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यूपी की 'इनसाइक्लोपीडिया' हो रही है तैयार, जानिए क्या कुछ होगा खास - अयोध्या शोध संस्थान

यूपी का गौरवशाली इतिहास अब दुनिया के सामने होगा. ये वो इतिहास है जो गुमनामी के अंधेरे में ढका हुआ था. खास बात ये है कि ये इतिहास डिजिटल मोड में होगा.

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'इनसाइक्लोपीडिया' हो रही है तैयार
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Published : Apr 20, 2022, 5:48 PM IST

लखनऊः यूपी का गौरवशाली इतिहास अब दुनिया के सामने होगा. ये वो इतिहास है, जो गुमनामी के अंधेरे में ढका हुआ था. खास बात ये है कि ये इतिहास डिजिटल मोड में होगा. इससे एक क्लिक पर दुनिया को असली उत्तर प्रदेश जानने का अवसर मिलेगा. 75 साल, 75 जिले, 75 पुस्तक की थीम पर संस्कृति विभाग 75 किताबें तैयार करा रहा है. इसकी जिम्मेदारी अयोध्या शोध संस्थान को सौंपी गई है. 15 अगस्त 2023 को राज्य की जनता को इस संकलित इतिहास को उपहार के रूप में सौंपा जाएगा.

अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर लवकुश द्विवेदी ने बताया कि प्रदेशवासियों को जश्न ए आजादी का ये तोहफा होगा. इसमें कोशिश की जा रही है कि यूपी के इतिहास से जुड़ी कही अनकही कहानियों से लेकर तथ्यों, धरोहरों, नायकों के संघर्ष को समाहित किया जाए. प्रयास है कि आजादी के महासंग्राम में शामिल हुए प्रदेश के वीरों की गाथाओं से लेकर कारगिल युद्ध तक के नायकों को इसमें शामिल किया जाएगा.

यूपी के इतिहास को संकलित करने के इस काम के लिए एक समिति का गठन किया गया है. इस राज्यस्तरीय समिति में अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को पदेन सदस्य के रूप में शामिल किया गया है. इनमें वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री विद्या बिंदु सिंह, लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सूर्य प्रकाश दीक्षित, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डीपी तिवारी, इतिहासकार रवि भट्ट शामिल हैं.

इसे भी पढ़ें- ट्रेडिशनल मेडिसीन में अगले 25 वर्ष स्वर्णिम काल, 'हील इन इंडिया' बनेगा ब्रांड : पीएम मोदी

क्या हैं अयोध्या के शोध संस्थानः अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना संस्कृति विभाग, उ०प्र० शासन द्वारा ऐतिहासिक तुलसी भवन, अयोध्या में 18 अगस्त, 1986 को की गयी. यह संस्कृति विभाग की स्वायत्तशासी संस्था है. इसका मुख्य उद्देश्य सामान्य रूप से अयोध्या की कला संस्कृति एवं साहित्य, लोक साहित्य, इतिहास और परम्पराओं की पाण्डुलिपियों, वस्तुओं, शिल्प तथ्यों का संग्रह संरक्षण और अध्ययन करना है. इसके अलावा, अवध की सांस्कृतिक विरासत से संबंधित नष्ट और विलुप्त हो रही पुरालेखीय सामग्री को सुरक्षित रखना है. अवध की भारतीय विद्या, कला, संस्कृति और इतिहास में विशेष रूप से अयोध्या, रामायण और तुलसीदास के साहित्य और दर्शन से संबंधित शोध कार्य को प्रोत्साहन देना और पूरा करना.

लखनऊः यूपी का गौरवशाली इतिहास अब दुनिया के सामने होगा. ये वो इतिहास है, जो गुमनामी के अंधेरे में ढका हुआ था. खास बात ये है कि ये इतिहास डिजिटल मोड में होगा. इससे एक क्लिक पर दुनिया को असली उत्तर प्रदेश जानने का अवसर मिलेगा. 75 साल, 75 जिले, 75 पुस्तक की थीम पर संस्कृति विभाग 75 किताबें तैयार करा रहा है. इसकी जिम्मेदारी अयोध्या शोध संस्थान को सौंपी गई है. 15 अगस्त 2023 को राज्य की जनता को इस संकलित इतिहास को उपहार के रूप में सौंपा जाएगा.

अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर लवकुश द्विवेदी ने बताया कि प्रदेशवासियों को जश्न ए आजादी का ये तोहफा होगा. इसमें कोशिश की जा रही है कि यूपी के इतिहास से जुड़ी कही अनकही कहानियों से लेकर तथ्यों, धरोहरों, नायकों के संघर्ष को समाहित किया जाए. प्रयास है कि आजादी के महासंग्राम में शामिल हुए प्रदेश के वीरों की गाथाओं से लेकर कारगिल युद्ध तक के नायकों को इसमें शामिल किया जाएगा.

यूपी के इतिहास को संकलित करने के इस काम के लिए एक समिति का गठन किया गया है. इस राज्यस्तरीय समिति में अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को पदेन सदस्य के रूप में शामिल किया गया है. इनमें वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री विद्या बिंदु सिंह, लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सूर्य प्रकाश दीक्षित, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डीपी तिवारी, इतिहासकार रवि भट्ट शामिल हैं.

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क्या हैं अयोध्या के शोध संस्थानः अयोध्या शोध संस्थान की स्थापना संस्कृति विभाग, उ०प्र० शासन द्वारा ऐतिहासिक तुलसी भवन, अयोध्या में 18 अगस्त, 1986 को की गयी. यह संस्कृति विभाग की स्वायत्तशासी संस्था है. इसका मुख्य उद्देश्य सामान्य रूप से अयोध्या की कला संस्कृति एवं साहित्य, लोक साहित्य, इतिहास और परम्पराओं की पाण्डुलिपियों, वस्तुओं, शिल्प तथ्यों का संग्रह संरक्षण और अध्ययन करना है. इसके अलावा, अवध की सांस्कृतिक विरासत से संबंधित नष्ट और विलुप्त हो रही पुरालेखीय सामग्री को सुरक्षित रखना है. अवध की भारतीय विद्या, कला, संस्कृति और इतिहास में विशेष रूप से अयोध्या, रामायण और तुलसीदास के साहित्य और दर्शन से संबंधित शोध कार्य को प्रोत्साहन देना और पूरा करना.

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