लखनऊ : उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम (UP Minority Congress President Shahnawaz Alam) ने मथुरा की ज़िला अदालत द्वारा शाही ईदगाह मस्जिद को मन्दिर बताने वाली याचिका को स्वीकार कर पुरातत्व विभाग द्वारा सर्वेक्षण के आदेश को पूजा स्थल क़ानून 1991 का उल्लंघन बताया है. उन्होंने सिविल कोर्ट के जज के खिलाफ़ मुख्य न्यायाधीश द्वारा कार्रवाई की मांग की है.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मथुरा ज़िला अदालत का यह आदेश 1991 के पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 तक धार्मिक स्थलों का जो भी चरित्र था वो यथावत रहेगा, इसे चुनौती देने वाली किसी भी प्रतिवेदन या अपील को किसी न्यायालय, न्यायाधिकरण (ट्रीब्युनल) या प्राधिकार (ऑथोरिटी) के समक्ष स्वीकार नहीं किया जा सकता और ऐसा करने की कोशिश करने वालों को 3 से 7 साल की सज़ा का भी प्रावधान है. जारी प्रेस विज्ञप्ति में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि निचली अदालतें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और कानूनों का उल्लंघन कर रही हैं और उन पर सुप्रीम अदालतें स्वतः संज्ञान ले कर कोई अनुशासनात्मक कार्यवाई तक नहीं कर रही हैं. इससे न्यायपालिका की छवि सरकार के इशारे पर चलने वाली संस्था की बनती जा रही है. उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह पूरी कवायद धर्म स्थल अधिनियम 1991 में बदलाव की भूमिका तैयार करने के लिए की जा रही है. जिसमें संशोधन की मांग वाली भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका को 13 मार्च 2021 को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबड़े और एएस बोपन्ना की बेंच ने स्वीकार कर लिया था.
इसी का माहौल बनाने के लिए काशी, मथुरा, बदायूं की जामा मस्जिद और आगरा के ताज महल को मन्दिर बताने वाली याचिकाओं को दाख़िल करा कर उन्हें अपनी विचारधारा से जुड़े जजों से स्वीकार करवाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों को मिले संवैधानिक अधिकारों को छीनने के लिए न्यायपालिका के एक हिस्से का दुरूपयोग कर रही है. संविधान बचाने के लिए सभी वर्गों को एक साथ होना होगा और संविधान विरोधी फैसलों पर मुखर होना होगा.
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