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पर्यावरण बचाने को सब आएंगे साथ, तभी बनेगी बात

पर्यावरण संरक्षण की बातें और शोर तो लगातार बढ़ रहा है लेकिन वास्तव में संरक्षण कहीं दिखता नहीं. आज (5 जून) हम सभी लोग विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मना रहे हैं. आज के समय में सिर्फ बातें नहीं बल्कि हालातों की समीक्षा और जमीनी काम बहुत जरूरी है.

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Published : Jun 5, 2021, 7:41 AM IST

पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण संरक्षण

लखनऊः कटते जंगल, हवा में घुलता जहर और पेयजल में लगातार गिरावट, हमें विनाश की ओर ले जा रहे हैं. इन्हें बचाने के लिए जागरूक होने, पर्यावरण संरक्षण के लिए सबको सचेत करने का दिन है आज. हम बात कर रहे हैं विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) की. यह दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है लेकिन दुख की बात की हर साल पर्यावरण बचाने के लिए जो संकल्प लिए जाते हैं, वो कहीं भी साकार होते हुए नहीं दिखते. जरूरी है कि सिर्फ संकल्प ही न किए जाएं बल्कि शासन, प्रशासन और जनता सम्मिलित प्रयास करे.

पर्यावरण संरक्षण

गंभीर हैं हालात
अगर जल प्रदूषण की बात की जाए तो पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा जलमग्न है. इसके बावजूद करीब 0.3 फीसदी पानी ही पीने योग्य है. उद्योगों से निकलने वाले कचरे और केमिकल जल को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं. इस कारण कुल पेयजल में मात्र 30 फीसदी ही जल पीने के लायक बचा है. प्रदूषित जल पीने से कई गंभीर बीमारियां फैल रही हैं. वहीं, लगातार जलस्रोत सूख रहे हैं. बढ़ रहे शहरीकरण और औद्योगिकरण नदियों को भी लगातार प्रदूषित कर रहे हैं, जो एक गंभीर चुनौती है. वहीं, हवा में भी लगातार कार्बनडाइ आक्साइड बढ़ती जा रही है.


क्या कहते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए नदी व पर्यावरण विशेषज्ञ अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता का कहना है कि यूनाइटेड नेशन ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जो थीम रखी है, उस पर 2021 से 2030 तक हमें काम करना है. हम लोगों ने प्राकृतिक संपदाओं का दोहन किया है. इसे रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा. इस कार्य में जनता की भी भागीदारी अहम होगी.

10 वर्षों के डैमेज को कोविड-19 ने किया रिसेट
नदी व पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता का कहना है कि विगत 10 वर्षों में हम लोगों ने जो प्रकृति और पर्यावरण का नुकसान किया था, उसे विगत वर्ष कोविड-19 कॉल में प्रकृति ने रिसेट कर दिया. प्रोफेसर दत्ता का कहना है कि नदियों का पानी साफ हो गया और नदियों में डॉल्फिन देखने लगी. इसके साथ ही नदियों में मछलियों के साथ-साथ पक्षियों का भी आना-जाना शुरू हो गया और प्रकृति ने हमें बता दिया कि यदि आप थोड़ा भी हमें समय देते हैं तो हम अपने आप को रिस्टोर कर सकते हैं.

क्या कहते हैं ग्राउंड वाटर एक्सपर्ट
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए ग्राउंड वाटर के एक्सपर्ट आर एस सिन्हा ने बताया कि विश्व स्तर पर जल संकट का खतरा मंडरा रहा है. प्रकृति ने इतने जल चक्र के रूप में जो हमें बड़ी संपदा दी थी, उसमें समुद्र, ग्लेशियर, नदियां व ग्राउंड वाटर प्रमुख थे. हमने इनको असीमित समझकर बेहिसाब दोहन करना शुरू कर दिया.

बढ़ रहा है नदियों का प्रदूषण
ग्राउंड वाटर एक्सपर्ट का कहना है कि लगातार नदियों का प्रदूषण बढ़ रहा है. छोटी नदियां लगातार सूख रही हैं जो भी अदृश्य जल स्रोत थे उसके बारे में बहुत सी चीजें पता नहीं होती. जो आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर चुनौती हैं. जल चक्र का संतुलन हम लोगों ने बिगाड़ दिया है.

जल प्रदूषण और जल संकट को समझना होगा
ग्राउंड वाटर एक्सपर्ट का कहना है कि हमें जल संकट और जल प्रदूषण को समझना होगा. किताबों में जो आंकड़े दिए गए हैं, उसमें जमीनी स्तर पर काफी परिवर्तन है. हमने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है और प्रकृति ने परिवर्तित किया है. प्रकृति द्वारा जो अनमोल संपदा हमें दी गई है, उसे हमें समझना होगा और इस पर समग्र विचार करना होगा तभी हम इस चुनौती से निपट पाएंगे. वाटर एक्सपर्ट का कहना है कि प्रदेश के 50 जनपद ऐसे हैं, जहां पर लगातार ग्राउंड वाटर पॉल्यूशन का खतरा बढ़ा हुआ है. ऐसे में मानव समाज के सामने एक गंभीर चुनौती है. यदि सरकार और जनता समय रहते इस पर ध्यान नहीं देती हैं तो आने वाले दिनों में इसके परिणाम और भयावह होंगे.


इसे भी पढ़ेंः योगी के नेतृत्व में ही भाजपा लड़ेगी 2022 का विधानसभा चुनाव

योजनाओं की जमीनी हकीकत अलग
बताते चलें कि नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार तमाम योजनाएं चलाती हैं पर जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल इतर है. नदियों के लिए चलने वाली यह योजनाएं कागजों पर तो चलती हैं पर असल में लगातार नदियां प्रदूषित हो रही हैं और जल संकट गहराता जा रहा है. राजधानी लखनऊ की जीवनदायिनी गोमती नदी लगातार जलकुंभी से पटी रहती है. ऐसे में समझा जा सकता है कि केंद्र और प्रदेश सरकार नदियों को लेकर कितना गंभीर है. यदि समय रहते सरकार और जनता ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में यह मानव समाज का धरती पर रहना भी मुश्किल हो जाएगा.

लखनऊः कटते जंगल, हवा में घुलता जहर और पेयजल में लगातार गिरावट, हमें विनाश की ओर ले जा रहे हैं. इन्हें बचाने के लिए जागरूक होने, पर्यावरण संरक्षण के लिए सबको सचेत करने का दिन है आज. हम बात कर रहे हैं विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) की. यह दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है लेकिन दुख की बात की हर साल पर्यावरण बचाने के लिए जो संकल्प लिए जाते हैं, वो कहीं भी साकार होते हुए नहीं दिखते. जरूरी है कि सिर्फ संकल्प ही न किए जाएं बल्कि शासन, प्रशासन और जनता सम्मिलित प्रयास करे.

पर्यावरण संरक्षण

गंभीर हैं हालात
अगर जल प्रदूषण की बात की जाए तो पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा जलमग्न है. इसके बावजूद करीब 0.3 फीसदी पानी ही पीने योग्य है. उद्योगों से निकलने वाले कचरे और केमिकल जल को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं. इस कारण कुल पेयजल में मात्र 30 फीसदी ही जल पीने के लायक बचा है. प्रदूषित जल पीने से कई गंभीर बीमारियां फैल रही हैं. वहीं, लगातार जलस्रोत सूख रहे हैं. बढ़ रहे शहरीकरण और औद्योगिकरण नदियों को भी लगातार प्रदूषित कर रहे हैं, जो एक गंभीर चुनौती है. वहीं, हवा में भी लगातार कार्बनडाइ आक्साइड बढ़ती जा रही है.


क्या कहते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए नदी व पर्यावरण विशेषज्ञ अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता का कहना है कि यूनाइटेड नेशन ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जो थीम रखी है, उस पर 2021 से 2030 तक हमें काम करना है. हम लोगों ने प्राकृतिक संपदाओं का दोहन किया है. इसे रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा. इस कार्य में जनता की भी भागीदारी अहम होगी.

10 वर्षों के डैमेज को कोविड-19 ने किया रिसेट
नदी व पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता का कहना है कि विगत 10 वर्षों में हम लोगों ने जो प्रकृति और पर्यावरण का नुकसान किया था, उसे विगत वर्ष कोविड-19 कॉल में प्रकृति ने रिसेट कर दिया. प्रोफेसर दत्ता का कहना है कि नदियों का पानी साफ हो गया और नदियों में डॉल्फिन देखने लगी. इसके साथ ही नदियों में मछलियों के साथ-साथ पक्षियों का भी आना-जाना शुरू हो गया और प्रकृति ने हमें बता दिया कि यदि आप थोड़ा भी हमें समय देते हैं तो हम अपने आप को रिस्टोर कर सकते हैं.

क्या कहते हैं ग्राउंड वाटर एक्सपर्ट
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए ग्राउंड वाटर के एक्सपर्ट आर एस सिन्हा ने बताया कि विश्व स्तर पर जल संकट का खतरा मंडरा रहा है. प्रकृति ने इतने जल चक्र के रूप में जो हमें बड़ी संपदा दी थी, उसमें समुद्र, ग्लेशियर, नदियां व ग्राउंड वाटर प्रमुख थे. हमने इनको असीमित समझकर बेहिसाब दोहन करना शुरू कर दिया.

बढ़ रहा है नदियों का प्रदूषण
ग्राउंड वाटर एक्सपर्ट का कहना है कि लगातार नदियों का प्रदूषण बढ़ रहा है. छोटी नदियां लगातार सूख रही हैं जो भी अदृश्य जल स्रोत थे उसके बारे में बहुत सी चीजें पता नहीं होती. जो आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर चुनौती हैं. जल चक्र का संतुलन हम लोगों ने बिगाड़ दिया है.

जल प्रदूषण और जल संकट को समझना होगा
ग्राउंड वाटर एक्सपर्ट का कहना है कि हमें जल संकट और जल प्रदूषण को समझना होगा. किताबों में जो आंकड़े दिए गए हैं, उसमें जमीनी स्तर पर काफी परिवर्तन है. हमने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है और प्रकृति ने परिवर्तित किया है. प्रकृति द्वारा जो अनमोल संपदा हमें दी गई है, उसे हमें समझना होगा और इस पर समग्र विचार करना होगा तभी हम इस चुनौती से निपट पाएंगे. वाटर एक्सपर्ट का कहना है कि प्रदेश के 50 जनपद ऐसे हैं, जहां पर लगातार ग्राउंड वाटर पॉल्यूशन का खतरा बढ़ा हुआ है. ऐसे में मानव समाज के सामने एक गंभीर चुनौती है. यदि सरकार और जनता समय रहते इस पर ध्यान नहीं देती हैं तो आने वाले दिनों में इसके परिणाम और भयावह होंगे.


इसे भी पढ़ेंः योगी के नेतृत्व में ही भाजपा लड़ेगी 2022 का विधानसभा चुनाव

योजनाओं की जमीनी हकीकत अलग
बताते चलें कि नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार तमाम योजनाएं चलाती हैं पर जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल इतर है. नदियों के लिए चलने वाली यह योजनाएं कागजों पर तो चलती हैं पर असल में लगातार नदियां प्रदूषित हो रही हैं और जल संकट गहराता जा रहा है. राजधानी लखनऊ की जीवनदायिनी गोमती नदी लगातार जलकुंभी से पटी रहती है. ऐसे में समझा जा सकता है कि केंद्र और प्रदेश सरकार नदियों को लेकर कितना गंभीर है. यदि समय रहते सरकार और जनता ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में यह मानव समाज का धरती पर रहना भी मुश्किल हो जाएगा.

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