बेगूसराय: आजादी से पहले जिस पुस्तकालय में सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की योजना बनाते थे वह पुस्तकालय आज प्रशासनिक देख-रेख के अभाव का शिकार हो रहा है. यहां लगभग 4 हजार महत्वपूर्ण किताबें बर्बाद हो चुकी हैं. वहीं 5 हजार से ज्यादा किताबें सिर्फ इसलिए खराब हो रही हैं, क्योंकि उसे रखने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है.
ये है ऐतिहासिक पुस्तकालय
जिले की धरोहर कहा जाने वाला 'स्वर्ण जयंती केंद्रीय पुस्तकालय' प्रशासनिक उदासीनता का शिकार होकर आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. कभी यही पुस्तकालय पुस्तक प्रेमियों से भरा हुआ रहता था, लेकिन अब यह विरान रहता है. बताया जाता है कि 28 दिसंबर 1935 में जन सहयोग से स्वर्ण जयंती पुस्तकालय की स्थापना की गई थी. वहीं, यहां 3 फरवरी 1940 को सुभाष चंद्र बोस आए थे. उन्होंने उपस्थिति रजिस्टर में लिखा था, 'यहां आकर बहुत अच्छा लगा और जन सहयोग से बना यह पुस्तकालय अद्भुत है.' इतना ही नहीं सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर यहां अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की रणनीति भी बनाई थी, लेकिन ये स्वर्णिम इतिहास आज इस पुस्तकालय के साथ खत्म हो रहा है.
जर्जर हालत में है पुस्तकालय
आज इस पुस्तकालय में न तो पूरी छत है और न ही कोई सुविधा. पुस्तकालय की हालत ऐसी है कि कई जगह से छत टूटकर जमीन पर गिरने लगी है. बारिश में छत से पानी रिसने के कारण पुस्तकालय की किताबें भीग जाया करती हैं. पुस्तकालय के अंदर का हिस्सा भले ही चकाचक कर दिया गया हो, लेकिन पुस्तकालय के बाहर एक भी बोर्ड नहीं लगा है. जिससे बाहर से आने वाले लोगों को यह पता भी नहीं चल पाता है कि यहां पुस्तकालय भी है.
साधन नहीं होने से खराब हो रही हैं किताबें
पुस्तकालय बेगूसराय की हृदय स्थली कहे जाने वाली सदर अस्पताल रोड पर है. इस पुस्तकालय के नाम पर 11 कट्ठा जमीन पंजीकृत है. पुस्तकालय के रख-रखाव के लिए इसकी जमीन पर कई स्टॉल भी बनाए गए, जिसके किराए से इसका मेंटेनेंस किया जाता था. प्रशासन की बेरुखी के कारण लगभग 4 हजार से ज्यादा किताबें खराब हो चुकी हैं. वहीं 5 हजार नई किताबें इसलिए बेकार हो रही हैं, क्योंकि उसे रखने की जगह पुस्तकालय में नहीं है.
प्रशासन नहीं देता ध्यान
पुस्तकालय के एककर्मी ने बताया कि यहां कुव्यवस्था के कारण कई हजार किताबें खराब हो चुकी हैं और नई आईं 5 हजार से ज्यादा किताबें बेकार हो रही हैं. वहीं, छत से पानी रिसने और छत टूटकर गिरने के कारण लोग यहां आने से कतराने लगे हैं. कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है. इस जर्जर पुस्तकालय में आने वाले स्थानीय पाठक ने बताया कि यहां पुस्तकें हैं, लेकिन विद्यार्थियों के लिए ऐसी पुस्तकें नहीं जिसे पढ़कर कोई प्रतियोगी परीक्षा दी जा सके. यहां न बिजली की ठीक व्यवस्था है और न ही पीने का पानी है. अगर समय रहते प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो न सिर्फ इस पुस्तकालय का वजूद मिट जाएगा, बल्कि इसके साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों और सुभाष चंद्र बोस के स्मृति चिह्न भी दफन हो जाएंगे.