लखनऊ : शिक्षा और चिकित्सा मूलभूत जरूरतों में से एक मानी जाती हैं, लेकिन इन क्षेत्रों में सरकार को अभी बहुत कुछ करना बाकी है. लाख कोशिशों के बावजूद गांवों में प्राथमिक शिक्षा आज भी बेहाल हैं. शिक्षकों की कोई जवाबदेही नहीं है. पांचवीं पास तमाम बच्चे अपना नाम तक नहीं लिख सकते. तमाम बच्चे सिर्फ मध्यान भोजन और यूनिफार्म के पैसों के लिए स्कूल आते हैं. शिक्षा का महत्व न तो अभिभावक समझ पाए हैं और न ही शिक्षक इसके लिए गंभीर हैं. यदि शिक्षकों की तरक्की और वेतन वृद्धि आदि उनकी परफार्मेंस से जोड़ दी जाए तो निश्चित रूप से इस क्षेत्र में सुधार हो सकता है. सरकार शिक्षकों की हाजिरी आदि पर तो ध्यान दे रही है, लेकिन शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. यही कारण है कि व्यवस्था पंगु बनी हुई है.
भले ही सरकार लाख दावे करे, लेकिन चिकित्सा सेवाओं का भी बुरा हाल है. ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले ज्यादातर चिकित्साकर्मी और डॉक्टर शहरों में रहते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति भी बहुत कम है. इस कारण तमाम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तमाम जांचें आदि हो ही नहीं पातीं. विशेषज्ञ डॉक्टरों का भी टोटा है. ऐसे में लोगों को निजी अस्पतालों में इलाज के लिए जाना ही पड़ता है. चिकित्सा क्षेत्र में भी अभी बहुत काम करने की जरूरत है. ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी अस्पताल के डॉक्टर उन छोटी-छोटी बीमारियों के लिए भी रोगियों को मुख्यालय रेफर कर देते हैं, जिनका स्थानीय स्तर पर इलाज संभव हो सकता था. इसके लिए भी डॉक्टरों को जवाबदेह और जिम्मेदार बनाने की जरूरत है.
गांवों में बिजली की उपलब्धता अब भी एक बड़ी समस्या है. ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति के दावे हकीकत से जुदा हैं. अघोषित कटौती इस कदर है कि कई जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में आठ-दस घंटे बिजली भी बमुश्किल ही मिल पाती है. बिना बिजली के विकास के तमाम कार्य ठप पड़ जाते हैं. हां, जाड़ों में जब बिजली की मांग कम हो जाती है तो गांवों में भी बिजली ज्यादा दी जाने लगती है. इसलिए सरकार को अब धीरे-धीरे गांवों में भी 24 घंटे बिजली आपूर्ति की ओर बढ़ना होगा. बिजली चोरी पर भी प्रभावी नियंत्रण जरूरी है, क्योंकि इसकी कीमत ईमानदार उपभोक्ताओं को भरनी पड़ती है.
वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक शरद कहते हैं गांवों में पिछले एक दशक में सड़कों का जो जाल बिछाया गया है, उससे तरक्की के कई द्वार खुले हैं. लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए आवागमन सुगम हुआ है. साथ ही व्यापार और कृषि को भी इससे काफी लाभ हुआ है. हां, शिक्षा चिकित्सा और बिजली के क्षेत्र में सरकार को अभी बहुत कुछ करना बाकी है. सरकार ने 6 लाख 93 हजार 663 स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से 72 लाख 69 हजार 755 ग्रामीण परिवारों को जोड़ा है. 600 प्रोड्यूसर समूह एवं 32 प्रोड्यूसर्स इंटरप्राइजेज (एफपीओ) का गठन कर किसानों की आय बढ़ाने की कोशिश भी हुई है. सरकार को यह देखना चाहिए कि आखिर शिक्षा और चिकित्सा आदि क्षेत्रों में क्या कारण है कि उसकी कोशिशों के सही परिणाम नहीं आ रहे. जो खामियां निकलकर सामने आएं, उन्हें दूर करने से स्थिति बेहतर होगी.