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100 साल बेमिसाल: लविवि के पूर्व छात्रों ने ऐसे साझा की यादें

राजधानी का गौरव माने जाने वाला लखनऊ विश्वविद्यालय 25 नवंबर को अपने 100 साल में प्रवेश करने जा रहा है. इसके पूर्व छात्रों ने ईटीवी भारत के साथ अपनी यादें साझा कीं.

लखनऊ विश्वविद्यालय
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Published : Nov 24, 2020, 4:39 PM IST

लखनऊः राजधानी का गौरव माने जाने वाला लखनऊ विश्वविद्यालय 25 नवंबर को अपने 100 साल में प्रवेश करने जा रहा है. इसके बीते सालों के गवाह रहे पूर्व छात्रों ने ईटीवी भारत के साथ अपनी यादें साझा कीं. सुप्रसिद्ध इतिहासकार योगेश प्रवीण ने बताया कि मूलरूप से एक अंग्रेज गवर्नर की याद में कैनिंग कॉलेज के रूप में इसकी शुरुआत हुई. आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल भी यहां से फूंका गया. डॉ. शंकर दयाल शर्मा जैसे राजनीतिज्ञ और डॉ. बीरबल साहनी जैसे वैज्ञानिक भी यहीं से निकले हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय

लखनऊ यूनिवर्सिटी का है अलग अंदाज
इतिहासकार योगेश प्रवीण ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि देश में यूनिवर्सिटी तो बहुत हैं, लेकिन लखनऊ यूनिवर्सिटी का अपना अलग अंदाज और चरित्र है. यह दुनिया के लिए मिसाल है. यहां का ऐतिहासिक परिसर बादशाह बाग में स्थित है. समय के साथ-साथ इस कैंपस का निर्माण हुआ तो इमारतों को इस अंदाज में बनवाया गया, जो आर्किटेक्ट की गगनरेखा को कभी बिगाड़ती नहीं थीं. उन्होंने बताया कि यहां से विद्वान, ज्ञानी लोग निकले हैं. उन लोगों ने देश के साथ-साथ लविवि का नाम भी रोशन किया. विश्वविद्यालय ने आज तक इस चरित्र को बरकरार रखा है.

लखनऊ विश्वविद्यालय
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विश्वविद्यालय के 100 वर्ष तो मेरे 50 वर्ष हुए पूरे
वर्ष 1970 में उम्र करीब 20- 21 साल की थी. जुलाई माह में बीएससी में दाखिला लिया. उस समय एकेडमिक माहौल बहुत अच्छा हुआ करता था. विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के प्रति स्टूडेंट्स में डर था. यह कहना है एलयू के पूर्व छात्र रहे रिटायर्ड बैंक अधिकारी राजीव मोहन का. उन्होंने यादें ताजा करते हुए बताया कि एक प्रॉक्टर बीएन श्रीवास्तव की आसमानी कलर की अंपाला कार खुले मैदान में खड़ी रहती थी और वह स्टूडेंट्स के आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी. एक रोचक वाक्या बताया कि उस समय पुस्तकालय जाने पर हम लोगों की बहुत जांच होती थी. क्योंकि, किताबें गायब जरूर होती थीं. कितना भी अच्छा अनुशासन और इंतजाम हो, बच्चे किताबें गायब कर कर दिया करते थे. उन्होंने बताया कि लखनऊ विश्वविद्यालय अपने शताब्दी समारोह मना रहा है तो मैं अपने 50 वर्ष इस विद्यालय में पूरे होने पर हाफ सेंचुरी मना रहा हूं.

लखनऊः राजधानी का गौरव माने जाने वाला लखनऊ विश्वविद्यालय 25 नवंबर को अपने 100 साल में प्रवेश करने जा रहा है. इसके बीते सालों के गवाह रहे पूर्व छात्रों ने ईटीवी भारत के साथ अपनी यादें साझा कीं. सुप्रसिद्ध इतिहासकार योगेश प्रवीण ने बताया कि मूलरूप से एक अंग्रेज गवर्नर की याद में कैनिंग कॉलेज के रूप में इसकी शुरुआत हुई. आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल भी यहां से फूंका गया. डॉ. शंकर दयाल शर्मा जैसे राजनीतिज्ञ और डॉ. बीरबल साहनी जैसे वैज्ञानिक भी यहीं से निकले हैं.

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लखनऊ यूनिवर्सिटी का है अलग अंदाज
इतिहासकार योगेश प्रवीण ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि देश में यूनिवर्सिटी तो बहुत हैं, लेकिन लखनऊ यूनिवर्सिटी का अपना अलग अंदाज और चरित्र है. यह दुनिया के लिए मिसाल है. यहां का ऐतिहासिक परिसर बादशाह बाग में स्थित है. समय के साथ-साथ इस कैंपस का निर्माण हुआ तो इमारतों को इस अंदाज में बनवाया गया, जो आर्किटेक्ट की गगनरेखा को कभी बिगाड़ती नहीं थीं. उन्होंने बताया कि यहां से विद्वान, ज्ञानी लोग निकले हैं. उन लोगों ने देश के साथ-साथ लविवि का नाम भी रोशन किया. विश्वविद्यालय ने आज तक इस चरित्र को बरकरार रखा है.

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विश्वविद्यालय के 100 वर्ष तो मेरे 50 वर्ष हुए पूरे
वर्ष 1970 में उम्र करीब 20- 21 साल की थी. जुलाई माह में बीएससी में दाखिला लिया. उस समय एकेडमिक माहौल बहुत अच्छा हुआ करता था. विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के प्रति स्टूडेंट्स में डर था. यह कहना है एलयू के पूर्व छात्र रहे रिटायर्ड बैंक अधिकारी राजीव मोहन का. उन्होंने यादें ताजा करते हुए बताया कि एक प्रॉक्टर बीएन श्रीवास्तव की आसमानी कलर की अंपाला कार खुले मैदान में खड़ी रहती थी और वह स्टूडेंट्स के आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी. एक रोचक वाक्या बताया कि उस समय पुस्तकालय जाने पर हम लोगों की बहुत जांच होती थी. क्योंकि, किताबें गायब जरूर होती थीं. कितना भी अच्छा अनुशासन और इंतजाम हो, बच्चे किताबें गायब कर कर दिया करते थे. उन्होंने बताया कि लखनऊ विश्वविद्यालय अपने शताब्दी समारोह मना रहा है तो मैं अपने 50 वर्ष इस विद्यालय में पूरे होने पर हाफ सेंचुरी मना रहा हूं.
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