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देशद्रोही बता कर निकाले गए थे स्कूल से, 14 साल की उम्र में अंग्रेजों को छकाया

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Published : Aug 21, 2021, 6:08 AM IST

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई (Freedom Fighter Virendra Prasad Bajpai) ने 14 साल की उम्र में अंग्रेजों को खूब छकाया. देश की आजादी के लिए इलाहाबाद (Allahabad) में कलेक्ट्रेट का झंडा उखाड़ फेंका था. घरवालों ने साथ नहीं दिया था और स्कूल से देशद्रोही बताकर निकाल दिया गए थे.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई

लखनऊः वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई का जन्म 21 मार्च 1928 को कोलकाता में हुआ था. वह रायबरेली जिले के तहसील लालगंज स्थित ग्राम बाजपेयीपुर में रहते थे. माता का नाम जगरानी और पिता का नाम जगन्नाथ प्रसाद बाजपेई था. 14 साल की उम्र में ही एक रिश्तेदार से प्रेरित होकर घर से देश को आजाद कराने के लिए निकल पड़े थे. छोटी उम्र में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ गए थे. बात 1942 की है जब माता प्रसाद गुप्तार सिंह महावीर पांडे, रामाशंकर त्रिपाठी और रफी अहमद किदवई के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया. परिणाम स्वरूप इलाहाबाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 12A के अंतर्गत एक केस में वांछित रहे.

जापान कर रहा था बमबारी

वीरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि हमारे पूर्वज कलकत्ते में रहते थे. कपड़े का कारोबार करते थे. जापान से महा युद्ध छेड़ा हुआ था. जापान ने कोलकाता में बमबारी की हुई थी. इसी दौरान हम अपने गांव रायबरेली चले आए. वीरेंद्र बताते हैं कि हमारे परिवार के अन्य लोग और फूफाजी ऑल इंडिया वर्किंग कांग्रेस कमेटी के मेंबर थे. हम लोगों के कोलकाता से आने के बाद मैं फूफाजी के साथ देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गया. वह बताते हैं कि उस समय इलाहाबाद में सारी कार्रवाई शुरू हुई थी.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई.

टोली को मिला था झंडा उतारने का काम

वह बताते हैं कि हम लोगों को डायरेक्ट करके रायबरेली से इलाहाबाद भेजा गया था. बाद में ग्रुप वाइज काम सौंपा जाता था. हमारी टोली को आदेश था कि कलेक्ट्रेट का झंडा उतार कर उसको जलाना है. हम लोग कलेक्ट्रेट की तरफ बढ़े लेकिन, एक पार्क के सामने मीटिंग हो रही थी. जहां सब को घेर लिया गया था, जो चालाकी से निकल सकते थे वह भाग गए और कुछ लोग गिरफ्तार कर लिए गए. हमारी टोली ने कलेक्ट्रेट का झंडा तो उतार लिया लेकिन, जला नहीं पाए. उन्होंने बताया कि, उनकी पढ़ाई कोलकाता में ही हुई है. बाद में उन्हें रस्टीकेट भी कर दिया गया था. उन्हें देशद्रोही बता कर स्कूल से निकाल दिया गया था.

इसे भी पढ़ें- आजादी का अमृत महोत्सवः उखाड़ फेंकी थीं रेल की पटरियां, की थी अंग्रेजी सुपरिटेंडेंट की जूतों से पिटाई

वीरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि, रफी अहमद किदवई, चंद्र भानु गुप्त और लाल बहादुर शास्त्री के साथ संगठन में जाते थे. जो काम हम लोग को सौंपा जाता था. उसको करने के लिए आगे बढ़ते थे. ज्यादातर गवर्नमेंट की बिल्डिंग तोड़ने के आदेश आते थे, आदेश में कहा जाता था कि जितना नुकसान हो सके उतना नुकसान पहुंचाओ. उनका कहना है कि घर से किसी का सपोर्ट नहीं मिलता था. फूफाजी के ही सहारे सब चलता था.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई

मुंबई से आता था डायरेक्शन

वह बताते हैं कि फूफाजी मुंबई मीटिंग करने चले जाते थे. जिसके बाद वहां से डायरेक्शन आया करते थे. उसी हिसाब से काम होता था. उन्होंने बताया कि 1955 में तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम, गुलजारी लाल नंदा के सानिध्य में रेल मंत्रालय भारत सरकार के सुरक्षा विभाग में अधिकारी के तौर पर काम किया. वह बताते हैं कि अपने सेनानी साथियों के इतिहास को सुरक्षित व सुख सुविधा सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कल्याण परिषद उत्तर प्रदेश शासन में निदेशक/सचिव पद पर भी काम किया. रेलवे सुरक्षा बल में अधिकारी के रूप में काम करते हुए सन 1971 में उन्हें बालमेल राजस्थान भेजा गया था, जिसके बाद कुशल नेतृत्व पाए जाने पर अफसर कमांडिंग में कमेंडेशन प्रमाण पत्र जारी किया था. वे बताते हैं कि 1986 में वह रिटायर हो गए. उसके बाद सामाजिक कार्य करते रहे. सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिली. अब उन्हें करीब 20,000 रुपये तक पेंशन मिलती है.

लखनऊः वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई का जन्म 21 मार्च 1928 को कोलकाता में हुआ था. वह रायबरेली जिले के तहसील लालगंज स्थित ग्राम बाजपेयीपुर में रहते थे. माता का नाम जगरानी और पिता का नाम जगन्नाथ प्रसाद बाजपेई था. 14 साल की उम्र में ही एक रिश्तेदार से प्रेरित होकर घर से देश को आजाद कराने के लिए निकल पड़े थे. छोटी उम्र में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ गए थे. बात 1942 की है जब माता प्रसाद गुप्तार सिंह महावीर पांडे, रामाशंकर त्रिपाठी और रफी अहमद किदवई के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया. परिणाम स्वरूप इलाहाबाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 12A के अंतर्गत एक केस में वांछित रहे.

जापान कर रहा था बमबारी

वीरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि हमारे पूर्वज कलकत्ते में रहते थे. कपड़े का कारोबार करते थे. जापान से महा युद्ध छेड़ा हुआ था. जापान ने कोलकाता में बमबारी की हुई थी. इसी दौरान हम अपने गांव रायबरेली चले आए. वीरेंद्र बताते हैं कि हमारे परिवार के अन्य लोग और फूफाजी ऑल इंडिया वर्किंग कांग्रेस कमेटी के मेंबर थे. हम लोगों के कोलकाता से आने के बाद मैं फूफाजी के साथ देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गया. वह बताते हैं कि उस समय इलाहाबाद में सारी कार्रवाई शुरू हुई थी.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई.

टोली को मिला था झंडा उतारने का काम

वह बताते हैं कि हम लोगों को डायरेक्ट करके रायबरेली से इलाहाबाद भेजा गया था. बाद में ग्रुप वाइज काम सौंपा जाता था. हमारी टोली को आदेश था कि कलेक्ट्रेट का झंडा उतार कर उसको जलाना है. हम लोग कलेक्ट्रेट की तरफ बढ़े लेकिन, एक पार्क के सामने मीटिंग हो रही थी. जहां सब को घेर लिया गया था, जो चालाकी से निकल सकते थे वह भाग गए और कुछ लोग गिरफ्तार कर लिए गए. हमारी टोली ने कलेक्ट्रेट का झंडा तो उतार लिया लेकिन, जला नहीं पाए. उन्होंने बताया कि, उनकी पढ़ाई कोलकाता में ही हुई है. बाद में उन्हें रस्टीकेट भी कर दिया गया था. उन्हें देशद्रोही बता कर स्कूल से निकाल दिया गया था.

इसे भी पढ़ें- आजादी का अमृत महोत्सवः उखाड़ फेंकी थीं रेल की पटरियां, की थी अंग्रेजी सुपरिटेंडेंट की जूतों से पिटाई

वीरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि, रफी अहमद किदवई, चंद्र भानु गुप्त और लाल बहादुर शास्त्री के साथ संगठन में जाते थे. जो काम हम लोग को सौंपा जाता था. उसको करने के लिए आगे बढ़ते थे. ज्यादातर गवर्नमेंट की बिल्डिंग तोड़ने के आदेश आते थे, आदेश में कहा जाता था कि जितना नुकसान हो सके उतना नुकसान पहुंचाओ. उनका कहना है कि घर से किसी का सपोर्ट नहीं मिलता था. फूफाजी के ही सहारे सब चलता था.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरेंद्र प्रसाद बाजपेई

मुंबई से आता था डायरेक्शन

वह बताते हैं कि फूफाजी मुंबई मीटिंग करने चले जाते थे. जिसके बाद वहां से डायरेक्शन आया करते थे. उसी हिसाब से काम होता था. उन्होंने बताया कि 1955 में तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम, गुलजारी लाल नंदा के सानिध्य में रेल मंत्रालय भारत सरकार के सुरक्षा विभाग में अधिकारी के तौर पर काम किया. वह बताते हैं कि अपने सेनानी साथियों के इतिहास को सुरक्षित व सुख सुविधा सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कल्याण परिषद उत्तर प्रदेश शासन में निदेशक/सचिव पद पर भी काम किया. रेलवे सुरक्षा बल में अधिकारी के रूप में काम करते हुए सन 1971 में उन्हें बालमेल राजस्थान भेजा गया था, जिसके बाद कुशल नेतृत्व पाए जाने पर अफसर कमांडिंग में कमेंडेशन प्रमाण पत्र जारी किया था. वे बताते हैं कि 1986 में वह रिटायर हो गए. उसके बाद सामाजिक कार्य करते रहे. सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिली. अब उन्हें करीब 20,000 रुपये तक पेंशन मिलती है.

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