ETV Bharat / state

विपक्षी दलों की एकता क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने पेश कर पाएगी चुनौती

2024 चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं. बीते दिनों पटना में तमाम राज्यों से विभिन्न दलों के नेता भी जुटे. लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्षी दलों की एकता क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने चुनौती पेश कर पाएगी? पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

author img

By

Published : Jun 26, 2023, 6:37 PM IST

Updated : Jun 26, 2023, 7:29 PM IST

Etv Bharat
Etv Bharat

लखनऊ : इन दिनों देश में भाजपा विरोधी गठजोड़ जोर पकड़ रहा है. इसे लेकर पिछले दिनों पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में तमाम राज्यों से विभिन्न दलों के नेता जुटे. सभी नेताओं ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भाजपा को रोकने पर सहमति भी जताई. सीटों के लिहाज से सबसे बड़े उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बैठक में शामिल हुए, वहीं सपा गठबंधन के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी भी इस बैठक में शामिल नहीं हुए. बहुजन समाज पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर भी इस बैठक में नहीं पहुंचे. ऐसे में यह सवाल जायज है कि क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने यह गठबंधन कोई चुनौती पेश कर पाएगा!

लोकसभा चुनाव 2019 (फाइल फोटो)
लोकसभा चुनाव 2019 (फाइल फोटो)


कहते हैं देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, क्योंकि यहां देश के सबसे ज्यादा 80 सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचते हैं. पिछले एक दशक की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी बदलाव आए हैं. 2007 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई, तो 2012 के विधानसभा चुनावों में सपा ने 224 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और बसपा अस्सी सीटों पर सिमट गई. इस चुनाव में भाजपा को 47 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. दो साल बाद 2014 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो नरेंद्र मोदी की लहर के कारण प्रदेश में सारे समीकरण बदल गए. इस चुनाव में भाजपा को 73 सीटें मिलीं, जबकि सपा को पांच, कांग्रेस को दो और बसपा तो खाता ही नहीं खोल सकी.

पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में तमाम राज्यों से विभिन्न दलों के नेता जुटे (फाइल फोटो)
पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में तमाम राज्यों से विभिन्न दलों के नेता जुटे (फाइल फोटो)


2017 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा का जलवा कायम रहा. इस चुनाव में भाजपा को 312 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ, तो वहीं समाजवादी पार्टी 47 सीटों पर सिमट गई. बसपा 19 तो कांग्रेस सिर्फ सात सीटों तक ही सीमित रही. 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को परास्त करने के लिए चिर प्रतिद्वंदी सपा-बसपा ने गठजोड़ किया. उस समय कयास लगाए जाने लगे थे कि यह गठबंधन बहुत बड़ा उलटफेर करेगा और भाजपा को बड़ी पराजय का सामना करना होगा, हालांकि जब नतीजे सामने आए, तो सब कयास धरे के धरे रह गए. इस चुनाव में भी मोदी मैजिक बरकरार रहा और भाजपा गठबंधन को 64 सीटों पर जीत मिली, सपा-बसपा गठबंधन को 15 तो कांग्रेस को सिर्फ एक सीट हाथ लगी. पार्टी अपनी परंपरागत अमेठी सीट भी नहीं बता पाई और राहुल गांधी को यहां स्मृति ईरानी से पराजय का सामना करना पड़ा. चुनाव के कुछ दिन बाद ही सपा-बसपा का गठजोड़ टूट गया.

2014 लोकसभा चुनाव (फाइल फोटो)
2014 लोकसभा चुनाव (फाइल फोटो)



ताजा हालात में बसपा ने बिना किसी गठबंधन के लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है. सपा और रालोद के गठबंधन में निकाय चुनाव के बाद ही दरार दिखाई देने लगी थी और ऐसा नहीं लगता कि लोकसभा चुनावों तक इन दोनों दलों का गठबंधन चल पाएगा. कांग्रेस से यदि सपा का गठबंधन होता भी है, तो सपा को खास फायदा होने वाला नहीं है. हां, कांग्रेस यदि एक से अधिक सीटों पर लड़ी और उसे जीत मिली तो कांग्रेस का फायदा ही फायदा है. वैसे अब तक के चुनाव और समीकरण बताते हैं कि अन्य प्रदेशों में भले ही कोई और समीकरण काम कर रहे हों, लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोक पाना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा. यह भी कठिन है कि गठबंधन का कमजोर दल कम सीटों पर लड़ने के लिए राजी हो, वैसे भी कांग्रेस से गठजोड़ में सपा को यह डर भी सताता रहेगा कि कहीं उसका मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की राह न पकड़ ले. ऐसे में अभी की स्थितियों को देखकर लगता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने विपक्ष बहुत बड़ी चुनौती रखने की स्थिति में नहीं है. हां, चुनाव आते-आते समीकरण बदल जाएं तो यह और बात है.




राजनीतिक विश्लेषक डॉ दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं 'कई राज्यों के चुनावों में यह देखा गया है कि विधानसभा में लोगों की पसंद क्षेत्रीय दल होते हैं, लेकिन लोकसभा चुनावों में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वोट करते हैं. उत्तर प्रदेश में भी 2014 में यही हुआ था. उस समय प्रदेश में अखिलेश यादव की पूर्ण बहुमत की सरकार थी, लेकिन लोकसभा चुनावों में भाजपा की रिकॉर्ड जीत हुई थी. वैसे भी विपक्ष का गठबंधन आसान नहीं होगा. क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने हित हैं. वह बड़े दलों पर अपने हितों को कैसे कुर्बान कर देंगे? इसलिए अब यह देखने वाली बात होगी कि चुनाव आते-आते विपक्ष एक रह भी पाता है या नहीं.'

यह भी पढ़ें

Loksabha Election 2024 : उत्तर प्रदेश में 806 'साइबर योद्धाओं' को तैनात करेगी भाजपा, यह है खास तैयारी

विदेशी दौरे से लौटते ही PM मोदी ने की कैबिनेट बैठक, मणिपुर की स्थिति पर चर्चा की

लखनऊ : इन दिनों देश में भाजपा विरोधी गठजोड़ जोर पकड़ रहा है. इसे लेकर पिछले दिनों पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में तमाम राज्यों से विभिन्न दलों के नेता जुटे. सभी नेताओं ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भाजपा को रोकने पर सहमति भी जताई. सीटों के लिहाज से सबसे बड़े उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बैठक में शामिल हुए, वहीं सपा गठबंधन के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी भी इस बैठक में शामिल नहीं हुए. बहुजन समाज पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर भी इस बैठक में नहीं पहुंचे. ऐसे में यह सवाल जायज है कि क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने यह गठबंधन कोई चुनौती पेश कर पाएगा!

लोकसभा चुनाव 2019 (फाइल फोटो)
लोकसभा चुनाव 2019 (फाइल फोटो)


कहते हैं देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, क्योंकि यहां देश के सबसे ज्यादा 80 सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचते हैं. पिछले एक दशक की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी बदलाव आए हैं. 2007 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई, तो 2012 के विधानसभा चुनावों में सपा ने 224 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और बसपा अस्सी सीटों पर सिमट गई. इस चुनाव में भाजपा को 47 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. दो साल बाद 2014 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो नरेंद्र मोदी की लहर के कारण प्रदेश में सारे समीकरण बदल गए. इस चुनाव में भाजपा को 73 सीटें मिलीं, जबकि सपा को पांच, कांग्रेस को दो और बसपा तो खाता ही नहीं खोल सकी.

पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में तमाम राज्यों से विभिन्न दलों के नेता जुटे (फाइल फोटो)
पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में तमाम राज्यों से विभिन्न दलों के नेता जुटे (फाइल फोटो)


2017 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा का जलवा कायम रहा. इस चुनाव में भाजपा को 312 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ, तो वहीं समाजवादी पार्टी 47 सीटों पर सिमट गई. बसपा 19 तो कांग्रेस सिर्फ सात सीटों तक ही सीमित रही. 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को परास्त करने के लिए चिर प्रतिद्वंदी सपा-बसपा ने गठजोड़ किया. उस समय कयास लगाए जाने लगे थे कि यह गठबंधन बहुत बड़ा उलटफेर करेगा और भाजपा को बड़ी पराजय का सामना करना होगा, हालांकि जब नतीजे सामने आए, तो सब कयास धरे के धरे रह गए. इस चुनाव में भी मोदी मैजिक बरकरार रहा और भाजपा गठबंधन को 64 सीटों पर जीत मिली, सपा-बसपा गठबंधन को 15 तो कांग्रेस को सिर्फ एक सीट हाथ लगी. पार्टी अपनी परंपरागत अमेठी सीट भी नहीं बता पाई और राहुल गांधी को यहां स्मृति ईरानी से पराजय का सामना करना पड़ा. चुनाव के कुछ दिन बाद ही सपा-बसपा का गठजोड़ टूट गया.

2014 लोकसभा चुनाव (फाइल फोटो)
2014 लोकसभा चुनाव (फाइल फोटो)



ताजा हालात में बसपा ने बिना किसी गठबंधन के लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है. सपा और रालोद के गठबंधन में निकाय चुनाव के बाद ही दरार दिखाई देने लगी थी और ऐसा नहीं लगता कि लोकसभा चुनावों तक इन दोनों दलों का गठबंधन चल पाएगा. कांग्रेस से यदि सपा का गठबंधन होता भी है, तो सपा को खास फायदा होने वाला नहीं है. हां, कांग्रेस यदि एक से अधिक सीटों पर लड़ी और उसे जीत मिली तो कांग्रेस का फायदा ही फायदा है. वैसे अब तक के चुनाव और समीकरण बताते हैं कि अन्य प्रदेशों में भले ही कोई और समीकरण काम कर रहे हों, लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोक पाना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा. यह भी कठिन है कि गठबंधन का कमजोर दल कम सीटों पर लड़ने के लिए राजी हो, वैसे भी कांग्रेस से गठजोड़ में सपा को यह डर भी सताता रहेगा कि कहीं उसका मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की राह न पकड़ ले. ऐसे में अभी की स्थितियों को देखकर लगता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने विपक्ष बहुत बड़ी चुनौती रखने की स्थिति में नहीं है. हां, चुनाव आते-आते समीकरण बदल जाएं तो यह और बात है.




राजनीतिक विश्लेषक डॉ दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं 'कई राज्यों के चुनावों में यह देखा गया है कि विधानसभा में लोगों की पसंद क्षेत्रीय दल होते हैं, लेकिन लोकसभा चुनावों में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वोट करते हैं. उत्तर प्रदेश में भी 2014 में यही हुआ था. उस समय प्रदेश में अखिलेश यादव की पूर्ण बहुमत की सरकार थी, लेकिन लोकसभा चुनावों में भाजपा की रिकॉर्ड जीत हुई थी. वैसे भी विपक्ष का गठबंधन आसान नहीं होगा. क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने हित हैं. वह बड़े दलों पर अपने हितों को कैसे कुर्बान कर देंगे? इसलिए अब यह देखने वाली बात होगी कि चुनाव आते-आते विपक्ष एक रह भी पाता है या नहीं.'

यह भी पढ़ें

Loksabha Election 2024 : उत्तर प्रदेश में 806 'साइबर योद्धाओं' को तैनात करेगी भाजपा, यह है खास तैयारी

विदेशी दौरे से लौटते ही PM मोदी ने की कैबिनेट बैठक, मणिपुर की स्थिति पर चर्चा की

Last Updated : Jun 26, 2023, 7:29 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.