ETV Bharat / state

जब इस क्रांतिकारी ने गांधी जी से भरी सभा में कर दिया था तीखा सवाल - राकृष्ण खत्री

आजादी के मतवालों की कहानियां सुनते ही खून दोगुनी रफ्तार से दौड़ने लगता है. क्रांतिकारियों की कहानी के किस्से इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. आपको ऐसे क्रांतिकारी की कहानी बताएंगे, जिसने छोटी सी उम्र में देश की आजादी को ही अपनी जिंदगी का मिशन बना लिया था.

रामकृष्ण खत्री.
रामकृष्ण खत्री.
author img

By

Published : Sep 1, 2021, 6:10 AM IST

लखनऊः क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री का जन्म महाराष्ट्र प्रांत में बुल्डाणा जिले के चिखली ग्राम में हुआ था. पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा और माता का नाम कृष्णा बाई था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा चिखली और चंद्रपुर नगर में ग्रहण की. बचपन से ही खत्री के हृदय में देश प्रेम का अंकुर फूटने लगा था. बताया जाता है, उन दिनों देश भर में 'लाल-बाल-पाल' की धूम मची थी.

सन 1917 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अपने राष्ट्रव्यापी दौरे के बीच चिखली में पधारे थे. भला बालक राम कृष्ण यह अवसर कहां छोड़ने वाला थे. रामकृष्ण खत्री के बेटे उदय खत्री बताते हैं कि, अपने ऊपर निगरानी रख रहे परिजनों और स्कूल अध्यापकों की नजर बचाकर रामकृष्ण कुछ सहपाठियों के साथ लोकमान्य तिलक का भाषण सुनने जा पहुंचे. भाषण के बाद मौका पाकर रामकृष्ण लोकमान्य तिलक के पास पहुंचे और हाथ पकड़ कर बोले, मुझे भी अपने साथ ले चलिए. आप जैसा कहेंगे मैं वैसा करूंगा.

रामकृष्ण खत्री कहानी.

इस पर लोकमान्य तिलक ने उन्हें समझाते हुए कहा था, अभी तुम लोग बहुत छोटे हो, पढ़ लिख कर थोड़ा और बड़े हो जाओ तब मातृभूमि को आजाद कराने के लिए अपने आप को लगाना. इस बात को सुनकर रामकृष्ण खत्री रुआसे हो गए. इसी पर रामकृष्ण खत्री ने देश को आजाद कराने कि मन में ठान ली थी.

बेटे उदय खत्री बताते हैं कि, चिखली की पढ़ाई खत्म होते ही पिता रामकृष्ण अपने बड़े भाई मोहनलाल के पास महाराष्ट्र के ही चंद्रपुर चले आए और वहां हाईस्कूल में दाखिला ले लिया. 1920 के 1 अगस्त को लोकमान्य तिलक के निधन के बाद पूरे देश की निगाहें गांधी जी की ओर लग गई थीं. सितंबर 1920 में कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व महात्मा गांधी ने 14 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की. जिसमें वकीलों से वकालत छोड़ने का आह्वान, छात्र-छात्राओं से अंग्रेजी विद्यालयों की पढ़ाई छोड़ देने का आह्वान और प्रबुद्ध जनों से अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदत्त उपाधियों-पदवियों का परित्याग कर देने का आह्वान किया.

फाइल फोटो.
फाइल फोटो.

इस 14 सूत्री कार्यक्रमों के आह्वान पर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए महात्मा गांधी वर्धा (महाराष्ट्र) पहुंचे. सेठ जमुनालाल बजाज के प्रांगण में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया. इसी सभा में रामकृष्ण खत्री भी अपने कुछ छात्र मित्रों के साथ पहुंच गए. भाषण की समाप्ति के बाद जैसे ही गांधीजी ने समूह से कहा कि किसी को किसी प्रकार की शंका का समाधान करना हो तो मुझसे प्रश्न कर सकता है.

इसे भी पढ़ें- मूसा बाग: आखिरी जंग की दास्तां बयां करतीं हैं दरो-दीवारें

इस पर करीब 18 वर्ष के राम कृष्ण अपने स्थान से उठे और गांधी जी से एक तीखा प्रश्न कर बैठे. रामकृष्ण ने गांधी जी से कहा, आप अंग्रेज सरकार द्वारा स्थापित विद्यालयों से पढ़ाई छोड़ देने के लिए हम विद्यार्थियों से कह रहे हैं, लेकिन लोकमान्य तिलक, रविंद्र नाथ टैगोर और आप सभी नेताओं ने इन्हीं विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की है. इस पर गांधी जी ने बड़े शांत भाव से रामकृष्ण को उत्तर दिया. जिसके बाद रामकृष्ण खत्री वह उपस्थित छात्रों ने विद्यालय छोड़ देने की घोषणा कर दी.

फाइल फोटो.
फाइल फोटो.

उदय खत्री बताते हैं कि पिता रामकृष्ण खत्री ने अपने व्यक्तित्व से कांग्रेस में अपना स्थान बनाया. सन 1920 में ही कोलकाता और नागपुर के कांग्रेसी अधिवेशन में प्रतिनिधि के रुप में सम्मिलित हुए और उसी समय से सेवा दल के कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत रहे. वे बताते हैं कि अगस्त 1921 में राष्ट्र को समर्पित करने के लिए वह गृह त्यागी हो गए. इसी समय वह कनखल (हरिद्वार) जाकर नाग पंचमी के दिन उन्होंने उदासीन अखाड़े में दीक्षा प्राप्त की और साधु हो गए.

इसे भी पढ़ें- देशद्रोही बता कर निकाले गए थे स्कूल से, 14 साल की उम्र में अंग्रेजों को छकाया

फरवरी 1922 में महात्मा गांधी ने चौरी चौरा कांड के कारण असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया था. इस निर्णय से दुखी होकर रामकृष्ण अमृतसर से बनारस चले गए. वहां उन्होंने उदासीन संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया. उदय खत्री बताते हैं 1923 में बनारस में ही वह क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए. उसी के बाद रामकृष्ण एकमात्र ऐसे व्यक्ति से जिन्हें चंद्र शेखर आजाद ने 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' का सक्रिय सदस्य बना लिया. फिर सारा जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया.

फाइल फोटो.
फाइल फोटो.
कब क्या-क्या हुआ

9 मार्च 1925 को बिचपुरी गांव में हुए एक्शन और उसके डेढ़ 2 माह बाद प्रतापगढ़ के द्वारिकापुर कस्बे में किए गए एक्शन में सक्रिय रूप से भाग लिया.

6 अगस्त 1925 को क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारी साथियों द्वारा लखनऊ के निकट काकोरी ट्रेन डकैती कांड हुआ.

18 अक्टूबर 1925 को रामकृष्ण खत्री काकोरी क्रांतिकारी षड्यंत्र कांड के अंतर्गत पुणे से बंदी बनाकर लखनऊ लाए गए. काकोरी क्रांतिकारी षड्यंत्र केस के अंतर्गत लखनऊ में चले ऐतिहासिक मुकदमे में 19 क्रांतिकारियों को 4 वर्ष से लेकर फांसी तक का दंड मिला. रामकृष्ण खत्री को इस केस में 10 वर्ष कठोर कारावास की सजा मिली.

रामकृष्ण खत्री 10 वर्ष की सजा काटकर 1 अगस्त 1935 को लखनऊ सेंट्रल जेल से रिहा किए गए. जेल से छूट कर उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में 'ऑल इंडिया पॉलीटिकल प्रिजनर्स रिलीफ कमिटी' की स्थापना की. इस संस्था के महामंत्री के रूप में बंदी जीवन काट रहे, अपने शेष क्रांतिकारी साथियों की रिहाई का प्रयास करते रहे.

रामकृष्ण के प्रयास के चलते 1937 में कांग्रेस सरकार ने क्रांतिकारी बंदियों की रिहाई शुरू कर दी. वर्ष 1938 के मध्य तक सभी क्रांतिकारी रिहा भी कर दिए गए.

दिसंबर 1937 में दिल्ली प्रवेश पर लगे प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर 5 क्रांतिकारी साथियों के साथ बंदी बना लिए गए और 4 माह कैद की सजा काटी.

रामकृष्ण खत्री 1938 के मध्य में अचार्य नरेंद्र देव द्वारा गठित 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' की लखनऊ इकाई के महामंत्री चुने गए.

रामकृष्ण 1939 में क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में आयोजित ऐतिहासिक त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित हुए.

15 अगस्त 1939 को रामकृष्ण खत्री का कोलकाता में बंगाली 'दास अधिकारी' परिवार की कन्या के साथ विवाह हुआ.

सन 1940 में उत्तर प्रदेश में सुभाष चंद्र बोस के ऐतिहासिक दौरे का सफल आयोजन किया. इससे पहले 1939 में रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान ही प्रथम अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक अधिवेशन में भी सम्मिलित हुए.

1941 में सुभाष चंद्र बोस के देश छोड़ देने के बाद रामकृष्ण 1942 में कांग्रेस में सम्मिलित हो गए. 1966 के कांग्रेस विभाजन तक पार्टी में सक्रिय कार्य करते रहे.

सितंबर 1976 में लखनऊ में संपन्न अमर शहीद यतींद्र नाथ दास के 50वें बलिदान दिवस समारोह के वे सफल आयोजक रहे.

दिसंबर 1983 में लखनऊ के निकट ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती घटनास्थल पर भव्य स्मारक के निर्माण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा शिलान्यास समारोह में भी मुख्य रूप से रामकृष्ण खत्री मौजूद रहे.

मई 1990 में लखनऊ में देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले प्रमुख क्रांतिकारी के स्मृति दिवसों के निरंतर आयोजन के लिए शहीद स्मृति समारोह समिति नामक संस्था की स्थापना की.

देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले क्रांतिवीर रामकृष्ण खत्री का निधन 95 वर्ष की उम्र में 18 अक्टूबर 1999 को लखनऊ में हुआ.

लखनऊः क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री का जन्म महाराष्ट्र प्रांत में बुल्डाणा जिले के चिखली ग्राम में हुआ था. पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा और माता का नाम कृष्णा बाई था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा चिखली और चंद्रपुर नगर में ग्रहण की. बचपन से ही खत्री के हृदय में देश प्रेम का अंकुर फूटने लगा था. बताया जाता है, उन दिनों देश भर में 'लाल-बाल-पाल' की धूम मची थी.

सन 1917 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अपने राष्ट्रव्यापी दौरे के बीच चिखली में पधारे थे. भला बालक राम कृष्ण यह अवसर कहां छोड़ने वाला थे. रामकृष्ण खत्री के बेटे उदय खत्री बताते हैं कि, अपने ऊपर निगरानी रख रहे परिजनों और स्कूल अध्यापकों की नजर बचाकर रामकृष्ण कुछ सहपाठियों के साथ लोकमान्य तिलक का भाषण सुनने जा पहुंचे. भाषण के बाद मौका पाकर रामकृष्ण लोकमान्य तिलक के पास पहुंचे और हाथ पकड़ कर बोले, मुझे भी अपने साथ ले चलिए. आप जैसा कहेंगे मैं वैसा करूंगा.

रामकृष्ण खत्री कहानी.

इस पर लोकमान्य तिलक ने उन्हें समझाते हुए कहा था, अभी तुम लोग बहुत छोटे हो, पढ़ लिख कर थोड़ा और बड़े हो जाओ तब मातृभूमि को आजाद कराने के लिए अपने आप को लगाना. इस बात को सुनकर रामकृष्ण खत्री रुआसे हो गए. इसी पर रामकृष्ण खत्री ने देश को आजाद कराने कि मन में ठान ली थी.

बेटे उदय खत्री बताते हैं कि, चिखली की पढ़ाई खत्म होते ही पिता रामकृष्ण अपने बड़े भाई मोहनलाल के पास महाराष्ट्र के ही चंद्रपुर चले आए और वहां हाईस्कूल में दाखिला ले लिया. 1920 के 1 अगस्त को लोकमान्य तिलक के निधन के बाद पूरे देश की निगाहें गांधी जी की ओर लग गई थीं. सितंबर 1920 में कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व महात्मा गांधी ने 14 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की. जिसमें वकीलों से वकालत छोड़ने का आह्वान, छात्र-छात्राओं से अंग्रेजी विद्यालयों की पढ़ाई छोड़ देने का आह्वान और प्रबुद्ध जनों से अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदत्त उपाधियों-पदवियों का परित्याग कर देने का आह्वान किया.

फाइल फोटो.
फाइल फोटो.

इस 14 सूत्री कार्यक्रमों के आह्वान पर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए महात्मा गांधी वर्धा (महाराष्ट्र) पहुंचे. सेठ जमुनालाल बजाज के प्रांगण में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया. इसी सभा में रामकृष्ण खत्री भी अपने कुछ छात्र मित्रों के साथ पहुंच गए. भाषण की समाप्ति के बाद जैसे ही गांधीजी ने समूह से कहा कि किसी को किसी प्रकार की शंका का समाधान करना हो तो मुझसे प्रश्न कर सकता है.

इसे भी पढ़ें- मूसा बाग: आखिरी जंग की दास्तां बयां करतीं हैं दरो-दीवारें

इस पर करीब 18 वर्ष के राम कृष्ण अपने स्थान से उठे और गांधी जी से एक तीखा प्रश्न कर बैठे. रामकृष्ण ने गांधी जी से कहा, आप अंग्रेज सरकार द्वारा स्थापित विद्यालयों से पढ़ाई छोड़ देने के लिए हम विद्यार्थियों से कह रहे हैं, लेकिन लोकमान्य तिलक, रविंद्र नाथ टैगोर और आप सभी नेताओं ने इन्हीं विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की है. इस पर गांधी जी ने बड़े शांत भाव से रामकृष्ण को उत्तर दिया. जिसके बाद रामकृष्ण खत्री वह उपस्थित छात्रों ने विद्यालय छोड़ देने की घोषणा कर दी.

फाइल फोटो.
फाइल फोटो.

उदय खत्री बताते हैं कि पिता रामकृष्ण खत्री ने अपने व्यक्तित्व से कांग्रेस में अपना स्थान बनाया. सन 1920 में ही कोलकाता और नागपुर के कांग्रेसी अधिवेशन में प्रतिनिधि के रुप में सम्मिलित हुए और उसी समय से सेवा दल के कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत रहे. वे बताते हैं कि अगस्त 1921 में राष्ट्र को समर्पित करने के लिए वह गृह त्यागी हो गए. इसी समय वह कनखल (हरिद्वार) जाकर नाग पंचमी के दिन उन्होंने उदासीन अखाड़े में दीक्षा प्राप्त की और साधु हो गए.

इसे भी पढ़ें- देशद्रोही बता कर निकाले गए थे स्कूल से, 14 साल की उम्र में अंग्रेजों को छकाया

फरवरी 1922 में महात्मा गांधी ने चौरी चौरा कांड के कारण असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया था. इस निर्णय से दुखी होकर रामकृष्ण अमृतसर से बनारस चले गए. वहां उन्होंने उदासीन संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया. उदय खत्री बताते हैं 1923 में बनारस में ही वह क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए. उसी के बाद रामकृष्ण एकमात्र ऐसे व्यक्ति से जिन्हें चंद्र शेखर आजाद ने 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' का सक्रिय सदस्य बना लिया. फिर सारा जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया.

फाइल फोटो.
फाइल फोटो.
कब क्या-क्या हुआ

9 मार्च 1925 को बिचपुरी गांव में हुए एक्शन और उसके डेढ़ 2 माह बाद प्रतापगढ़ के द्वारिकापुर कस्बे में किए गए एक्शन में सक्रिय रूप से भाग लिया.

6 अगस्त 1925 को क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारी साथियों द्वारा लखनऊ के निकट काकोरी ट्रेन डकैती कांड हुआ.

18 अक्टूबर 1925 को रामकृष्ण खत्री काकोरी क्रांतिकारी षड्यंत्र कांड के अंतर्गत पुणे से बंदी बनाकर लखनऊ लाए गए. काकोरी क्रांतिकारी षड्यंत्र केस के अंतर्गत लखनऊ में चले ऐतिहासिक मुकदमे में 19 क्रांतिकारियों को 4 वर्ष से लेकर फांसी तक का दंड मिला. रामकृष्ण खत्री को इस केस में 10 वर्ष कठोर कारावास की सजा मिली.

रामकृष्ण खत्री 10 वर्ष की सजा काटकर 1 अगस्त 1935 को लखनऊ सेंट्रल जेल से रिहा किए गए. जेल से छूट कर उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में 'ऑल इंडिया पॉलीटिकल प्रिजनर्स रिलीफ कमिटी' की स्थापना की. इस संस्था के महामंत्री के रूप में बंदी जीवन काट रहे, अपने शेष क्रांतिकारी साथियों की रिहाई का प्रयास करते रहे.

रामकृष्ण के प्रयास के चलते 1937 में कांग्रेस सरकार ने क्रांतिकारी बंदियों की रिहाई शुरू कर दी. वर्ष 1938 के मध्य तक सभी क्रांतिकारी रिहा भी कर दिए गए.

दिसंबर 1937 में दिल्ली प्रवेश पर लगे प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर 5 क्रांतिकारी साथियों के साथ बंदी बना लिए गए और 4 माह कैद की सजा काटी.

रामकृष्ण खत्री 1938 के मध्य में अचार्य नरेंद्र देव द्वारा गठित 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' की लखनऊ इकाई के महामंत्री चुने गए.

रामकृष्ण 1939 में क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में आयोजित ऐतिहासिक त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित हुए.

15 अगस्त 1939 को रामकृष्ण खत्री का कोलकाता में बंगाली 'दास अधिकारी' परिवार की कन्या के साथ विवाह हुआ.

सन 1940 में उत्तर प्रदेश में सुभाष चंद्र बोस के ऐतिहासिक दौरे का सफल आयोजन किया. इससे पहले 1939 में रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान ही प्रथम अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक अधिवेशन में भी सम्मिलित हुए.

1941 में सुभाष चंद्र बोस के देश छोड़ देने के बाद रामकृष्ण 1942 में कांग्रेस में सम्मिलित हो गए. 1966 के कांग्रेस विभाजन तक पार्टी में सक्रिय कार्य करते रहे.

सितंबर 1976 में लखनऊ में संपन्न अमर शहीद यतींद्र नाथ दास के 50वें बलिदान दिवस समारोह के वे सफल आयोजक रहे.

दिसंबर 1983 में लखनऊ के निकट ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती घटनास्थल पर भव्य स्मारक के निर्माण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा शिलान्यास समारोह में भी मुख्य रूप से रामकृष्ण खत्री मौजूद रहे.

मई 1990 में लखनऊ में देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले प्रमुख क्रांतिकारी के स्मृति दिवसों के निरंतर आयोजन के लिए शहीद स्मृति समारोह समिति नामक संस्था की स्थापना की.

देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले क्रांतिवीर रामकृष्ण खत्री का निधन 95 वर्ष की उम्र में 18 अक्टूबर 1999 को लखनऊ में हुआ.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.