लखनऊ: उत्तर प्रदेश डाटा सेंटर नीति 2021 के तहत एनआईडीपी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड (NIDP Developers Private Limited) की तरफ से उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग में दाखिल डाटा सेंटर पार्क ग्रेटर नोएडा के लिए वितरण लाइसेंस की याचिका पर बुधवार को यूपी विद्युत नियामक आयोग ने 25 साल के लिए उसे डाटा सेंटर का वितरण लाइसेंस दे दिया. विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह, सदस्य वीके श्रीवास्तव और संजय कुमार सिंह की तरफ से 36 पन्ने का आदेश जारी कर दिया गया.
उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यूनतम क्षेत्र में वितरण का लाइसेंस देने के लिए डाटा सेंटर को अपनी हरी झंडी पहले ही दे रखी थी, जिस पर विद्युत नियामक आयोग ने सुनवाई की थी. सुनवाई में उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कडा विरोध करते हुए कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार की सहमति से लाइसेंस दिया जा रहा है. यह वितरण लाइसेंस निजीकरण की दिशा में पहला प्रयोग है. इससे उत्तर प्रदेश का कोई भी भला होने वाला नहीं है.
नेटवर्थ कम होने के बावजूद मिला लाइसेंस: उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने गंभीर मुद्दा उठाया था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जो डाटा सेंटर नीति 2021 बनाई है उसमें कई कमियां हैं. इससे उत्तर प्रदेश का विकास नहीं होने वाला, क्योंकि एनआईडीपी कंपनी ने अपना रजिस्ट्रेशन महाराष्ट्र में कराया है और इससे प्राप्त होने वाली जीएसटी महाराष्ट्र में जाएगी. इस प्रोजेक्ट के लिए वितरण लाइसेंस की कोई आवश्यकता नहीं थी. इसे अगर सरकार को सुविधा ही देना था तो सस्ती बिजली दे देती, लेकिन एक डाटा सेंटर पार्क के लिए वितरण का लाइसेंस दिया जाना निजीकरण को बढावा देने वाला कदम है.
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा एनआईडीपी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड जिसने यह वितरण लाइसेंस मांगा है. उसकी नेटवर्थ केवल चार करोड़ 40 लाख है उसकी सहयोगी प्रमोटर कंपनी निरंजन हीरानंदानी जिसकी कुल नेटवर्थ 4,953 करोड़ है. उसके आधार पर एनआईडीपी जो अपनी कुल आवयश्यक नेट वर्थ 28.09 करोड़ के आधार पर वितरण लाइसेंस मांग रही है. जबकि ट्रांसमिशन के वित्तीय पैरामीटर का आंकलन किया जाए, तो इस क्षेत्र के लिए लगभग 150 करोड़ की नेट वर्थ का 30 प्रतिशत यानी लगभग 45 करोड़ रुपये चाहिए.
जिस कंपनी की हुई सीबीआई जांच, उसे दिया लाइसेंस: उपभोक्ता परिषद का मानना है कि इनकी प्रमोटर कंपनी निरंजन हीरानंदानी मुंबई के खिलाफ किसी मामले में सीबीआई की जांच चल चुकी है इसलिए इनका पूरा ब्योरा मंगाय जाना चाहिए. यह याचिक किसी भी रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं है, इसे खारिज किया जाना चाहिए. इसके बावजूद आयोग ने 25 साल का वितरण लाइसेंस दे दिया है.
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