लखनऊ: अयोध्या पर 9 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए ऐतिहासिक फैसले के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा. बोर्ड के कुछ सदस्यों और वकील ने इस प्रकार का इशारा भी दिया है. इसे देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है, इसका उसे पूरा अधिकार है.
हालांकि शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 की असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए उसे 5 एकड़ की जमीन का अधिकार दिया है, लेकिन यदि वह फैसले से असंतुष्ट है तो पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा सकती है.
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में केंद्र सरकार के पूर्व सॉलिसिटर जनरल व अयोध्या मामलों के इंचार्ज रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अशोक निगम का कहना है कि फैसले वाले दिन ही सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता ने फैसले से अपनी असहमति जता दी थी.
उस समय बोर्ड की ओर से कहा गया था कि मामले में तमाम निष्कर्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों के अनुरूप निकलने के बावजूद निर्णय में उसे विवादित स्थल का दावेदार नहीं माना गया. लिहाजा यह फैसला अंतर्विरोध पूर्ण प्रतीत होता है. निगम का कहना है कि बोर्ड की ओर से आए इस बयान से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि वह यदि पुनर्विचार याचिका दाखिल करते हैं तो इसका आधार क्या होगा.
हालांकि पुनर्विचार याचिकाएं उन जजों द्वारा जिन्होंने मूल फैसला लिखाया है, उनके द्वारा सुनी जाती हैं लेकिन तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई के सेवानिवृत्त हो जाने की स्थिति में पांच जजों की अयोध्या फैसले वाली पीठ में बाकी जज तो वही होंगे और पूर्व सीजेआई के स्थान पर किसी एक जज को रखा जाएगा.
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पुनर्विचार याचिकाएं आमतौर पर बेंच के सीनियर मोस्ट जज के चैम्बर में सुनी जाती हैं. लिहाजा वक्फ बोर्ड की पुनर्विचार याचिका भी चैम्बर में ही सुने जाने की सम्भावना है. हालांकि यह मामला काफी बड़ा है, इसलिए कोर्ट इसे ओपन कोर्ट में भी सुनने का आदेश दे सकती है.