लखनऊः विधानभवन से राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सातवें सम्मेलन का आयोजन राजधानी लखनऊ में किया गया. कॉमनवेल्थ पार्लियामेन्ट्री एसोसिएशन इण्डियन रीजनल कांफ्रेस के दौरान नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने अपने विचार प्रस्तुत किए.
संसदीय संघ लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करता है
नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने कहा कि राष्ट्रमंडल संसदीय संघ लोकतांत्रिक प्रणाली को और मजबूत बनाने की उद्देश्यों की पूर्ति करता है, इसलिए ऐसे कार्यक्रमों की मैं सराहना करता हूं. उन्होंने कहा कि भारत देश का इतिहास मानवतावादी है. रविन्द्र नाथ टैगोर जी की किताब ‘बांग्ला भाषी इतिहास’ का उदाहरण देते हुए कहा कि किताब में गुरुदेव ने लिखा है कि भारत ने हमेशा समावेशी सभ्यता की नींव रखी है. उसने कभी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं बाहर किया है. कभी किसी को आर्यन कहकर अपवित्र नहीं किया. उसने किसी का भी मजाक नहीं बनाया. भारत ने सभी को स्वीकार किया है.
संविधान में निहित है स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व
नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने अपने भाषण के दौरान कहा कि भारत ने स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व की मांग लेकर आजादी पाई है और इसी के आधार पर संविधान का निर्माण किया गया. संविधान में राज्य और केंद्र की शक्तियों का विभाजन किया गया है. सभी को समता का अधिकार दिया गया है. नेता प्रतिपक्ष ने अनुच्छेद-13 का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसी कोई भी विधि नहीं बनाई जाएगी, जिससे जनता के अधिकारों का हनन हो.
संसद जनता का प्रतिनिधित्व करती है
उन्होंने कहा कि संसद जनता का प्रतिनिधित्व करती है और कार्यपालिका की जवाबदेही तय करती है. इसलिए प्रत्येक सदन के प्रत्येक सदस्यों को सांवैधानिक रुप से कार्यपालिका द्वारा किए गए नीति निर्धारण पर अपने विचार रखें. साथ ही इसमें सुधार करने और संशोधन करने के लिए सदस्यों को जनादेश प्राप्त है. उन्होंने कहा कि अगर संसद में विपक्ष न हो तो सत्ता पक्ष के स्वेच्छाचारी होने की संभावना बनी रहती है. विपक्ष नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने का काम करता है.
दल की राजनीति से ऊपर उठें सदस्य
संसदीय प्रणाली के बारे में अपने विचार रखते हुए नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने कहा कि संसदीय प्रणाली में सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी होती है और प्रति पक्ष सरकार की असफलताओं को प्रकाशित करने का काम करता है. वहीं पक्ष और विपक्ष दोनों समाज के प्रति उत्तरदायी हैं. स्वस्थ संसदीय प्रणाली के लिए यह आवश्यक है कि संसद के प्रत्येक सदस्य को दल की राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करना चाहिए. सदन में उठाए जाने वाले मामले जनता के होते हैं न कि किसी दल के, लेकिन वर्तमान समय में इसका ह्रास होता नजर आ रहा है.