लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी को दशहरी आम के लिए भी जाना जाता है. यहां के फल पट्टी क्षेत्र में आजकल आम की बहार है. यहां के एक किसान ने ऐसा बाग तैयार किया है, जिसका हर 'आम' कुछ 'खास' है. अपने रंग, स्वाद और सुगंध से इस बाग का हर आम आपका मन मोह लेगा. यह आम देखने और खाने में ही उम्दा नहीं है, बल्कि यह बहुत ही टिकाऊ भी है.
यह बाग लगाने वाले एससी शुक्ला बताते हैं कि इस बाग में एक फीट से लेकर पांच फीट तक के पौधे भी बढ़िया फल दे रहे हैं. साथ ही इस बाग में नेचुरल फार्मिंग विधि से बिना केमिकल का प्रयोग किए आमों की पैदावार की जा रही है. यह फल सेहत के लिए बहुत ही अच्छे होते हैं. दूसरे फलों की तुलना में इनका स्वाद भी बेहतर होता है. इस बाग में बारहमासी आम के वृक्ष भी मौजूद हैं, जिनमें एक तरफ फल आ रहे हैं और दूसरी तरफ फूल. यह आश्चर्यचकित करने वाला लगता है.
एससी शुक्ला बताते हैं कि उन्होंने इस बाग में अमेरिका, अफ्रीका, इंडोनेशिया, मॉरीशस, बाली, श्रीलंका, थाईलैंड सहित विभिन्न देशों के आम की प्रजातियों के पौधे लगाए हैं, जो अब फल भी दे रहे हैं. यही नहीं विलुप्त हो रही देसी आम की 155 प्रजातियां भी इस बाग में संरक्षित की गई हैं. एससी शुक्ला बताते हैं कि आम के इन पेड़ों पर फ्रूटिंग हर साल बंच में होती है. अंबिका, अरुणिका जैसी कई प्रजातियां हैं, जिनके एक आम का वजन सात सौ ग्राम तक होता है.
इन प्रजातियों के आम 'खास' बनाते हैं इस बाग को
बागबान एससी शुक्ला की बागों में अंबिका, अरुणिका, अरुणिमा, प्रतिभा, पीतांबरा, लालिमा, श्रेष्ठा, सूर्या, हुस्नारा, नाज़ुक बदन, गुलाब खास, ओस्टीन, सनसनी, टॉमी एटकिन्स, दशहरी, चौसा, लंगड़ा, अमीन खुर्दो, कांच, आम्रपाली, मल्लिका, कृष्ण भोग, राम भोग, रामकेला, शहाद कुप्पी, रतौली, जर्दालु, बॉम्बे ग्रीन, अल्मास, लखनऊवा, जौहरी, बैगनपल्ली, अमीन दूधिया, लम्बोदरी, बादामी गोला, बारहमासी, शुक्ला पसंद, याकुति, फजली, केसरी, लेम्बोरी, नारदी, तंबोरिया, सुरखा, देसी दशहरी आदि प्रजातियों में आम प्रमुख रूप से पाए जाते हैं.
हमारे पास 27 प्रजातियां हैं, जो सालभर देती हैं आम : एससी शुक्ला
यह नायाब बाग तैयार करने वाले एससी शुक्ला कहते हैं 'मेरी आदत रही है, जिस देश में भी गए वहां से आम के पौधे ले आए. पौधे न मिले तो आम की गुठली ले आए. इस तरह से एक लंबी यात्रा रही. उन्हें लगता है कि रंगीन आमों का यह सबसे बड़ा संग्रह है. इस बाग में सौ के करीब रंगीन आम के पेड़ हैं. इस सवाल पर कि आपको बागबानी का ख्याल कहां से आया वह कहते हैं कि उनके पिता जी को आम का बहुत शौक था. उस समय दशहरी के अलावा देशी, लंगड़ा और चौसा आम ही होता था.
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वे एक बार मुंबई गए तो देखा कि 15-20 रुपये में अल्फांजो आम बिक रहा है. मेरी जिज्ञासा हुई तो देखा वह कुछ खास अच्छा नहीं है, जबकि हमारे यहां तमाम प्रजातियां होती हैं. वहां ब्रॉन्डिंग अच्छी है, लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं है. हमारे आम की सेल्फ लाइफ बहुत अच्छी है. रंग बेहतरीन है और स्वाद भी लाजवाब है. इसके साथ ही यह आम बेहद आकर्षक भी हैं. इन आमों की एक खूबी यह भी है कि इसमें हर साल आम आता है. उनके पास 27 ऐसी आम की प्रजातियां हैं, जो साल भर आम पैदा करती हैं.
आम ही नहीं हम कर रहे पर्यावरण संरक्षण के लिए भी काम : सुचित
इस बागबानी में अपने पिता का सहयोग करने वाले सुचित शुक्ला कहते हैं कि उनके यहां करीब साढ़े तीन सौ प्रजातियों के आम पैदा किए जा रहे हैं. यहां न सिर्फ भारतीय बल्कि दुनियाभर से लाई गई आम की प्रजातियां मौजूद हैं. वह कहते हैं कि आम की पैदावार छोटे पेड़ों से भी ली जा सकती है. बहुत बड़े पेड़ों पर लगे आम गिरकर बेकार हो जाते हैं. छोटा पेड़ भी बड़े पेड़ के बराबर आमदनी देता है. सुचित कहते हैं, 'यह कहना गलत होगा कि वह केवल आम और पेड़ों के लिए ही काम कर रहे हैं. वह पर्यावरण के लिए भी काम कर रहे हैं. यहां तमाम पक्षी और जीव-जंतु भी पलते हैं. बेकार पत्तों से हम आर्गेनिक खाद बनाते हैं. इसके लिए भी ऑर्गेनिक माइक्रो ऑर्गेनिज्म हैदराबाद के विश्वविद्यालय ने बनाए हैं. इनको पानी में घोलकर आप पत्तों पर डाल दीजिए, तो खाद जल्दी बन जाती है. कई सारे प्रयोग हो रहे हैं इस क्षेत्र में. सुचित शुक्ला कहते हैं कि भारतीय किसान के लिए एक उदाहरण पेश करना है.
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