लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को जन सरोकार क्षेत्र में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित कर चुनावी वक्त में राम मंदिर आंदोलन में उनके योगदान को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सलाम किया है. कल्याण सिंह को पद्म विभूषण सम्मान उत्तर प्रदेश के किसी बड़े नेता को लंबे समय बाद दिया गया पद्म सम्मान है.
पिछले सात साल में उत्तर प्रदेश के किसी भी बड़े नेता को पद्म सम्मान नहीं मिला है. यह बात दीगर है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जिनका अधिकांश जीवन उत्तर प्रदेश में ही रहा पूर्व को भारत रत्न से जरूर सम्मानित किया जा चुका है. माना जा रहा है कि कल्याण सिंह को पद्म सम्मान देकर भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी वक्त में एक बार फिर फायर ब्रांड हिंदू नेता को सम्मानित करके ध्रुवीकरण का कार्ड खेल दिया है.
राम मंदिर आंदोलन में सबसे बड़े नेता रहे हैं कल्याण सिंह
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह राम मंदिर आंदोलन में भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता रहे. 1992 में जब विवादित ढांचा ढहा दिया गया था. तब कल्याण सिंह ने इस मुद्दे पर पश्चाताप करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि उनको इस मुद्दे पर न तो कोई दुख है न कोई पश्चाताप. उन्हें इस प्रकरण में सीबीआई कोर्ट से डेढ़ साल पहले दोषमुक्त भी करार दिया गया था.
स्वाभिमानी नेता रहे हैं कल्याण सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कभी स्वाभिमान से समझौता नहीं किया. गलत बात का उन्होंने हमेशा विरोध किया था. उनकी नहीं चली तो वे खुद ही अलग हो गए.
दो बार छोड़ी भाजपा
नाराजगी के चलते कल्याण सिंह ने दो बार भाजपा छोड़ दी थी. 1999 में राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई. इसी से 2002 में अतरौली में चुनाव लड़े और जीते. इसके बाद भाजपा में शामिल हो गए. 2007 में अतरौली से पुत्रवधू प्रेमलता वर्मा को चुनाव लड़ाया. इसमें वह विजयी हुईं. 2009 में भाजपा से फिर अलग होकर 2010 में उन्होंने दोबारा राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया. इससे 2012 के विधानसभा चुनाव में जिले की छह सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए थे. हालांकि, जीत किसी पर भी नहीं मिली थी, मगर भाजपा अलीगढ़ की सातों सीटें हार गई थी. कल्याण सिंह के वर्चस्व का अहसास भाजपा को भी हो गया था.
कल्याण सिंह ने आठ चुनव जीते
आजादी के बाद से अलीगढ़ की सियासत में कई उतार चढ़ाव हुए. 1952 से 2002 के चुनाव में कांग्रेस, भारती क्रांति दल, जनता पार्टी, लोक दल, जनता दल, भारती जन संघ का बोलबाला रहा लेकिन कल्याण सिंह के चुनावी रथ को कोई दल रोक नहीं पाया. 1969 से 2002 तक कल्याण सिंह ने आठ चुनाव जीते. 1985 के चुनाव में जरूर कल्याण को हार का सामना करना पड़ा. इस जीत के पीछे उनकी खुद की छवि और राजनीति में मजबूत पकड़ को माना जाता है. 2007 के चुनाव में कल्याण की पुत्रवधू प्रेमलता देवी और 2017 के चुनाव में नाती संदीप सिंह की शानदार जीत इसी का हिस्सा है. उनके पुत्र राजवीर सिंह राजू भैया इस वक्त सांसद हैं और भाजपा के स्टार प्रचारकों में शामिल हैं.
भाजपा के प्रदेश संगठन और सीधे प्रधानमंत्री अटल से हुआ था मतभेद
जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उनका मतभेद सीधे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से हुआ था. जिसके पीछे वजह उत्तर प्रदेश में भाजपा संगठन के कुछ पदाधिकारी थे, जिससे उनका सीधा टकराव हो गया था. इसमें प्रमुख नाम तत्कालीन नगर विकास मंत्री लालजी टंडन का था. इस वजह से उन्होंने खुद को भारतीय जनता पार्टी से अलग कर लिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर कल्याण सिंह को सम्मान दिया. उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया था. उनके परिवार को भी बहुत सम्मान दिया गया. इसका असर अलीगढ़ और उसके आसपास की सीटों पर जबरदस्त तरीके से देखा गया. मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद विधानसभा और लोकसभा दोनों ही बार जीत मिली.
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भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने इस बारे में कहा कि कल्याण सिंह जब इस प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उनकी प्रशासनिक क्षमता का आकलन किया गया था. प्रदेश में कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए एसटीएफ का गठन हो या नकल विरोधी अध्यादेश वे बेहतरीन प्रशासक थे. उन्होंने गरीबों और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए बेहतरीन काम किए. केंद्र सरकार ने उनको पद्म सम्मान देकर बेहतरीन निर्णय लिया है.
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