लखनऊ: लखनऊ की एपीफेनी चर्च का इतिहास करीब 145 साल पुराना है. चर्च ऑफ एपिफेनी लखनऊ, प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के प्रमुख चर्चों में से एक है. इसकी ऐतिहासिक वस्तुकला इसे और भी खास बनाती है. यह गोथिक स्टाइल की कला का शानदार नमूना है. वर्ष 1875 में बने इस चर्च की दीवारें इसकी इतिहास की कहानी बयां करती हैं. चर्च की नींव तत्कालीन अवध के गवर्नर की पत्नी इंग्लिश ने रखी थी. चर्च में पहली प्रार्थना सभा क्रिसमस के दिन हुई थी.
1894 में भारतीय पादरी ने संभाला चर्च
पहले पादरी के रूप में सीजी डेइयूबल ने प्रार्थना सभा आरंभ की थी. वर्ष 1894 में टिमॉथी नोह ने भारतीय पादरी के रूप में चर्च की जिम्मेदारी संभाली. इससे पहले रहे सभी पादरी ब्रिटिश मूल के थे. अभी तक चर्च में कुल 27 पादरी नियुक्त हो चुके हैं. 28 वें पादरी के रूप में ईवान फ्रैंक बक्श चर्च की सेवा कर रहे हैं.
वस्तुकला है सबसे जुदा
पादरी ईवान फ्रैंक बक्श बताते हैं कि यह अविश्वसनीय रूप से डिजाइन किया गया चर्च है. 1877 में बनकर तैयार हुआ. चर्च ऑफ द एपिफेनी की सामने की ऊंचाई पांच मंजिला टावर के साथ उल्लेखनीय है, जो मुख्य प्रवेश द्वार से ऊपर उठती दिखाई देती है.
यह टावर दो अलग-अलग ठोस बुर्जों से घिरा हुआ है, जबकि इसकी खड़ी लंबवतता चार अलग-अलग कोनों पर छोटे आकार के पतले टावरों द्वारा संतुलित होती दिखाई दे रही है. इस टावर की नियमित विशेषताएं आयताकार वेंटिलेटर और धनुषाकार खिड़कियां हैं.
वह बताते हैं कि पहले यहां तीन घंटे भी हुआ करते थे. एक ही आदमी उनको बजता था. उसमें से आवाज निकलती थी, come to the church. उन्होंने बताया कि रविवार के दिन यहां प्रार्थना होती है. खास बात यह है कि इस चर्च मे हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषा मे प्रार्थना होती है.
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