लखनऊ: बलिया जिले के एक किसान परिवार में एक जुलाई 1927 को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्म हुआ. साल 1990 में कांग्रेस से समर्थन मिलने पर उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका भी मिला. हालांकि वह केवल सात महीने तक ही प्रधानमंत्री रहे. सात महीने बाद ही राजीव गांधी ने समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद वह प्रधानमंत्री नहीं रहे. चंद्रशेखर प्रखर वक्ता, लोकप्रिय राजनेता, विद्वान लेखक और बेबाक समीक्षक थे. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 8 जुलाई 2007 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में आखिरी सांस ली.
इब्राहिम पट्टी, यूपी के बलिया जिले का वो गांव जहां 1 जुलाई 1927 को एक किसान परिवार में चंद्रशेखर का जन्म हुआ. पढ़ाई के लिए इलाहाबाद पहुंचे चंद्रशेखर समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए. कुछ ही दिनों में वो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सचिव चुने गए और यहीं से चंद्रशेखर का सक्रिय राजनीति में उदय होता है.
1962 में वो उत्तरप्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए.फिर 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव रहे. 1984 से 1989 के बीच के कालखंड को छोड़ दें तो 1962 से चंद्रशेखर लगातार सांसद रहे. 1971में गरीबी हटाओ नारे के साथ कांग्रेस सत्ता में आई. मगर साल 1975 आते आते देश बदलाव की बयार से रुबरु हो रहा था. देश में राजनीतिक उथल पुथल के दौर जारी था. कांग्रेस पार्टी में रहते हुए भी ये उसकी नीतियों के प्रबल आलोचक बन गए. 25 जून को 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी. जिसके बाद देश में एक राजनीतिक भूचाल सा आ गया. विपछ के बड़े चेहरों के साथ चन्द्रशेखर को भी सलाखों के पीछे डाल दिया गया. जेल में उन्होंने लगभग 19 महीने गुजारे.
इन्होंने सतही राजनीति को दरकिनार कर लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक बदलाव की राजनीति पर जोर दिया.ये समाज के हर वर्ग से जुड़े, साथ ही शोषित, वंचितों की आवाज भी बने. सामाज को बदलने की नई नीतियों को चुना. इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी का उदय हुआ और चन्द्रशेखर पार्टी के अध्यक्ष बने. जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो इन्होंने मंत्री पद लेने से इनकार कर दिया.
उन्होंने 06 जनवरी से 25 जून 1983 के बीच कन्याकुमारी से दिल्ली स्थित राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि राजघाट तक 4260 किमी की पैदल यात्रा की.इस पदयात्रा से उन्होंने देश के कई राज्यों का भ्रमण किया. इस पैदाल यात्रा का मुख्य उद्देश्य वहां की सामाजिक, राजनीतिक समस्याओं को पहचान कर उन्हें सामने लाना था. साल 1990 में कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया और उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला. हालांकि सात महीने में ही राजीव गांधी ने सपोर्ट वापस ले लिया. भारतीय राजनीति को नए आयाम देने वाले युवा तुर्क और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 8 जुलाई 2007 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में आखिरी सांस ली. आज वो हमारे बीच भले न हों मगर उनकी देश के प्रति ईमानदारी, निर्णय लेने के साहस के साथ ही निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई के लिए हमेशा याद किया जाएगा.