लखनऊ: बसपा ने विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला फिट किया था. 2007 की तर्ज पर दलित-ब्राह्मण और मुस्लिम कार्ड के जरिए चुनाव में उतरी. मगर योगी-मोदी की रणनीति से हाथी चारों खाने चित हो गया. स्थिति यह रही कि बसपा पार्टी के गठन से अब तक के सबसे बुरे दौर में आ खड़ी हुई है. पार्टी को 403 में से सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. यही कारण है कि बसपा कार्यालय के बाहर सन्नाटा पसरा रहा.
2012 और 2017 में गिरता गया मायावती का जनाधार
बसपा अध्यक्ष मायावती ने दावा किया था कि अबकी उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी 2007 से भी ज्यादा सीट जीतेगी. हालांकि उनका यह दावा मतगणना के दौरान हवा हो गया. स्थिति यह रही कि 1984 में बसपा का गठन हुआ था, तब से लेकर आज तक पार्टी ने कई बार उतार-चढ़ाव देखें. चार बार यूपी में सरकार बनाई. वहीं 2012 और 2017 में जिस तरह पार्टी का जनाधार घटता गया, उसको संजोने में पार्टी नाकाम रही. बसपा के गठन के बाद शुरुआत में आठ से दस सीटे जीती थीं.
वहीं,1993 में पहली बार 67 सीटें जीतकर चौंका दिया था. इसके बाद 17वीं विधानसभा चुनाव में (2017) पार्टी केवल 19 सीटों पर सिमट कर रह गई थी और कार्यकाल के अंतिम समय में महज 3 विधायक रह गए थे. वहीं, 75% विधायकों ने बसपा से दूरी बना ली थी. जनाधार खो चुकी पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर विजयी हासिल हुई.
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