह को देखने के लिए पहुंच चुके हैं. दरअसल, राम मंदिर आंदोलन के वक्त से कल्याण सिंह का कद इस कदर बढ़ा कि भाजपा और कल्याण एक दूसरे के पूरक बन गए. हालांकि अनबन की वजह से उन्होंने दो बार भाजपा छोड़ी, लेकिन आज भी उनके कद का पिछड़ा नेता यूपी भाजपा के पास नहीं है.

पिछड़ों का साथ भाजपा के लिए जरूरी क्यों?
राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि कल्याण सिंह बड़े नेता हैं, इसलिए उन्हें लोग देखने जाएंगे ही. रही बात भाजपा के पिछड़ी राजनीति की तो यह वक्त की जरूरत है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में पिछड़ा वर्ग एक बहुत बड़ा वोट बैंक है. ऐसे में हर राजनीतिक दल इस वोट बैंक को साधने की कोशिश करेगा. उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ताधारी दल है और चुनाव नजदीक है. ऐसे में स्वाभाविक है कि सभी राजनीतिक दल यह चाहेंगे कि उनके पास प्रदेश का सबसे बड़ा वोट बैंक रहे. भाजपा भी यही कर रही है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है. इसमें भी 27 चेहरे ओबीसी के हैं. उत्तर प्रदेश से जिन सात चेहरों को शामिल किया गया है, उनमें भी ओबीसी को खास महत्व दिया गया है.

सपा का दावा, पिछड़ों का वोट बैंक हमारे पास
बता दें कि समाजवादी दावा करती है कि उसके पास पिछड़ों का सबसे बड़ा वोट बैंक है. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने छोटे दलों के साथ गठबंधन करने की बात कह चुके हैं. प्रदेश के ज्यादातर छोटे दल पिछड़ा वर्ग पर आधारित हैं. वह चाहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (एस) हों या फिर निषाद पार्टी. इनमें से दो दल निषाद पार्टी और अपना दल (एस) भाजपा के साथ हैं. राजभर की पार्टी भाजपा का साथ छोड़ चुकी है. सपा ऐसे दलों को साथ लेने की कोशिश में है. पीएन द्विवेदी कहते हैं कि सपा के पास पिछड़ों में यादव विरादरी सपा के साथ मजबूती से खड़ा है. इसके अलावा अन्य जातियों को साधने की सपा की कोशिश होगी. यदि सपा इसमें सफल होती है तो 2022 में वह काफी मजबूती से लड़ेगी. दूसरी तरफ भाजपा यादव वोट बैंक पर भी काम कर रही है.

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