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खतरे में है इस ऐतिहासिक पुस्तकालय का अस्तित्व, सुभाष चंद्र बोस बनाते थे यहां आजादी की रणनीति

28 दिसंबर 1935 को जन सहयोग से स्वर्ण जयंती पुस्तकालय की स्थापना की गई थी. अगर समय रहते प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो न सिर्फ इस पुस्तकालय का वजूद मिट जाएगा, बल्कि इसके साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों और सुभाष चंद्र बोस की स्मृतियां भी दफन हो जाएंगी.

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Published : Sep 11, 2019, 5:39 PM IST

स्वर्ण जयंती केंद्रीय पुस्तकालय की प्रशासन ने की अनदेखी.

बेगूसराय: आजादी से पहले जिस पुस्तकालय में सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की योजना बनाते थे वह पुस्तकालय आज प्रशासनिक देख-रेख के अभाव का शिकार हो रहा है. यहां लगभग 4 हजार महत्वपूर्ण किताबें बर्बाद हो चुकी हैं. वहीं 5 हजार से ज्यादा किताबें सिर्फ इसलिए खराब हो रही हैं, क्योंकि उसे रखने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है.

स्वर्ण जयंती केंद्रीय पुस्तकालय की प्रशासन ने की अनदेखी.

ये है ऐतिहासिक पुस्तकालय
जिले की धरोहर कहा जाने वाला 'स्वर्ण जयंती केंद्रीय पुस्तकालय' प्रशासनिक उदासीनता का शिकार होकर आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. कभी यही पुस्तकालय पुस्तक प्रेमियों से भरा हुआ रहता था, लेकिन अब यह विरान रहता है. बताया जाता है कि 28 दिसंबर 1935 में जन सहयोग से स्वर्ण जयंती पुस्तकालय की स्थापना की गई थी. वहीं, यहां 3 फरवरी 1940 को सुभाष चंद्र बोस आए थे. उन्होंने उपस्थिति रजिस्टर में लिखा था, 'यहां आकर बहुत अच्छा लगा और जन सहयोग से बना यह पुस्तकालय अद्भुत है.' इतना ही नहीं सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर यहां अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की रणनीति भी बनाई थी, लेकिन ये स्वर्णिम इतिहास आज इस पुस्तकालय के साथ खत्म हो रहा है.

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सुभाष चंद्र बोस के लिखित नोट हैं पुस्तकालय में मौजूद.

जर्जर हालत में है पुस्तकालय
आज इस पुस्तकालय में न तो पूरी छत है और न ही कोई सुविधा. पुस्तकालय की हालत ऐसी है कि कई जगह से छत टूटकर जमीन पर गिरने लगी है. बारिश में छत से पानी रिसने के कारण पुस्तकालय की किताबें भीग जाया करती हैं. पुस्तकालय के अंदर का हिस्सा भले ही चकाचक कर दिया गया हो, लेकिन पुस्तकालय के बाहर एक भी बोर्ड नहीं लगा है. जिससे बाहर से आने वाले लोगों को यह पता भी नहीं चल पाता है कि यहां पुस्तकालय भी है.

साधन नहीं होने से खराब हो रही हैं किताबें
पुस्तकालय बेगूसराय की हृदय स्थली कहे जाने वाली सदर अस्पताल रोड पर है. इस पुस्तकालय के नाम पर 11 कट्ठा जमीन पंजीकृत है. पुस्तकालय के रख-रखाव के लिए इसकी जमीन पर कई स्टॉल भी बनाए गए, जिसके किराए से इसका मेंटेनेंस किया जाता था. प्रशासन की बेरुखी के कारण लगभग 4 हजार से ज्यादा किताबें खराब हो चुकी हैं. वहीं 5 हजार नई किताबें इसलिए बेकार हो रही हैं, क्योंकि उसे रखने की जगह पुस्तकालय में नहीं है.

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सड़ रही हैं किताबें.

प्रशासन नहीं देता ध्यान
पुस्तकालय के एककर्मी ने बताया कि यहां कुव्यवस्था के कारण कई हजार किताबें खराब हो चुकी हैं और नई आईं 5 हजार से ज्यादा किताबें बेकार हो रही हैं. वहीं, छत से पानी रिसने और छत टूटकर गिरने के कारण लोग यहां आने से कतराने लगे हैं. कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है. इस जर्जर पुस्तकालय में आने वाले स्थानीय पाठक ने बताया कि यहां पुस्तकें हैं, लेकिन विद्यार्थियों के लिए ऐसी पुस्तकें नहीं जिसे पढ़कर कोई प्रतियोगी परीक्षा दी जा सके. यहां न बिजली की ठीक व्यवस्था है और न ही पीने का पानी है. अगर समय रहते प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो न सिर्फ इस पुस्तकालय का वजूद मिट जाएगा, बल्कि इसके साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों और सुभाष चंद्र बोस के स्मृति चिह्न भी दफन हो जाएंगे.

बेगूसराय: आजादी से पहले जिस पुस्तकालय में सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की योजना बनाते थे वह पुस्तकालय आज प्रशासनिक देख-रेख के अभाव का शिकार हो रहा है. यहां लगभग 4 हजार महत्वपूर्ण किताबें बर्बाद हो चुकी हैं. वहीं 5 हजार से ज्यादा किताबें सिर्फ इसलिए खराब हो रही हैं, क्योंकि उसे रखने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है.

स्वर्ण जयंती केंद्रीय पुस्तकालय की प्रशासन ने की अनदेखी.

ये है ऐतिहासिक पुस्तकालय
जिले की धरोहर कहा जाने वाला 'स्वर्ण जयंती केंद्रीय पुस्तकालय' प्रशासनिक उदासीनता का शिकार होकर आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. कभी यही पुस्तकालय पुस्तक प्रेमियों से भरा हुआ रहता था, लेकिन अब यह विरान रहता है. बताया जाता है कि 28 दिसंबर 1935 में जन सहयोग से स्वर्ण जयंती पुस्तकालय की स्थापना की गई थी. वहीं, यहां 3 फरवरी 1940 को सुभाष चंद्र बोस आए थे. उन्होंने उपस्थिति रजिस्टर में लिखा था, 'यहां आकर बहुत अच्छा लगा और जन सहयोग से बना यह पुस्तकालय अद्भुत है.' इतना ही नहीं सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर यहां अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की रणनीति भी बनाई थी, लेकिन ये स्वर्णिम इतिहास आज इस पुस्तकालय के साथ खत्म हो रहा है.

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सुभाष चंद्र बोस के लिखित नोट हैं पुस्तकालय में मौजूद.

जर्जर हालत में है पुस्तकालय
आज इस पुस्तकालय में न तो पूरी छत है और न ही कोई सुविधा. पुस्तकालय की हालत ऐसी है कि कई जगह से छत टूटकर जमीन पर गिरने लगी है. बारिश में छत से पानी रिसने के कारण पुस्तकालय की किताबें भीग जाया करती हैं. पुस्तकालय के अंदर का हिस्सा भले ही चकाचक कर दिया गया हो, लेकिन पुस्तकालय के बाहर एक भी बोर्ड नहीं लगा है. जिससे बाहर से आने वाले लोगों को यह पता भी नहीं चल पाता है कि यहां पुस्तकालय भी है.

साधन नहीं होने से खराब हो रही हैं किताबें
पुस्तकालय बेगूसराय की हृदय स्थली कहे जाने वाली सदर अस्पताल रोड पर है. इस पुस्तकालय के नाम पर 11 कट्ठा जमीन पंजीकृत है. पुस्तकालय के रख-रखाव के लिए इसकी जमीन पर कई स्टॉल भी बनाए गए, जिसके किराए से इसका मेंटेनेंस किया जाता था. प्रशासन की बेरुखी के कारण लगभग 4 हजार से ज्यादा किताबें खराब हो चुकी हैं. वहीं 5 हजार नई किताबें इसलिए बेकार हो रही हैं, क्योंकि उसे रखने की जगह पुस्तकालय में नहीं है.

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सड़ रही हैं किताबें.

प्रशासन नहीं देता ध्यान
पुस्तकालय के एककर्मी ने बताया कि यहां कुव्यवस्था के कारण कई हजार किताबें खराब हो चुकी हैं और नई आईं 5 हजार से ज्यादा किताबें बेकार हो रही हैं. वहीं, छत से पानी रिसने और छत टूटकर गिरने के कारण लोग यहां आने से कतराने लगे हैं. कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है. इस जर्जर पुस्तकालय में आने वाले स्थानीय पाठक ने बताया कि यहां पुस्तकें हैं, लेकिन विद्यार्थियों के लिए ऐसी पुस्तकें नहीं जिसे पढ़कर कोई प्रतियोगी परीक्षा दी जा सके. यहां न बिजली की ठीक व्यवस्था है और न ही पीने का पानी है. अगर समय रहते प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो न सिर्फ इस पुस्तकालय का वजूद मिट जाएगा, बल्कि इसके साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों और सुभाष चंद्र बोस के स्मृति चिह्न भी दफन हो जाएंगे.

Intro:एंकर- आजादी से पूर्व जिस पुस्तकालय में सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई की योजना बनाते थे आज यह पुस्तकालय प्रशासनिक देख रेख के अभाव बेजार हो गया है। यहां चार हजार महत्वपूर्ण किताबें बर्बाद हो चुकी हैं ,वही पांच हजार से ज्यादा किताब सिर्फ इसलिए खराब हो रहे हैं क्योंकि उसे रखने का जगह नहीं है ।गिरते छत और टपकता पानी इस पुस्तकालय की पहचान बन गई है।


Body:vo- जिला का धरोहर कहा जाने वाला स्वर्ण जयंती केंद्रीय पुस्तकालय बेगूसराय प्रशासनिक उदासीनता का शिकार होकर आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। कभी यही पुस्तकालय पुस्तक प्रेमियों से अटा हुआ रहता था अब यहां वीरानी छाई रहती है। 28 दिसंबर 1935 में जन सहयोग से स्वर्ण जयंती पुस्तकालय की स्थापना की गई थी जिसके बाद 3 फरवरी 1940 को सुभाष चंद्र बोस स्वर्ण जयंती पुस्तकालय आए थे और उन्होंने उपस्थिति रजिस्टर में लिखा था" यहां आकर बहुत अच्छा लगा और जन सहयोग से बना पुस्तकालय अद्भुत है" इतना ही नहीं सुभाष चंद्र बोस ने यहां पर तत्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने की रणनीति भी बताई थी।

समस्याएं

कई जगह से छत टूटकर जमीन पर गिड़ने लगे हैं।बारिश में छत के रिश्ने के कारण पुस्तकालय की किताबें भीग जाती है। पुस्तकालय का आंतरिक हिस्सा भले ही चकाचक कर दिया गया हो परंतु पुस्तकालय के बाहर एक भी बोर्ड नहीं लगा ,जिससे बाहर से आने वाले लोगों को यह पता भी नहीं चल पाता है की यहां पुस्तकालय भी है। पुस्तकालय बेगूसराय की हृदय स्थली कहे जाने वाली सदर अस्पताल रोड में स्थित है।इस पुस्तकालय के नाम पर 11 कट्ठा जमीन पंजीकृत है ।पुस्तकालय के रखरखाव के लिए इसकी जमीन पर कई स्टॉल भी बनाए गए जिसके किराए से इसका मेंटेनेंस किया जाता था, जो बाद में लूट का खसोट का अड्डा बन गया। प्रशासनिक बेरुखी का आलम यह है की इस पुस्तकालय के छत कई जगह से टूटकर नीचे गिर चुके हैं और छतों से पानी टपकने के कारण लगभग चार हजार से ज्यादा किताब खराब हो चुके हैं ।वहीं 5,000 नई किताब इसलिए बेकार हो रही हैं क्योंकि उसे रखने का जगह पुस्तकालय में नहीं है। इस बाबत स्थानीय एक पाठक बताते हैं कि इस पुस्तकालय का इतिहास काफी स्वर्णिम है लेकिन रखरखाव और प्रशासनिक देखरेख के अभाव में आज यह बदहाल हो रहा है। प्रशासन अभी भी इस पर ध्यान दे दे तो इसके सुनहरे दिन फिर लौट आएंगे।
बाइट-जितेंद्र सिंह,सदस्य
vo-वहीं इस बाबत ईटीवी भारत की टीम ने पुस्तकालय कर्मी आंचल कुमारी और एक छात्रा से बातचीत की जिसमें उनका दर्द उभर कर सामने आया। पुस्तकालय कर्मी आंचल कुमारी ने बताया कि यहां कुव्यवस्था के कारण कई हजार किताब खराब हो चुकी है और नए आए हुए पांच हजार से ज्यादा किताब बेकार पड़े हुए हैं ।वही छत से पानी गिरने और छत के टूटकर गिरने के कारण लोग यहां आने से परहेज करने लगे हैं। कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है। वही नियमित रूप से यहां आने वाली छात्रा ने बताया की पुस्तकालय में अभी भी कई ऐसी पुस्तकें हैं जो महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक हैं। पुरानी किताबों को सहेजने के साथ साथ अगर प्रतियोगिता परीक्षा से जुड़ी कुछ किताबें इसमें उपलब्ध करवा दी जाए साथ ही पीने का पानी रौशनी आदि की ब्यवस्था हो जाय तो छात्र छात्राओं के लिए यह काफी मददगार साबित होगा।
वन टू वन विथ आँचल कुमारी,पुस्तकालय कर्मी
वन टू वन विथ अग्रिमा भारती, छात्रा


Conclusion:fvo- बहरहाल जो भी हो स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक के स्वर्णिम इतिहास के बावजूद भी यह पुस्तकालय प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार होने के कारण अब अपने अस्तित्व को खोने के कगार पर है। अगर समय रहते प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो ना सिर्फ इस पुस्तकालय का वजूद मिट जाएगा ,बल्कि इसके साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों और सुभाष चंद्र बोस के स्मृति शेष भी दफन हो जाएंगे।
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