लखनऊ: सपा ने लखनऊ कैंट विधानसभा सीट पर मेजर आशीष चतुर्वेदी को प्रत्याशी उतारकर मुलायम सिंह यादव को एक बार फिर करारा झटका दिया है. लोकसभा चुनाव में छोटी बहू अपर्णा यादव के लिए टिकट मांग रहे मुलायम सिंह विधानसभा उपचुनाव में अपर्णा को मौका नहीं दिला सके. अखिलेश यादव के करीबी इसे पार्टी में बदलाव और परिवारवाद की छुट्टी बता रहे हैं.
2017 में मुलायम के कहने पर अपर्णा यादव को प्रत्याशी बनाया गया था
लखनऊ कैंट विधानसभा सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने मुलायम सिंह यादव के कहने पर छोटी बहू अपर्णा यादव को प्रत्याशी बनाया था. वहीं मतदाताओं से जीत की अपील करने के लिए खुद मुलायम सिंह यादव मैदान में उतरे थे. मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव ने चुनाव में बीजेपी की दिग्गज नेता रीता बहुगुणा जोशी को तब करारी टक्कर भी दी थी.
भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी जो इससे पहले कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष हुआ करती थी और 2012 में भी इस सीट से चुनाव जीत चुकी थी. 2017 में रीता बहुगुणा जोशी को 95402 वोट मिले थे, जबकि अपर्णा यादव ने 61606 मत हासिल किए थे. अपर्णा यादव को राजनीति में नया चेहरा भी माना गया और तब इस तरह के कयास भी लगाए गए थे कि सपा भविष्य में उन्हें राजनेता के तौर पर पेश करेगी.
मुलायम समर्थकों का भ्रम टूटा
मुलायम समर्थकों का यह भ्रम तब टूटा जब लोकसभा चुनाव के दौरान मुलायम सिंह यादव ने अपर्णा को संभल या बदायूं सीट से चुनाव लड़ाने का अनुरोध सीधे अखिलेश यादव से किया लेकिन अखिलेश यादव ने मुलायम की एक न सुनी.
सपा पर परिवारवाद का आरोप
विधानसभा उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद अपर्णा का टिकट काटे जाने पर अखिलेश यादव समर्थक नेताओं का कहना है कि दरअसल, सपा पर परिवारवाद का आरोप लगाया जा रहा था. ऐसे में अखिलेश यादव अब नहीं चाहते हैं कि समाजवादी पार्टी को एक परिवार की पार्टी माना जाए. अखिलेश यादव पार्टी का चेहरा बदलने की कोशिश में लगे हैं और इसे कार्यकर्ता केंद्रित पार्टी बनाना चाहते हैं. पिछले हफ्ते अखिलेश यादव ने खुद मीडिया के सामने आकर कहा था कि उनकी पार्टी पर परिवारवाद का आरोप लगाया जाता है, जबकि वह मानते हैं कि परिवार में भी लोकतंत्र है.
लखनऊ कैंट विधानसभा सीट पर अपर्णा यादव को प्रत्याशी बनाए जाने के पीछे परिवारवाद के आरोप को वजह मानने के लिए राजनीतिक विश्लेषक तैयार नहीं है. कहा जा रहा है कि यह अलग बात है कि लखनऊ कैंट विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए इस बार अपर्णा यादव की ओर से दावेदारी की बात सामने नहीं आई. इसके बावजूद परिवार की राजनीति और आपसी रार में अपर्णा यादव की कभी इधर कभी उधर की भूमिका ने उन्हें टिकट से दूर कर दिया. 1 साल पहले जब शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी से बगावत की थी तो अपर्णा यादव उनके निकट दिखाई दी थीं. ऐसे में मुलायम सिंह यादव के सिफारिश के बावजूद अपर्णा पर भरोसा करने के लिए अखिलेश यादव तैयार नहीं हैं. यही वजह है कि उन्हें टिकट देने के बजाए अखिलेश यादव ने नए चेहरे को मैदान में उतारना बेहतर समझा.