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हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है ये हनुमान मंदिर, जानें इसका इतिहास - हनुमान जयंती विशेष

राजधानी लखनऊ के हनुमान मन्दिरों में सबसे प्राचीनतम अलीगंज का हनुमान मन्दिर माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां जो भी भक्त आता है, उसकी मनोकामनाएं हनुमान जी पूरी करते हैं. मन्दिर में रोजाना सैकड़ों भक्त हनुमान जी के दर्शन करने आते हैं. यह मन्दिर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. आइये जानते हैं पुजारी शिवाकांत मिश्रा से मंदिर का इतिहास...

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हिन्दू-मुस्लिम एकता का मिसाल अलीगंज का हनुमान मंदिर.
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Published : Nov 13, 2020, 3:07 PM IST

लखनऊ: राम के प्रति भक्त हनुमान के अथाह श्रद्धा भाव से सभी परिचित हैं. शायद हनुमान के बिना राम की कल्पना नहीं की जा सकती. हनुमान ने अपनी निस्वार्थ भक्ति और अनन्य प्रेम से भगवान श्रीराम के दिल में खास जगह बनाई. दुनिया उन्हें प्रभु राम का सबसे बड़ा भक्त मानती है. आज हनुमान जयंती पर हम एक अनोखे हनुमान मंदिर के विषय में बात करने जा रहे हैं, जिस पर हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम भाई भी श्रद्धा लुटाते हैं. राजधानी स्थित हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए मशहूर इस खास हनुमान मंदिर के इतिहास पर ईटीवी भारत ने मंदिर के पुजारी से बात की.

हिन्दू-मुस्लिम एकता का मिसाल अलीगंज का हनुमान मंदिर.

यह है मंदिर निर्माण का इतिहास
मंदिर के पुजारी शिवाकांत मिश्रा ने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि इस मंदिर की नींव त्रेता युग में रखी गई थी. मान्यता है कि जब अयोध्या से माता सीता को वनवास के लिए भेजा गया था, तब वह अपने देवर लक्ष्मण व हनुमान जी के साथ वाल्मीकि की कुटिया में जाने के लिए पैदल ही निकली थीं. रात्रि होने पर लक्ष्मण ने उन्हें महल में विश्राम करने की प्रार्थना की तो मां सीता ने कहीं भी जाने से मना कर दिया और लक्ष्मणपुरी के इस जंगल में रुकने की बात कही. साथ ही साथ हनुमान जी भी इसी जगह पर रुके थे, जिसके बाद यहां राम भक्त हनुमान के मंदिर की नींव पड़ी.

हिन्दू-मुस्लिम एकता की निशानी है हनुमान मंदिर
मंदिर के पुजारी ने बताया कि मुगल शासन के दौरान लखनऊ की सत्ता पर काबिज तत्कालीन नवाब मोहम्मद अली शाह की बेगम को कई साल तक कोई संतान नहीं हुई थी, जिसके बाद उनकी मां आलिया बेगम को लोगों ने सलाह दी कि वे हनुमान जी के मंदिर पर जाकर माथा टेकें. आलिया बेगम ने बजरंगबली की मन से पूजा की और माथा टेकने निरंतर आती रहीं, जिसके बाद बेगम को पुत्र की प्राप्ति हुई. मन्नत पूरी होने के बाद आलिया बेगम ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. साथ ही साथ हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल के तौर पर मंदिर पर चांद का प्रतीक चिह्न लगवाया, जिससे उनकी निशानी बनी रहे.

इसलिए मनाया जाता है उत्सव
कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान 18वीं शताब्दी में भयंकर महामारी ने लखनऊ सहित क्षेत्रीय लोगों को अपनी चपेट में ले लिया, जिसके बाद आलिया बेगम ने बजरंगबली से महामारी खत्म करने की मन्नत मांगी. महामारी खत्म होने के बाद प्रतिवर्ष आने वाले जेठ के मंगलवार को पूरे क्षेत्र में बजरंगबली के नाम से भंडारे का आयोजन करने की बात कही. तभी से यह दिन उत्सव के रूप में मनाया जाने लगे. अलीगंज स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में हजारों लाखों की संख्या में दूर-दूर से भक्त आते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में जो अपनी मुराद लेकर आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है. देशभर में भले ही हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल दी जाती हैं, लेकिन अलीगंज स्थित यह हनुमान मंदिर प्राचीन और पुरातन होने के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम एकता की बेमिसाल मिसाल है.

लखनऊ: राम के प्रति भक्त हनुमान के अथाह श्रद्धा भाव से सभी परिचित हैं. शायद हनुमान के बिना राम की कल्पना नहीं की जा सकती. हनुमान ने अपनी निस्वार्थ भक्ति और अनन्य प्रेम से भगवान श्रीराम के दिल में खास जगह बनाई. दुनिया उन्हें प्रभु राम का सबसे बड़ा भक्त मानती है. आज हनुमान जयंती पर हम एक अनोखे हनुमान मंदिर के विषय में बात करने जा रहे हैं, जिस पर हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम भाई भी श्रद्धा लुटाते हैं. राजधानी स्थित हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए मशहूर इस खास हनुमान मंदिर के इतिहास पर ईटीवी भारत ने मंदिर के पुजारी से बात की.

हिन्दू-मुस्लिम एकता का मिसाल अलीगंज का हनुमान मंदिर.

यह है मंदिर निर्माण का इतिहास
मंदिर के पुजारी शिवाकांत मिश्रा ने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि इस मंदिर की नींव त्रेता युग में रखी गई थी. मान्यता है कि जब अयोध्या से माता सीता को वनवास के लिए भेजा गया था, तब वह अपने देवर लक्ष्मण व हनुमान जी के साथ वाल्मीकि की कुटिया में जाने के लिए पैदल ही निकली थीं. रात्रि होने पर लक्ष्मण ने उन्हें महल में विश्राम करने की प्रार्थना की तो मां सीता ने कहीं भी जाने से मना कर दिया और लक्ष्मणपुरी के इस जंगल में रुकने की बात कही. साथ ही साथ हनुमान जी भी इसी जगह पर रुके थे, जिसके बाद यहां राम भक्त हनुमान के मंदिर की नींव पड़ी.

हिन्दू-मुस्लिम एकता की निशानी है हनुमान मंदिर
मंदिर के पुजारी ने बताया कि मुगल शासन के दौरान लखनऊ की सत्ता पर काबिज तत्कालीन नवाब मोहम्मद अली शाह की बेगम को कई साल तक कोई संतान नहीं हुई थी, जिसके बाद उनकी मां आलिया बेगम को लोगों ने सलाह दी कि वे हनुमान जी के मंदिर पर जाकर माथा टेकें. आलिया बेगम ने बजरंगबली की मन से पूजा की और माथा टेकने निरंतर आती रहीं, जिसके बाद बेगम को पुत्र की प्राप्ति हुई. मन्नत पूरी होने के बाद आलिया बेगम ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. साथ ही साथ हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल के तौर पर मंदिर पर चांद का प्रतीक चिह्न लगवाया, जिससे उनकी निशानी बनी रहे.

इसलिए मनाया जाता है उत्सव
कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान 18वीं शताब्दी में भयंकर महामारी ने लखनऊ सहित क्षेत्रीय लोगों को अपनी चपेट में ले लिया, जिसके बाद आलिया बेगम ने बजरंगबली से महामारी खत्म करने की मन्नत मांगी. महामारी खत्म होने के बाद प्रतिवर्ष आने वाले जेठ के मंगलवार को पूरे क्षेत्र में बजरंगबली के नाम से भंडारे का आयोजन करने की बात कही. तभी से यह दिन उत्सव के रूप में मनाया जाने लगे. अलीगंज स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में हजारों लाखों की संख्या में दूर-दूर से भक्त आते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में जो अपनी मुराद लेकर आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है. देशभर में भले ही हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल दी जाती हैं, लेकिन अलीगंज स्थित यह हनुमान मंदिर प्राचीन और पुरातन होने के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम एकता की बेमिसाल मिसाल है.

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