लखनऊ : समाज की सबसे बड़ी विकलांगता संकुचित दृष्टिकोण है. दिव्यांगजनों की खूबियों को देखने की क्षमता समाज में नहीं है. जरूरत है तो दिव्यांगजनों की अनोखी प्रतिभाओं को समझने और उसे प्रोत्साहित करने की. भारत मे दिव्यांग महिलाओं को परिवार और समाज दोनों जगहों पर चुनौती का सामना करना पड़ता है. इस स्थिति में सुधार की आवश्यकता है. यह बात केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहीं. वह शुक्रवार को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में दिव्यांग महिलाओं की समावेशिता: भारत में चुनौतियां और अवसर विषय पर हुए सेमिनार (seminar organized in BBAU) में बतौर मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थीं.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बीबीएयू के कुलपति प्रो. संजय सिंह ने कहा कि प्राचीन समय से ही भारत में नारी शक्ति सदैव पूजनीय रही है. बदलते समय और विदेशी हमलों ने भारत की संस्कृति पर काफी नकारात्मक प्रभाव डाला, जिसके चलते आज हमारा समाज ऐसी मानसिक विकृति का शिकार हो चुका है. मानसिक विकार शारीरिक विकार से ज्यादा घातक है. मानसिकता में सुधार के लिए विचारों को नियंत्रित करना जरूरी है. योग एवं ध्यान के माध्यम से हमें अपने मन के विकारों को दूर करने में मदद मिल सकती है. हमें मानसिक दृढ़ता पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
विश्व की तीसरी सर्वोच्च पैरा ओलम्पिक बैडमिंटन खिलाड़ी पलक कोहली ने कहा कि हमें किसी भी बदलाव की सूरत खुद बनना चाहिए, सिर्फ आलोचना करने से बदलाव नहीं आएगा. उन्होंने समाज से दिव्यांगजनों को एक आम व्यक्ति की तरह देखने का आग्रह किया. उद्घाटन सत्र के बाद तीन तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया. पहले तकनीकी सत्र में डॉ. शालिनी अग्रवाल ने दृष्टिबाधित किशोरियों को माहवारी के दौरान स्वच्छता का कैसे ध्यान रखना है, प्रो सुरदारपुरी ने विकलांगता और दलित महिलाएं विषय पर, मोनिका लाल ने दिव्यांगजनों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जानकारी दी. प्रो. शेफाली यादव ने दिव्यांग महिलाओं के अधिकारों के बारे में जानकारी दी. इस मौके पर द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित कोच गौरव खन्ना और विवि के दो दिव्यांग गैर शैक्षणिक कर्मचारी शबनम सैफी और सतविन्दर कौर को सम्मानित किया गया.