लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर राजनीतिक पार्टियां एक-एक सीट पर चुनावी समीकरण बैठाने में जुट गई हैं. जिसके चलते प्रदेश की एक-एक सीट का महत्व बढ़ गया है. आज हम बात करेंगे राजधानी लखनऊ की सरोजिनी नगर विधानसभा सीट के बारे में, जिसे लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ा घमासान मचा था. यहां से भारतीय जनता पार्टी की स्वाती सिंह ने जीत दर्ज की थी. जिसका तोहफा उन्हें योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में मिला.
जातिगत समीकरण
इस विधानसभा क्षेत्र में दलित और ओबीसी काफी संख्या है लेकिन, इस सीट के अतीत में झांके तो आप पाएंगे कि यहां के मतदाताओं ने अब तक ब्राह्मण चेहरों पर ज्यादा भरोसा जताया है. 1967 से अब तक इस क्षेत्र के मतदाताओं ने करीब 14 विधानसभा चुनाव देखे हैं. जिसमें 7 बार ब्राह्मण चेहरे को चुनकर विधान भवन तक पहुंचाया. गौर करने वाली बात यह भी है कि ब्राह्मणों में भी यह सीट सिर्फ 2 परिवार शारदा प्रताप शुक्ला और विजय कुमार त्रिपाठी के बीच ही रही है. विजय कुमार त्रिपाठी कांग्रेस के टिकट से करीब 4 बार विधानसभा तक पहुंचे. वहीं, शारदा प्रताप शुक्ला ने कभी समाजवादी पार्टी, कभी जनता दल तो कभी निर्दलीय ही चुनाव लड़ा लेकिन जीत दर्ज की.
सरोजिनी नगर विधानसभा सीट पर राजनीतिक समीकरण साधना हर किसी के बस की बात नहीं है. एक और जहां ग्रामीण के साथ शहरी मतदाता हैं. वहीं, जातीय समीकरण भी हावी है. दलित और ओबीसी की संख्या अच्छी है, लेकिन ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य वोट भी कम नहीं है. शायद यही कारण है कि 1990 के दशक में राम लहर के बाद लखनऊ की ज्यादा सीटों पर बीजेपी जीतने लगी, लेकिन सरोजिनी नगर सीट इनके पास कभी नहीं आई. करीब 27 साल तक समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच यह सीट बनी रही.
1967 चुनाव में विजय कुमार त्रिपाठी ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की.
1969 में कांग्रेस की टिकट से चंद्र भानु गुप्त चुनाव लड़े और जीत मिली.
1974 में कांग्रेस के टिकट पर विजय कुमार त्रिपाठी ने जीत हासिल की.
1977 में जनता दल के छेदा सिंह चौहान कांग्रेस से सीट खींचने में सफल हुए.
1980 में एक बार फिर कांग्रेस की सीट पर अपना कब्जा जमाने में सफल हुई. पार्टी के टिकट पर विजय कुमार त्रिपाठी यहां से विधायक बने.
1985 में चुनाव काफी दिलचस्प रहा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में शारदा प्रताप शुक्ला ने इस सीट से अपनी जीत दर्ज कराएं.
1991 में यह सीट खिसक फिर कांग्रेस के पास पहुंच गई. यहां से विजय कुमार त्रिपाठी ने एक बार फिर कमान अपने हाथ में ले ली.
1993 से 2012 तक यह सीट समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच झूलती रही.
1993 और 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर श्याम किशोर यादव यहां से विधायक बने.
2002 और 2007 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर मोहम्मद इरशाद खान ने दो बार जीत दर्ज कराई.
2012 में एक बार फिर यह सीट समाजवादी पार्टी के पास पहुंच गई. 1989 में जनता दल के टिकट पर जीत हासिल करने वाले शारदा प्रताप शुक्ला अब समाजवादी के टिकट पर विधान भवन तक पहुंचे.
2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की स्वाति सिंह ने यहां से जीत दर्ज की.
इसे भी पढे़ं- UP Election 2022: बलरामपुर की उतरौला विधानसभा का जानिए चुनावी समीकरण