लखनऊ : लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे बुजुर्ग दिग्गज नेताओं को टिकट नहीं दिया गया. कांग्रेस इस पर भले सवाल खड़े कर रही हो कि बीजेपी में बुजुर्गों की इज्जत नहीं है, लेकिन दाग कांग्रेस के दामन में भी है, जिन्हें कांग्रेस के नेता देखना नहीं चाहते.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय पर वर्षों से संरक्षक के तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के समय गृह राज्य मंत्री, केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे रामकृष्ण द्विवेदी को एक कमरा एलॉट किया गया था. यहीं पर रोजाना बैठकर वह कांग्रेसियों का मार्गदर्शन करते थे, उनमें जोश भरते थे लेकिन प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने उनका कमरा छीन कर राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को दे दिया.नतीजा यह हुआ कि बुजुर्ग रामकृष्ण द्विवेदी कमरा छिनने से इतने व्यथित हुए कि उन्होंने कांग्रेस कार्यालय ही आना छोड़ दिया.
प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के अंदर प्रवेश करते ही एक बड़ा सा कमरा कांग्रेस के संरक्षक मंडल के रामकृष्ण द्विवेदी का हुआ करता था, लेकिन जब राष्ट्रीय महासचिव के साथ पूर्व और पश्चिम के प्रभारी के रूप में प्रियंका गांधी वाड्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया को यूपी भेजा गया तो बुजुर्ग रामकृष्ण द्विवेदी का कमरा खाली कराकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को दे दिया गया. इसके बदले में रामकृष्ण द्विवेदी को कार्यालय के अंदर एक छोटा सा कमरा एलॉट किया गया. जिस दिन से इस वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का कमरा छिना, उस दिन से आहत होकर कार्यालय आना उन्हें सही नहीं लगा. लिहाजा, तब से वे कार्यालय ही नहीं आ रहे हैं.
कांग्रेस के प्रवक्ता और नेताओं से जब 'ईटीवी भारत' ने बुजुर्ग रामकृष्ण द्विवेदी का कमरा छीनने को लेकर सवाल किया तो कोई भी इस पर कुछ भी बोलने को तैयार ही नहीं हुआ. राजनीतिक विश्लेषक भी कांग्रेस के इस कदम को सही नहीं ठहराते हैं.
रामकृष्ण द्विेवेदी ने कहा- आत्मसम्मान से बड़ा कुछ नही
कांग्रेस कार्यालय से कमरा छिनने के बाद छोटा सा कमरा दिए जाने से नाराज रामकृष्ण द्विवेदी कहते हैं कि मैं आत्मसम्मान के विरुद्ध कुछ कार्य नहीं कर सकता. वह पार्टी की विवशताएं हैं. मुझसे राज बब्बर जी ने बात की थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कमरे में बैठेंगे तो मैंने कहा ठीक है, लेकिन मैं अपने सम्मान से समझौता नहीं करूंगा. पार्टी के सिद्धांतों से समझौता नहीं करूंगा. इंदिरा जी के आदर्शो से समझौता नहीं करूंगा. जहां तक प्रश्न कांग्रेस के कार्यालय का है तो यह किसी व्यक्ति विशेष की जागीर नहीं है. मेरा उस पर कोई वर्चस्व और एकाधिकार नहीं है. यह पार्टी का है और पार्टी पर निर्भर करता है, लेकिन उसे भी तथ्यपरक तार्किक निर्णय लेना चाहिए था. तर्क से भटक कर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर ऐसे फैसले नहीं करने चाहिए.
कांग्रेस को करना चाहिए बुर्जुगों का सम्मान
राजनीतिक विश्लेषक एसके द्विवेदी ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से तो मैं यही कहूंगा कि बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए. उनका मार्गदर्शन कोई भी दल हो या परिवार या फिर संगठन उसके लिए अपेक्षित होता है. इस प्रकार से द्विवेदी जी का अनादर नहीं करना चाहिए. कांग्रेस के ऊपर हमेशा से यह आरोप रहा है कि वह एक परिवार विशेष को वरीयता या प्रश्रय देती है. मुझे लगता है कि वे कांग्रेस के मार्गदर्शक रहे हैं. ऐसे में उनका मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए था. अगर इन बुजुर्गों का कांग्रेस मार्गदर्शन का प्रयास नहीं करेगी तो मैं समझता हूं कि आने वाले समय में कांग्रेस के लिए यह नुकसानदेह साबित होगा.